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Showing posts from March, 2010

जिंदगी पा गया

रतन तुझे पाके मैं हर खुशी पा गया ज्यों सौ साल की जिंदगी पा गया बहारों के सपने भी आने लगे खिजां दूर पलकों से जाने लगे तू है साथ हर सादगी पा गया ज्यों सौ साल की जिंदगी पा गया हुए साथ भंवरे भी गाने लगे थे वीराने जो मुस्कुराने लगे था सूना जो दिल आशिकी पा गया ज्यों सौ साल की जिंदगी पा गया हुए साथ तुम आई रानाइयां अब बजने लगीं देखो शहनाइयां जो तुम आए तो रोशनी पा गया ज्यों सौ साल की जिंदगी पा गया जमीं आसमां देखो मिलने लगे मोहब्बत के जब फूल खिलने लगे था मुरझाया गुलशन कली पा गया ज्यों सौ साल की जिंदगी पा गया

अहसास

रतन क्या यही अहसास है? आप थे जब तक साथ मेरे एक संबल था और बल था और था मां का भी आंचल आपसे हमने पाई तमाम खुशियां साथ इस अहसास के कि पापा हैं साथ हमारे एक इस अहसास से दमदार हो जाते थे हम सारी मुश्किल पल में आसान होती थीं यह जानकर कि हैं पापा साथ मेरे क्या यही अहसास है? तुम नहीं हो तो मुझे भी घर की चिंता है नहीं ख्वाब जितने गांव के थे वे सभी गुम हो गए खो गया हूं नितांत अपने आप में फिर भी जाने बात क्या है आप में भूलकर भी याद अक्सर आते हो जब कभी मैं मुश्किलों में खुद को पाता हूं घिरा याद करके तुमको हल मिल जाता है रूह को भी शांति मिल जाती है मैं तुम्हारे साथ खुद को पाता हूं क्या यही अहसास है? दूर होकर आपसे है कुछ कमाया खूब शोहरत पाई है काश, आप भी इसे महसूस करते दोगुनी होती खुशी आपको अहसास होता और मुझे भी पर आप हो क्षितिज के उस पार मैं इस पार अधर में भी मिलना होगा बाद मुद्दत एक दिन और एक पल शायद हो भी नहीं फिर भी है यही उम्मीद जाने क्यों मुझे क्या यही अहसास है?

चाहिए एक ख्वाब

रतन चाहिए एक ख्वाब हसीन हो जो सकून दे वो झरनों सी झर-झर बारिश सी झम-झम कलियों की चटकन पायल की छम-छम झांझर की झन-झन कंगन की खन-खन हवाओं की सर-सर फिजाओं की रौनक हो जिसमें चाहिए एक ख्वाब बसे गुंजन में रहे तन-मन में नाचे आंगन में महके उपवन में सुरमई शाम में हर एक काम में पीपल की छांव में सपनों के गांव में जो ले जाए नित मुझको चाहिए एक ख्वाब

विश्व महिला दिवस का अवशेष !

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कल था महिला दिवस पर अखबारों में विशेष, दिवस गया आज फिर महिला रह गयी शेष ! आज से उस कल तक अखबारों में बिखरेगी - महिला, महिला और महिला । महिला का शोषण, महिला का कुपोषण । महिला पर अत्याचार, महिला का बलात्कार । महिला का आकर्षण, महिला का चीरहरण । महिला का दमन, महिला का दहन । चटखारों में होगी व्यथा, बस और केवल बस निर्बला होने की कथा !!! [] राकेश 'सोहम'

मीनाक्षी के बाद

मीनाक्षी के बाद मंदिर से निकलते-निकलते अंधेरा हो चुका था । विद्युत प्रकाश में नहाया हुआ मीनाक्षी सुन्दरेश्वर मंदिर प्रांगण के बाहर से और भी मनमोहक लग रहा था। फिर भी हम अब बाहर की दुनिया में वापस आ चुके थे। अर्थ-व्यवहार एवं दुकानदारी के चिर परिचित क्रियाकलाप ज्यों के त्यों चल रहे थे। एक बात बताना तब मैं भूल गया था और शायद अच्छा ही हुआ था। मंदिर के प्रवेशद्वार पर ही मदुराई की मशहूर सिल्क साड़ियों की अनेक दूकानें है। ये दूकानदार मंदिर में प्रवेश से पूर्व जूता-चप्पल रखने की सुविधा मुफ्त उपलब्ध कराते हैं। मुझे उनकी इस सहृदयता पर संदेह हुआ था और मैंने इसका कारण जानना चाहा तो बड़ी मुश्किल से बताया गया कि आप वापसी में उनकी दूकान पर साड़ियाँ देख सकते है। अब जाकर इस सुविधा का अर्थ समझ में आया और तसल्ली हुई। लौटे तो साड़ियाँ देखनी ही पड़ीं। पर मैं यह जरूर कहना चाहूँगा कि मदुराई की सिल्क साड़ियाँ वास्तव में बहुत अच्छी होती हैं। इनमें श्रम, कलाकारी एवं गुणवत्ता का अद्भुत समन्वय होता है और दिल्ली की तुलना में इनकी कीमत भी काफी तार्किक होती है। मदुराई की याद के रूप में मैंने भी धर्मपत्नी के लि...

होली के बहाने न्यू मीडिया की अपार शक्ति का बखान कर गये आलोक मेहता

“न्यू मीडिया” से बौखालाये और होलियाये आलोक मेहता ने होली के बहाने इस मीडिया की जोरदार तरीके से ऐसी की तैसी करने की कोशिश की। इसके लिये तमाम तरह के तर्क और कुर्तक गढ़े, और इस न्यू मीडिया की लानत-मलानत में कोई कोर कसर नहीं छोड़ा, जो उनके लिए स्वाभाविक था। न्यू मीडिया के खिलाफ वह पूरी तरह से कुर्ता धोती फाड़ो वाले अंदाज में थे। उनके लिए मौका भी था और दस्तुर भी। लेकिन हुड़दंगई के मूड में आने के बाद जाने या अनजाने में उन्होंने न्यू मीडिया की अपार शक्ति का भी बखान करते चले गये। और साथ में उन्हें इस बात का मलाल भी था कि न्यू मीडिया पुरातन मीडिया के मुकाबले सेंसर की परिधि से बाहर है। उन्हीं के शब्दों में, “ब्लॉग प्रभुओं का एक शब्द, अमेरिकी, चीनी राष्ट्रपति या ब्रिटिश प्रधानमंत्री तक, नहीं कटवा सकता है...खासकर हिंदी ब्लॉग पर उनका बस ही नहीं चल सकता...” जिस स्वतंत्रता को पाने में पुरातन मीडिया को एड़ी चोटी का बल लगाना पड़ा है (और अभी भी स्वतंत्रता के क्लाइमेक्स पर नहीं पहुंच सका है), उसे तकनीकी क्रांति की बदौलत न्यू मीडिया ने सहजता से प्राप्त कर लिया है। इसे एक उदाहरण से समझना आसान होगा। अखबार ...

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