क्यों जाने दिया उसे?
रतन 1 कोलाहल का तांडव खंडित है नीरव भीड़ चहुंओर भागा-भागी का दौर सब हैं अपने काम में मगन फुरसत नहीं किसी को पल भर की सुबह हुई शाम हुई जिंदगी रोज तमाम हुई 2 जहां थी कोलाहल की आंधी सब कुछ पड़ा है आज मंद खामोश दरो-दीवारें बे-आवाज जंजीरें न घुंघरू की छम छम न तबले की थाप न सारंगी की सुरीली धुनें न हारमोनियम का तान न कोई कद्रदान न किसी का अलाप न रिक्शे का आना न ठेली का जाना न कुत्ता, न कमीना गली है सूना-सूना बस आती है आवाज सायरन की अक्सर तो होती है कानाफूसी घर ही घर में न आवाज बाहर को जाती किसी की कि आई पुलिस है मोहल्ले में अपने 3 राम-रहीम दो दिल हैं मगर एक जां हैं वे बचपन से जब से वे स्कूल गए अब हैं अधेड़ मगर उनकी दोस्ती है पाक, जवां आज भी, अब भी एक-दूसरे से मिलना होता है रोज न मिले, एक दिन तो लगता है ऐसे कि गोया मिले हैं नहीं हम बरस से 4 है एक दिन यह भी कि सूनी हैं सड़कें लगी है शहर में पहरेदारी कफ्र्यू की गुजरता है दिल पर नहीं जाने क्या-क्या कि मिलना हो कैसे हमारा-तुम्हारा मोहल्ला है दूर बंटा हुआ, जातियों में राम का अपना, रहीम का अपना...