कोडाईकैनाल में

--हरिशंकर राढ़ी
हमारी बस अपनी तीव्र गति से प्रकृति का स्पर्श करती हुई कोडाईकैनाल की तरफ बढ़ी जा रही थी।पर्वतमाला हमारे साथ-साथ चल रही थी और हम उत्सुक थे कि हम इनके अन्दर प्रवेश करें। इसी पर्वतपाद प्रदेश में बस चालक ने एक रेस्तरां पर बस रोकी और उस खुले से रेस्तरां में हम भूख या स्वाद से ज्यादा उस उन्मुक्त से वातावरण का स्वाद लेने के लिए कुछ खाया पीया। यहाँ से हम पहाडियों की गोद में समाने लगे। बलखाती सर्पाकार सडक पर बस हिचकोले लेने लगी और फिर पूरी बस बच्चों की मौजमस्ती से गूँजने लगी। उनके लिए यह प्रायः नया अनुभव था, ऊपर से वे एक समूह में थे । सडक का रोमांच मेरे लिए तो कुछ खास नहीं था क्योंकि मैं जम्मू , समूचे गढवाल क्षेत्र से लेकर काठमांडू तक हिमालय की यात्रा कर चुका हूँ। हिमालय की उच्चता के सम्मुख यह यात्रा कुछ भी नहीं थी परन्तु आकर्द्गाण यहां भी कम नहीं था । सितम्बर का अन्त था, दक्षिण भारत में गर्मी यूँही कम नहीं थी पर यहां की बात ही कुछ और थी । ठण्डी-ठण्डी हवा ने जैसे द्रारीर के साथ मन आत्मा को भी शीतल कर दिया हो!
यह पर्वतीय यात्रा लगभग दो घण्टे की होती है। बस टूअरिस्ट थी, अतः तेज चलना स्वाभाविक ही था। रास्ते में मनमोहक हरियाली का साम्राज्य चहुंओर। इतने में हम एक अत्यन्त विशाल निर्झर के सामने खड़ी थी । सिल्वर कास्केड नामक इस जलप्रपात को देखते ही बनता था और यह विचार मन में बार- बार आता था कि निश्चित ही प्रकृति से बड़ा कलाकार और वास्तुकार कोई भी नहीं है। यहाँ फोटो- सोटो की रस्म निभाकर हम आगे के लिए रवाना हुए और कुछ अनावच्च्यक सी भी चीजों ( जो हमारे बस पैकेज में शामिल थीं, टूअर ऑपरेटर ऐसे कई मामूली स्थलों को जो रास्ते में पड ते हैं और जिनपर उनका कोई विशेष खर्च नहीं आता और दर्शनीय स्थलों की सूची लम्बी हो जाती है,बस ) को देखते हुए हम कोडाईकैनाल पहुँच गए।
वाकई कोडाईकैनाल एक अत्यन्त खूबसूरत जगह है और इसकी पृद्गठभूमि उस लहरदार पर्वतीय संकरे राजमार्ग ने ही तैयार कर दी थी। हम वहां की प्राकृतिक सुन्दरता बस निहारे जा रहे थे। अन्य पर्वतीय शहरों की भांति यह शहर भी कहीं सघन तो कहीं विरल बसा हुआ है। सबसे पहले हमें बस वाला रॉक पिलर ले गया। यहां दो ऊँची चट्टानें खम्भों की भांति एक साथ खड़ी हैं, ऐसा लगता है कि किसी अच्छे कारीगर ने बिल्कुल साहुल की सीध लेकर बनाया हो। अभी हम पहुंचे ही थे और एक झलक मिली ही थी कि अचानक घना कोहरा छा गया और रॉक पिलर कोहरे की चादर ओढ कर छिप से गए।एकाएक इतना घना कोहरा देखने का अपना ही रोमांच था। हमें ख़ुशी इस बात की भी थी कि हम इतने भाग्यशाली अवश्य थे कि थोडा पहले पहुंच गए अन्यथा मन में एक कसक रह ही जाती! हालांकि, रॉक पिलर में इतना कुछ दर्शनीय नहीं है, बस एक उत्कंठा वाली बात है।
यहाँ-वहाँ घूम-फिरकर हमारी बस कोडाई झील के पास एक भोजनालय के सामने आकर खड ी हो गई।उस बस का यह सेट भोजनालय रहा होगा, इनको यहां से ग्राहक लाने के नाम पर अच्छा कमीच्चन मिल जाता है। खैर , यहां हमने भोजन किया और बस वाले के अनुसार हमारे लिए उसकी सेवा समाप्त थी क्योंकि हमारी बुकिंग केवल एक साइड की थी। वैसे ये टूअर ऑपरेटर बिलकुल एक जैसे होते हैं,चाहे उत्तर भारत हो या दक्षिण! पैसे के चक्कर में किसी को भी बेवकूफ बनाने में इन्हें कोई परहेज नहीं! हमारे ऑपरेटर ने मदुराई से चलते समय ही कह दिया था कि कोडाईकैनाल में मौसम खराब है और किसी भी होटल में कमरा खाली नहीं है (जिससे कि घबराकर ये वापसी की भी बुकिंग करा लें और उसकी आठ सीटें जो खाली जाने वाली हैं , भर जाएँ। यात्री का अपना टूर भले ही सत्यानाश हो जाए, उनका क्या? और यह बात हम समझ चुके थे।)। यही नाटक यहां बस के ड्राइवर और कन्डक्टर ने किया । उनका कहना था कि यहां कोई कमरा खाली नहीं है। किसी बड़े अर्थात महंगे होटल में शायद मिल जाए तो मिल जाए! बहरहाल, हजार पन्द्रह सौ के नीचे तो कोई मतलब नहीं ! मेरे मित्र को गुस्सा कुछ ज्यादा ही आ जाता है क्योंकि गलत बात बर्दाश्त कर पाना उनके वश का नहीं ।। बड़ी जोर की फटकार उन्होंने लगाई। वे कहां गए, ये तो हम नहीं जानते परन्तु इसके बाद हम अपने दम पर होटल ढूंढने निकल दिए और जल्दी ही पास में एक होटल मिल भी गया जो हमारी व्यय सीमा के अन्दर था। हमने सामान रखा और कोडाईकैनाल झील देखने निकल पड़े ।
कोडाईकैनाल का मुखय आकर्षण यहाँ की कोडाई झील है। द्राहर के लगभग बीच में स्थित यह झील किसी सितारे के आकार की है और अत्यन्त विशाल है। इसी झील के नाम पर ही इस पर्वतीय स्थल का नाम कोडाईकैनाल पड़ा हुआ है। वैसे इस द्राहर के नामकरण के बारे में और भी बातें है।तमिल भाषा में को- डाई का अर्थ होता है ग्रीष्म और कैनाल का अर्थ होता है देखना । एक अन्य उच्चारण अन्तर के अनुसार कोडाई कैनाल का अर्थ होता है जंगल का उपहार। कोडाईकैनाल झील के विषय में बड़ी ईमानदारी से कुछ कहा जाए तो वह यह होगा कि यह झील वाकई में बहुत सुन्दर है। इसके आगे बस कविताएं ही लिखी जा सकती हैं।
इस झील में नौका विहार करने का अपना एक अलग आनन्द है । पदचालित से लेकर नाविक चालित छोटी नौकाएं किराए पर उपलब्ध हैं और इसका संचालन तमिलनाडु पर्यटन विभाग करता है। हमने मशविरा किया और नाविक चालित नौका किराए पर ली, इसलिए कि साथ में बच्चे थे । स्वयंचालित नौका में क्या शैतानी कर दें कौन जानता है? यह नौकाविहार अपने आप में एक सुखद एहसास था। लम्बी-चौड़ी झील में रंग-विरंगी नौकाएं तैर रही थीं । झील लगभग अस्सी फीट गहरी है (यह नौका चालक की सूचना के अनुसार है) और कहीं ना कहीं इससे थोडा डर भी लग रहा था।
झील के आसपास छोटी -छोटी दूकानें बहुत सुन्दर लगती हैं। तरह - तरह के अल्पाहार यात्रियों को अपनी ओर आकर्षित करते रहते हैं ।यहां घुड़सवारी का शौक भी फरमाया जा सकता है। यहाँ घूमते-घामते शाम हो गई थी और हम अब वापस आ गए। कुछ देर शहर घूमकर , आवश्यक और अनावश्यक जानकारी लेकर अपने होटल आ गए। सितम्बर के महीने में सर्दी का एहसास बहुत ही सुहावना लग रहा था और हम इसका आनन्द किसी भी कीमत पर छोडना नहीं चाहते थे।
अगली सुबह हमारा कार्यक्रम कोकर्स वाक घूमने का था । कोकर्स वाक कोई एक किलोमीटर लम्बा एक पथ है जो कोडाईकैनाल के दक्षिणी छोर पर स्थित है और बस स्टैंड से लगभग आधा किमी की दूरी पर है।इस पथ का निर्माण ले० कोकर्स ने सन्‌१८७२ में किया था। यह भ्रमण पथ सेंट पीटर्स चर्च से वैन एलन हॉस्पीटल तक फैला है। यहां से पामबन नदी की घाटी से लेकर मदुराई तक का दृश्य देखा जा सकता है बच्चर्ते दिन साफ हो! इस मामले में हम लगभग भाग्यशाली थे। लगभग आधा कोकर्स वाक घूम लेने तक मौसम साफ था, घाटियों का सौन्दर्य हमने खूब देखा और फिर देखते ही देखते कोहरे की चादर ने फिर पूरे कोडाईकैनाल को अपने अन्दर समा लिया।
कोडाईकैनाल में घूमने के लिए बहुत कुछ है, मसलन- ब्रायण्ट वानस्पतिक उद्यान, बीअर शोला फॉल्स, ग्रीन व्यू वैली,डॉल्फिन्स नोज। यहां कुरिन्जी मुरुगन मंदिर अत्यन्त प्रसिद्ध है किन्तु समयाभाव में हम वहां नहीं पहुँच पाए। इसकी दूरी मंदिर से लगभग चार किमी है । यहां का मुखय आकर्षण हर बारह साल बाद खिलने वाला कुरिन्जी का फूल है। हर बारहवें वर्ष जब यह फूल खिलता है तो यहां का पर्यटन भी खिल उठता है।
कोडाईकैनाल प्राकृतिक रूप से समृद्ध है और प्राकृतिक उत्पाद भी यहां खूब बिकते है। शुद्ध शहद , मेवे, जड़ी-बूटियां, फल (जिसमें से कई उत्तर भारत में नहीं मिलते )और शक्तिवर्धक औषधियां प्रचुरता में उपलब्ध हैं। मेरा विश्वास है कि अभी भी यहां के उत्पादों में शुद्धता का प्रतिशत अधिक है। सबसे अधिक मशहूर यहां के हस्त निर्मित चॉकलेट हैं जो लगभग दो सौ से दो सौ पचास रुपये प्रति किलो की दर से मिलतें हैं। इनकी पैकिंग ये इस प्रकार कर देते हैं कि ये कई दिन तक खराब नहीं होते। ऐसे कई सामान हमने भी पैक कराया और यहां दिल्ली में काफी दिनों तक उसका प्रयोग किया।
दोपहर से हमें मदुराई के लिए निकलना था। अगली सुबह तक रामेश्वरम पहुँच जाना हमारा लक्ष्य था। एक ख़ुशी और एक दर्द लिए हम कोडाईकैनाल बस स्टैण्ड के लिए पैदल ही चल पड़े । बस पकड़ी और वापसी की राह पर! अभी कोडाईकैनाल छूटा ही था कि झमाझम बारिश होने लगी। अब यह सफर और भी सुन्दर एवं सुखद हो गया, शायद वर्णनातीत भी।
मैंने महसूस किया कि यहाँ की सुन्दरता में एक अध्यात्म है- एक प्राकृतिक अध्यात्म। आत्मा को , मन को और शारीर को एक दुर्लभ शांति मिलती है। बारिश होती रही , यात्रा चलती रही। इस बार मेरा मन छोटी- छोटी बातों का उल्लेख करने का नहीं हुआ। ऐसी बातें तो होती ही रहती हैं। अभी तो यहां से वापसी भी ठीक से नहीं हुई थी और मन दुबारा आने के विषय में सोचने लगा था। प्रकृति का ऐसा रूप देखकर प्रसिद्ध अंगरेजी कवि विलियम वर्ड्‌सवर्थ की पंक्तियां याद आने लगी थीं-
One impulse from a vernal wood
Can teach you more of man
Of moral evil and of good
Than all the sages can.

Comments

  1. अच्छा लगा..कोडाईकनाल कभी जाना नहीं हुआ लेकिन.


    एक अपील:

    विवादों को नजर अंदाज कर निस्वार्थ हिन्दी की सेवा करते रहें, यही समय की मांग है.

    हिन्दी के प्रचार एवं प्रसार में आपका योगदान अनुकरणीय है, साधुवाद एवं अनेक शुभकामनाएँ.

    -समीर लाल ’समीर’

    ReplyDelete
  2. उत्तम!
    यहाँ की सुन्दरता में एक अध्यात्म है!!

    ReplyDelete
  3. बहुत ही सुन्दर स्थान है । प्रकृति यहाँ एकान्त बैठ निज सँवारति ।

    ReplyDelete
  4. सच कहा आपने ईश्वर सा कलाकार वास्तुकार और चित्रकार और कौन है भला....
    प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य मध्य मन सचमुच सात्विक हो जाता है...
    बड़ा ही रोचक विवरण प्रस्तुत किया है आपने...आभार...

    ReplyDelete
  5. वर्णन तो आपने ऐसा किया है की हम आज ही उड़ के पहुँच जाएँ ,लेकिन शायद आपने जल्दीबाजी में ये लेख लिखा है ,इसके पहले जो रोचकता मैंने आपकी कलम में महसूस की है वो नहीं मिल रही आज ,
    हो सकता है मैं ही गलत हूँ ,मगर कुछ कमी है तो ......

    ReplyDelete
  6. Alkaji,
    you are right and I do agree with you that I have in a haste. In fact I shortened it because nowadays people do not find time to read a longer description. A lot of more is remaining, I have to take the journey upto Rameshwaram and Kanyakumari which are worthseeing and describing places. Next time I will try to give more time.Thanks!

    ReplyDelete
  7. Alkaji,
    I may agree with you that the article was written in a haste. In fact, readers do not have sufficient time nowadays to read longer articles. I have to take my journey up to Rameshwaram and Kanyakumari which are worthseeing places. Next time I will try to give more time.Thanks!

    ReplyDelete
  8. जल्दबाजी में भी आपने लिखा उम्दा है. जानने लायक जो भी बातें थीं, वह तो जान ही लीं. यह पाठक को कोडाईकनाला घूमने के लिए भी प्रेरित करता है. मजा आ गया.

    ReplyDelete
  9. सुन्दर यात्रा वर्णन और प्रकृति चित्रण.

    ReplyDelete

Post a Comment

सुस्वागतम!!

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का