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Showing posts from July, 2010

हरिशंकर राढ़ी को दीपशिखा वक्रोक्ति सम्मान

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कहते हैं बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से खाय! अगर आदमी ढंग का हो, तो उसे अपमान भी ढंग का मिलता है, लेकिन जब आदमी ही ढंग का नहीं होगा तो सम्मान भी उसे कोई कहां से ढंग का देगा. पिछले दिनों कुछ ऐसी ही बात भाई हरिशंकर राढ़ी के साथ हुई. ज़िन्दगी भर इनसे-उनसे सबसे रार फैलाते रहे तो कोई पुरस्कार भी उन्हें ढंग का क्यों देने लगा! हाल ही में उन्हें देवनगरी कहे जाने वाले हरिद्वार में एक ऐसे पुरस्कार से नवाजा गया जिसका नाम दीपशिखा वक्रोक्ति सम्मान है.   यह सम्मान उन्हें हरिद्वार में दीपशिखा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक मंच,ज्ञानोदय अकादमी के एक आयोजन में दिया गया. आचार्य राधेश्याम सेमवाल की अध्यक्षता में दो सत्रों में हुए इसी आयोजन में शायर जनाब अजय अज्ञात को भी दीपशिखा इकबाल सम्मान से नवाजा गया. आयोजन के दूसरे सत्र में कवि गोष्ठी भी हुई. निर्मला छावनी में हुए इस पूरे कार्यक्रम का संचालन कवि-कहानीकार के एल दिवान ने किया. हरिशंकर राढ़ी का स्वागत दीपशिखा मंच के अध्यक्ष डॉ. शिवचरण विद्यालंकार ने किया. श्री के0 एल0 दिवान ने अपने स्वागत भाषण में हरिशंकर राढ़ी को परसाई परम्परा का समर्थ वाहक बताते हुए कहा क...

मेरा गाँव मेरा देश !

[] राकेश 'सोहम' पिछले दिनों बारिश शुरू हुई । बारिश का मौसम है । लेकिन मेंढकों की टर्र टर्र सुनाई नहीं दी ? सिक्सटीज़ - सेवटीज़ में एक फिल्म रिलीज़ हुई - मेरा गाँव मेरा देश । यह एक डाकू की पृष्ठभूमि पर आधारित खूबसूरत फिल्म है । धर्मेन्द्र ने गाँव के नौजवान और विनोद्खन्ना ने डाकू जब्बर सिंह का किरदार निभाया है । इस फिल्म का वह दृश्य याद करें जब रात को डाकू जब्बर सिंह ने धर्मेन्द्र को अपने अड्डे पर रस्सी से बांधकर कैद कर रखा है । बैकग्राउंड में झींगुर और मेंढकों के टर टराने की आवाज़ दृश्य को भयानक बना रही है । जब्बर सिंह धर्मेन्द्र को मारना चाहता है लेकिन तभी उसकी सहायक खलनायिका बिजली सामने आती है और अपने तरीके से मारने की बात रखती है । डाकू जब्बर सिंह मान जाता है और खुश होकर अट्टहास लगाता है । बिजली हाथ में चाक़ू थामे धर्मेन्द्र पर हमला करने आती है लेकिन गबरू नौज़वान पर रीझ जाती है और मदहोश होकर थिरकने लगती है । उसके होंठों से लताजी का मखमली गीत फूट पड़ता है - 'मार दिया जाए कि छोड़ दिया जाए बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए ?' जंगल की प्राकृतिक खामोशी में यह गाना क्या मस्त कर...

खून देने से कमजोरी आती है !!!

रक्त दान जीवन दान ! क्या यह शब्द समूह केवल एक वाक्य है ? क्या अब भी बहुतायत इसे केवल एक नारे की तरह उच्चारते हैं ? शायद हाँ । दो दिन पूर्व शहर के एक सरकारी अस्पताल में एक पति ने प्रसव के लिए अपनी पत्नि को भर्ती किया । पत्नि की शल्य क्रिया के दौरान ओ पाजिटिव रक्त की ज़रुरत थी । भाग्य से उसके पति का रक्त भी ओ पाजिटिव निकला । लेकिन पति ने रक्त देने से मना कर दिया ! उसका कहना था कि खून देने से कमजोरी आती है । अभागी पत्नि का भाग्य दुर्भाग्य में बदलते देर न लगी । उसके पति ने ही उसे रक्त दान करने से मना कर दिया तो चिकित्सक भौचक्के रह गए ! वह बार-बार दलील देता रहा कि वह कमज़ोर नहीं होना चाहता । पैथालौज़ी के कर्मचारियों ने जब रक्त देते अन्य अनेक का उदाहरण दिखाया तब जाकर वह माना । जागरूकता का आलाप छेड़ने वाले आला अधिकारी पहले खुद जागें ताकि जागरूकता की अलख की रौशनी तमाम सोये हुओं तक पहुँच सके । केवल मंत्र सा उच्चारती 'रक्त दान जीवन दान' वाली इलेक्ट्रोनिक मशीन लगा देने से मनोरंजन होता है और जेबें भरती हैं बस !!!

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