तस्वीर मेरी देखना
रतन
इक वक्त आएगा रतन
जब गुजर जाएंगे हम
तस्वीर मेरी देखना
एक दिन होगा बुलंद
तकदीर मेरी देखना
सारे जग में फैलेगी
तासीर मेरी देखना
किस तरह मैंने किया है
दम निकलते वक्त याद
थी जो हाथों में पड़ी
जंजीर मेरी देखना
तुम न मानो मेरा तन-मन
धन तुम्हारे नाम है
छोड़ कर हूं जा रहा
जागीर मेरी देखना
इस जहां में तो नहीं
पर उस जगह मिल जाएंगे
जो बुना है ख्वाब की
ताबीर मेरी देखना
इक वक्त आएगा रतन
जब गुजर जाएंगे हम
तस्वीर मेरी देखना
निखर आती है
ReplyDeleteकैसी 'मजाल',
धीरे धीरे तुम,
तहरीर मेरी देखना.
अच्छी प्रस्तुति.
दमदार अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteवाह...वाह...वाह...
ReplyDeleteमन मुग्ध कर लिया आपकी इस अनुपम रचना ने...
बहुत बहुत बहुत ही सुन्दर लिखा है...
भाव प्रवाह शब्द बिम्ब सब बेजोड़ है...एकदम बेजोड़ !!!