इष्ट देव सांकृत्यायन विषयों में एक विषय है गणित. इस विषय के भीतर भी एक विषय है रेखागणित. ऐसे तो इस विषय के भीतर कई और विषय हैं. अंकगणित, बीजगणित, त्रिकोणमिति, लॉगरिथ्म, संख्यिकी, कलन आदि-आदि, मने विषयों की भरमार है यह अकेला विषय. इस गणित में कई तो ऐसे गणित हैं जो अपने को गणित कहते ही नहीं. धीरे से कब वे विज्ञान बन जाते हैं, पता ही नहीं चलता. हालाँकि ऊपरी तौर पर विषय ये एक ही बने रहते हैं; वही गणित. हद्द ये कि तरीक़ा भी सब वही जोड़-घटाना-गुणा-भाग वाला. अरे भाई, जब आख़िरकार सब तरफ़ से घूम-फिर कर हर हाल में तुम्हें वही करना था, यानि जोड़-घटाना-गुणा-भाग ही तो फिर बेमतलब यह विद्वता बघारने की क्या ज़रूरत थी! वही रहने दिया होता. हमारे ऋषि-मुनियों ने बार-बार विषय वासना से बचने का उपदेश क्यों दिया, इसका अनुभव मुझे गणित नाम के विषय से सघन परिचय के बाद ही हुआ. जहाँ तक मुझे याद आता है, रेखागणित जी से मेरा पाला पड़ा पाँचवीं कक्षा में. हालाँकि जब पहली-पहली बार इनसे परिचय हुआ तो बिंदु जी से लेकर रेखा जी तक ऐसी सीधी-सादी लगीं कि अगर हमारे ज़माने में टीवी जी और उनके ज़रिये सूचनाक्रांति जी का प्रादुर्भाव ...
क्या करें... यह सब तो बहुत याद आता है.
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट.
ReplyDeleteआपको और आपके परिवार को मकर संक्रांति के पर्व की ढेरों शुभकामनाएँ !"
मुझे भी बचपन के दिन याद आते हैं, हम तीन भाई बहनों का झगड़ा।
ReplyDeleteबया के घोंसले बयां करती सी लग रही हैं.
ReplyDeleteखिंचड़ी के दिन ब्राह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करना, पीला वस्त्र पहनकर कुम्हार के यहाँ से लाये मिट्टी के बर्तन (पतुकी) में खिचड़ी बनाने की समस्त सामग्री व लाइ-तिल रखकर मंत्रोच्चार के साथ दान करना। फिर लाई और तिल के लड्डू खाना। फिर सभी भाई-बहन एक साथ पाँत में बै्ठे हुए गरमागर्म खिचड़ी में देसी घी डालकर मूली और बैगन-पालक-सोया के साग के साथ खाने का आनंद अब कहाँ मिल पा रहा है।
ReplyDeleteदिनभर खिंचड़ी मांगने वालों को घर के भीतर से ला-लाकर देना अब पता नहीं कैसे होता होगा? सब घर से दूर अलग-अलग अपनी गृहस्थी में रमे हुए हैं।
इस प्रेम की व्याख्या नहीं की जा सकती ...
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