सूरज हो मुकाबिल तो शरारा नहीं टिकता ।
दिन में कोई आकाश में तारा नहीं दिखता ॥
मुश्किल में बदल जाते हैं हर नाते और रिश्ते-
रोने को भी काँधे का सहारा नहीं दिखता ।
ईमान की कीमत न चुका पाओगे मेरे-
वरना सर-ए-बाज़ार यहाँ क्या नहीं बिकता ।
सरकारें बदल बदल के यह देख लिया है-
हालात बदल पाने का चारा नहीं दिखता ।
संसद पे जमा रक्खा है बगुलों ने यूँ कब्ज़ा-
हंसो का सियासत मे गुज़ारा नहीं दिखता ।
- विनय ओझा स्नेहिल
दिन में कोई आकाश में तारा नहीं दिखता ॥
मुश्किल में बदल जाते हैं हर नाते और रिश्ते-
रोने को भी काँधे का सहारा नहीं दिखता ।
ईमान की कीमत न चुका पाओगे मेरे-
वरना सर-ए-बाज़ार यहाँ क्या नहीं बिकता ।
सरकारें बदल बदल के यह देख लिया है-
हालात बदल पाने का चारा नहीं दिखता ।
संसद पे जमा रक्खा है बगुलों ने यूँ कब्ज़ा-
हंसो का सियासत मे गुज़ारा नहीं दिखता ।
- विनय ओझा स्नेहिल
हर बात सही कही.
ReplyDeleteआक्रोशपूर्ण अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअब तो आक्रोश की जरूरत पड़ने लगी है. सुन्दर अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteसंसद पे जमा रक्खा है बगुलों ने यूँ कब्ज़ा-
ReplyDeleteहंसो का सियासत मे गुज़ारा नहीं दिखता ..
vaah kya baat khee hai.
संसद पे जमा रक्खा है बगुलों ने यूँ कब्ज़ा-
ReplyDeleteहंसो का सियासत मे गुज़ारा नहीं दिखता ..
KYA BAAT...KYA BAAT....KYA BAAT
PRANAM