आओ बदलें शहरों की आत्मा...
गांवों का शहरीकरण हुआ इसमें बुराई भी क्या है..सुख-सुविधा संपन्न हों हमारे गाँव अच्छा ही तो है, लेकिन क्यूँ न हम गाँव वाले जो गाँवबदर हो शहर आ बसे,कुछ ऐसा करें कि शहरों की काया तो शहरी ही हो पर आत्मा का जरुर ग्रामीनिकरण हो जाये....सुख-सुविधा तो शहर की हों पर अपनापन,संबंधों की मिठास, छोटे-बड़े का सम्मान, रिश्तों की गरिमा, खानपान,मस्ती,आबोहवा और अनेकता में एकता से जीने का अहसास गाँव का हो..आप क्या कहते हैं.. ..?
agar aesa ho jaye to kitna acha ho..
ReplyDeleteसच कहा आपने, कोई तो स्थिरता आये इस धमाचौकड़ी में।
ReplyDeleteसही कह रहे हैं.
ReplyDeleteएक मधुर स्वप्न !
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