मेरी पहली सरस्वती वंदना .....
मेरी पहली सरस्वती वंदना
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वर दे, वीणावादिनि वर दे।
प्रिय घोटालेबाजी नव, झूठ फरेब मंत्र हर मन में भर दे।
काट अंध सच के बंधन स्तर
बहा धन के नित नव निर्झर
ईमानदारी हर बस घोटाले भर
घोटाले ही घोटाले कर दे।
चहुँदिश होंवें कलमाडी सर,
कंठ कंठ हों घोटाले स्वर
राजा हों या प्रजा जी हों
सबको घोटालेबाज कर दे।
अवश्य पूरी होगी इच्छा..
ReplyDeleteआप किस पार्टी के प्रवक्ता हैं?
ReplyDeleteसही कहा...पीड़ित व्यथित ह्रदय और क्या कामना करे....
ReplyDeleteसटीक सार्थक व्यंग्य...
यह डिपार्टमेंट तो कभी रहा नहीं वीणावादिनी के पास.
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