ek geet
कारवाँ क्या करूँ
(जीवन के तमाम चमकीले रंगों के बीच श्वेत - श्याम रंग का अपना अलग महत्त्व होता है। बाहर से रंगहीन दिखने वाली सूरज की किरणों में इन्द्र धनुष के सातो रंग समाए होते हैं । श्वेत - श्याम रंग में बना ये क्लॉसिकल चित्र आप भी देखें और सोचें- )
अंजुमन स्याह सा, हर चमन आह सा
दर्द की राह सा मैं रहा क्या करूँ ?
दौड़ते - दौड़ते, देखते - देखते
मंजिलें लुट गईं ,कारवाँ क्या करूँ ?
जिन्दगी -जिन्दगी तू बता क्या करूँ ?
अपनी अर्थी गुजरते रहा देखते
और मैंने ही पहले चढ़ाया सुमन
खुद चिता पर लिटाकर उदासे नयन
रुक गए पाँव लेकर चला जब अगन
पुष्प क्या हो गए , हाय कैसा नमन -
नागफनियों के नीचे दबा था कफन !
अलविदा कर लिया हर ख़ुशी का सजन
रो पड़ीं लकड़ियाँ आंसुओं में सघन
और चिता बुझ गई, कैसे होगा दहन ?
देखकर वेदना यह सिसकती चिता
मरमराने लगी प्रस्फुटित ये वचन -
तुम कहाँ योग्य मेरे प्रणय देवता
लौट जाओ नहीं मैं करूँगी वरण,
हम खड़े के खड़े , मूर्तिवत हो जड़े
दर्द को भेंटते, प्यार को सोचते
शून्य को देखते -देखते रह गए
राख देनी उन्हें थी, खुदा क्या करूँ ?
मंजिलें लुट गईं, कारवाँ क्या करूँ ?
कल्पना खंडहर में बजी बांसुरी
मन थिरक सा उठा एक क्षण के लिए
अनछुई सी गुदगुदाने लगी
ये चरण चल पड़े उस चरण के लिए
स्वप्न संसार में चार चुम्बन लिए
बन्द आँखें हुईं मधुमिलन के लिए,
इन्द्रधनुषी उदासी दुल्हन सी सजी
रास्ते में खड़ी थी वरण के लिए
एक सूरज समूचा समर्पित किया
अधखिले चांद की एक किरण के लिए
जिन्दगी जानकी स्वर्णमृग सी छली
सौ दशानन खड़े अपहरण के लिए
स्नेह- सौन्दर्य की लालसा मर गई
सुख विवश हो गया वनगमन के लिए,
हम लुटे के लुटे, हर कदम पर पिटे
कोसते रह गए, नोचते रह गए
हाँ, इसी हाथ से पंख ऐसे कटे
फड़फड़ाता रहा, आसमाँ क्या करूँ ?
मंजिलें लुट गईं, कारवां क्या करूँ ?
जब मंजिलें ही नहीं, अब कारवाँ कहाँ जायेगा?
ReplyDeleteहाँ, इसी हाथ से पंख ऐसे कटे
ReplyDeleteफड़फड़ाता रहा, आसमाँ क्या करूँ ?
मंजिलें लुट गईं, कारवां क्या करूँ ?
बहुत ख़ूब!
क्या कहूँ इस रचना के भाव और कला सौन्दर्य पर ????
ReplyDeleteअप्रतिम...मुग्धकारी...वाह...वाह...वाह...
आप तो इस विधा में भी प्रवीण निकले...
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