मकरन्द छोड़ जाऊँगा
-हरि शंकर राढ़ी
जहाँ भी जाऊँगा, मकरन्द छोड़ जाऊँगा।
हवा में प्यार की इक गन्ध छोड़ जाऊँगा।
करोगे याद मुझे दर्द में , खुशी भी
निभा के उम्र भर सम्बन्ध छोड़ जाऊँगा।
तुम्हारी जीत मेरी हार पर करे सिजदे
निसार होने का आनन्द छोड़ जाऊँगा।
मिलेंगे जिस्म मगर रूह का गुमाँ होगा
नंशे में डूबी पलक बन्द छोड़ जाऊँगा।
बगैर गुनगनाए तुम न सुकूँ पाओगे
तुम्हारे दिल पे लिखे छन्द छोड़ जाऊँगा।
जमीन आसमान कायनात छोटे कर
बड़े जिगर में किसी बन्द छोड़ जाऊँगा।
बिछड़ के भी न जुदा हो सकोगे ‘राढ़ी’ से
तुम्हारे रूप की सौगन्ध छोड़ जाऊँगा।
बहुत ही सुन्दर और कोमल अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteअद्भुत! बहुत ही सुन्दर भावाभिव्यक्ति है.
ReplyDeleteआह...मनमोहक, अतिसुन्दर...
ReplyDeleteकोमल भावों की भावुक अभिव्यक्ति...
बगैर गुनगनाए तुम न सुकूँ पाओगे
ReplyDeleteतुम्हारे दिल पे लिखे छन्द छोड़ जाऊँगा।
बहुत सुन्दर पंक्तियां...बहुत सुन्दर रचना....
निभा के उम्र भर सम्बन्ध छोड़ जाऊँगा।
ReplyDeletevaah!
छंद का मजा ही कुछ अलग है!
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