vyangya banam mahila visheshank
व्यंग्य बनाम महिला विशेषांक -हरिशंकर राढ़ी (दूसरी किश्त ) ( यह व्यंग्य समकालीन अभिव्यक्ति के नारी विशेषांक के 'वक्रोक्ति ' स्तम्भ के लिए लिखा गया था और अप्रैल -अक्टूबर २०११ अंक में प्रकाशित हुआ था .) ''व्यंग्यकार हो सका हूँ? अरे यह क्यों नहीं कहते कि जिनके कारण जिन्दगी स्वयं व्यंग्य हो चुकी है उसी पर व्यंग्य लिखना है! चलिए, मान लिया कि श्रीमती जी पर व्यंग्य लिख भी दूँ, फिर इस बात की क्या गारंटी है कि मेरे प्राण संकट में नहीं होंगे? मैं अपनी ही छत के नीचे अपरिचित नहीं हो जाऊँगा? अच्छी खासी दो रोटी मिल रही है, वह भी मुश्किल हो जाएगी। कोई अंगरेजी लेखक भी नहीं ह...