बाइट, प्लीज (उपन्यास, भाग- 2)
( जस्टिस काटजू को समर्पित , जो पत्रकारिता में व्याप्त अव्यवस्था पर लगातार चीख रहे हैं …. ) 4 . नीलेश पंद्रह दिन तक खबर न्यूज से बुलावा आने का इंतजार करता रहा। किस्मत अच्छी थी कि अलीनगर के एक मुस्लिम मित्र इमरान के बड़े से मकान में उसके रहने की व्यवस्था हो गई थी। इमरान का पूरा परिवार वर्षों से दुबई में रह रहा था और वह खुद दिल्ली में रहकर जेएनयू से एमफिल कर रहा था। पटना में उसका मकान खाली पड़ा था। मकान की देखभाल होता रहे इस लिहाज से अपने गांव के ही एक बंदे मोहम्मद करीम को उसने मकान में रहने की इजाजत दे दी थी जो पटना के एक स्कूल में उर्दू का शिक्षक था। नीलेश ने करीम से उर्दू सीखाने को कहा और वह फौरन तैयार हो गया। उर्दू की पढ़ाई के साथ - साथ मीडिया में अपने लिए बेहतर जगह पाने की नीलेश की कवायद जारी रही। इस दौरान पटना में रहने वाले अपने पुराने दोस्तों की तलाश भी जारी कर दी थी , खासकर उन दोस्तों को बड़ी सरगर्मी से तलाश कर रहा था , जो मीडिया के क्षेत्र में सक्रिय थे। इसी क्रम में उसकी मुलाकात सुकेश विद्वान से हुई। सुकेश विद्वान लंबे समय तक दिल्ली के एक मीडिया हाउस में काम कर चुका था।...