संसद बनाम जनता
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संसद बनाम जनता
अन्ना हजारे जी के साथ जब पूरा देश लोकपाल बिल के लिए आन्दोलन कर रहाथा तब सारे सांसद, विपक्ष को छोड़ करएक स्वर में घोषणा कर रहे थे कि संसद सर्वोच्च है। क़ानून बनाने का काम संसद का है और प्रत्येक सर्वोच्च संस्थाको यह विशेष अधिकार होता है कि वह कार्य करे या न करे तभी तो वह सर्वोच्च है।उसी तरह संसद को इस बात की भी स्वतंत्रता होती है कि सही क़ानून बनाए यागलत क़ानून बनाए , कमज़ोर क़ानून बनाए या मज़बूत क़ानून बनाए या कोई भीकानून न बनाए । उसके ऊपर कोई दबाव बनाना उसकी सर्वोच्चता को चुनौती देनाहै, और ऐसा करना संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन है । उसकी सर्वोच्चता कोचुनौती देने का परिणाम बाबा रामदेव अच्छी तरह समझ चुके हैं किन्तु अन्ना जीको समझाने में अभी समय लगेगा।
सरकार बार बार समझाती रही कि लोकपाल से ही भ्रष्टाचार नहीं मिटेगा। इसकेलिए ढेर सारे कदम उठाने पड़ेंगे, किन्तु यक्ष प्रश्न यह है कि वे कदम कब उठाएजाएँगे और उन्हें उठाने से कौन से लोग रोक रहे हैं। एक दो बार को छोड़ दें तोआज़ादी के बाद से अब तक कांग्रेस ही केंद्र में रही है पर वे कदम क्यों नहीं उठाएगए इसका जवाब कोई और ही देने को तैयार है। आज अब भ्रष्टाचार रुपी का कोढ़का वाइरस पूरे लोकतंत्र की नसों में इस तरह फ़ैल चुका है कि अब उपचार के आशाकी कोई किरण ही नहीं दिखाई देती ।
कभी राजीव गाँधी जी ने अनुभव किया था कि किसी विकास योजना के तहत सौपैसा दिल्ली से चलता है तो गाँव तक पहुँचते पहुँचते मुश्किल से दस पैसा रहजाता है । किन्तु राजीव जी बहुत भोले व्यक्ति थे उन्हें यह पता नहीं था कि नब्बेपैसे कहाँ पहुँच रहे हैं । एक दो बार राहुल जी ने भी वही बात दुहराई है शायद वह भीउतने ही भोले हैं । किन्तु अन्ना हजारे और भारत की सारी जनता को पता है किउन विकास योजनाओं के नब्बे पैसे कहाँ चले गए और उन्हें वापस लाने के लिएआन्दोलन चलाने वाले बाबा रामदेव और उनके साथ के लोगों का क्या हाल हुआ ।
पहले तो दुष्प्रचार किया गया कि अन्ना जी भी दूध के धुले नहीं हैं , फ़ौज के भगोड़ेहैं , उन्होंने सरकारी अनुदान का घपला किया है, आर एस एस के एजेंट हैं बी जे पीके लोग उन्हें बरगलाकर इस्तेमाल कर रहे हैं आदि आदि ..लेकिन अन्ना टीमआन्दोलन पर आमादा थी । दिन पर दिन अनशन के बढ़ते गए , जन सैलाबउमड़ता गया, जनाक्रोश बढ़ता जा रहा था और सरकार घिरती गई और अंत में पूरीसंसद ने एक स्वर में संकल्प प्रस्ताव पारित किया कि हम आदरणीय अन्ना जीकी भावना का सम्मान करते हैं और आश्वस्त करते हैं कि कि एक सशक्त लोकपालबिल ला कर दिखाएंगे किन्तु इसमें थोडा समय लगेगा । उपवास टूट गया।फिर संसद की सर्वोच्चता का भाव जागा । लोक पाल बिल का मसौदा पेश हुआ और लोक सभा में बहस शुरू हुई ।
लोक सभा में बहस की तीन धारा थी । पहली धारा यह थी कि संसद सर्वोच्च है, उसे जैसा चाहे वैसा क़ानून बनाने का विशेष अधिकार है । इस विशेषाधिकार में क़ानून न बनाने का भी विशेषाधिकार है, इस पर क़ानून बनाने के लिए दबाव बनाना भी विशेषाधिकार का उल्लंघन है । बहस की दूसरी धारा यह थी कि लोक पाल कितना मज़बूत हो ? लालूजी और मुलायम जी का कहना था कि लोक पाल इतना मज़बूत न हो कि सरकार की ही छाती पर चढ़ बैठे और कहने लगे कि मार दिया जाय कि छोड़ दिया जाय ,बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए ? बहस की तीसरी धारा यह थीकि लोकायुक्त बना कर राज्यों की स्वायत्तता न छीनी जाए ।राज्यों को अपने विषय पर क़ानून बनाने का निरापद अधिकार है ।राज्य के विषय पर राज्य की विधायिका सर्वोच्च है । सर्वोच्च संस्था की संविधान में कोई स्पष्ट लक्ष्मण रेखा नहीं खींची गयी है ।लोकायुक्त की नियुक्ति की बात मानने में राज्यों की विधायिका की सर्वोच्च्ता को ख़तरा है । संविधान की भूमिका में साफ लिखा गया है कि हम भारत के लोग समाजवादी धर्म निपेक्सह्य , लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना हेतु संविधान को लोकार्पित करते हैं ।चुनाव के बाद जिस संविधान की शपथ खाते हुए जिस जनता की सेवा करने के लिए संकल्प लिया जाता है फिर वे लोग कोइ महत्व नहीं रखते हैं । असली बात यह है कि पांच साल तक संसद सर्वोच्च रहती है फिर चुनाव आता है और तब जो पांच साल तक संसद की सर्वोच्चता की दुहाई देते थे वही लोग गाँव -गाँव,गली- गली, शहर शहर शराब, पैसे और कम्बल बांटते हैं और दोनो हाथ जोड़ कर भिखारियों की तरह दीन-हीन भाव दिखाते हुए वोट मांगते हुए कहते हैं कि जनता सर्वोच्च है । दस खलनायकों को खडा कर उनमें से एक को जन नायक चुनने की अपील करते हैं और हम उनमें से एक खलनायक को बेचारगी से जन नायक चुन कर संसद में भेज देते हैं ।वही जब सदन में पहुँच जाता है फिर जोर से चिल्लाता है कि संसद सर्वोच्च है और जनता पांच साल तक ठगी- ठगी सी रह जाती है और वे करोड़ों जनता को अंगूठा दिखा दिखा कर पांच साल तक कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है । विनय ओझा 'स्नेहिल' at 6:40 AM Labels: व्यंग
लोक सभा में बहस की तीन धारा थी । पहली धारा यह थी कि संसद सर्वोच्च है, उसे जैसा चाहे वैसा क़ानून बनाने का विशेष अधिकार है । इस विशेषाधिकार में क़ानून न बनाने का भी विशेषाधिकार है, इस पर क़ानून बनाने के लिए दबाव बनाना भी विशेषाधिकार का उल्लंघन है । बहस की दूसरी धारा यह थी कि लोक पाल कितना मज़बूत हो ? लालूजी और मुलायम जी का कहना था कि लोक पाल इतना मज़बूत न हो कि सरकार की ही छाती पर चढ़ बैठे और कहने लगे कि मार दिया जाय कि छोड़ दिया जाय ,बोल तेरे साथ क्या सलूक किया जाए ? बहस की तीसरी धारा यह थीकि लोकायुक्त बना कर राज्यों की स्वायत्तता न छीनी जाए ।राज्यों को अपने विषय पर क़ानून बनाने का निरापद अधिकार है ।राज्य के विषय पर राज्य की विधायिका सर्वोच्च है । सर्वोच्च संस्था की संविधान में कोई स्पष्ट लक्ष्मण रेखा नहीं खींची गयी है ।लोकायुक्त की नियुक्ति की बात मानने में राज्यों की विधायिका की सर्वोच्च्ता को ख़तरा है । संविधान की भूमिका में साफ लिखा गया है कि हम भारत के लोग समाजवादी धर्म निपेक्सह्य , लोकतान्त्रिक गणराज्य की स्थापना हेतु संविधान को लोकार्पित करते हैं ।चुनाव के बाद जिस संविधान की शपथ खाते हुए जिस जनता की सेवा करने के लिए संकल्प लिया जाता है फिर वे लोग कोइ महत्व नहीं रखते हैं । असली बात यह है कि पांच साल तक संसद सर्वोच्च रहती है फिर चुनाव आता है और तब जो पांच साल तक संसद की सर्वोच्चता की दुहाई देते थे वही लोग गाँव -गाँव,गली- गली, शहर शहर शराब, पैसे और कम्बल बांटते हैं और दोनो हाथ जोड़ कर भिखारियों की तरह दीन-हीन भाव दिखाते हुए वोट मांगते हुए कहते हैं कि जनता सर्वोच्च है । दस खलनायकों को खडा कर उनमें से एक को जन नायक चुनने की अपील करते हैं और हम उनमें से एक खलनायक को बेचारगी से जन नायक चुन कर संसद में भेज देते हैं ।वही जब सदन में पहुँच जाता है फिर जोर से चिल्लाता है कि संसद सर्वोच्च है और जनता पांच साल तक ठगी- ठगी सी रह जाती है और वे करोड़ों जनता को अंगूठा दिखा दिखा कर पांच साल तक कहते हैं कि संसद सर्वोच्च है । विनय ओझा 'स्नेहिल' at 6:40 AM Labels: व्यंग
Posted by विनय ओझा 'स्नेहिल' at 6:40 AM
हम मुश्किलों से लड़ कर मुकद्दर बनाएँगे।
गिरती हैं जहाँ बिजलियाँ वहाँ घर बनाएँगे।।
पत्थर हमारी राह के बदलेंगे रेत में -
हम पाँव से इतनी उन्हें ठोकर लगाएँगे॥
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Achchha likha hai aapne.. Pls review my hindi blog as well..
ReplyDeletehttp://mynetarhat.blogspot.in/2012/07/nepuraa-iv.html