ग़ज़ल
इष्ट देव सांकृत्यायन
सरकार राजधानी में है, कोई लापता नहीं है
कहीं कुछ भी हो, सवाल उसकी नाक का नहीं है
वो जमता है कि गलता है अपनी मर्जी से
बर्फ़ से अब कोई रिश्ता ताप का नहीं है
तुमने बनाया मैं पहन लूं, ऐसा क्या क़ानून
दुनिया का हर कुर्ता मेरी नाप का नहीं है
बुलुआ के घर में सब टेढ़े, कुछ साजिश है
ये मामला किसी औघड़ के शाप का नहीं है
ललिया पर पत्थर बरसे, तुमने फेरी पीठ
लोकतंत्र में यह निर्णय केवल खाप का नहीं है
धूप-हवा-पानी पर सबका हक़ है भाई
इतना बड़ा आसमान अकेले आप का नहीं है
जबसे रेल चलने लगी बिजली से मारती है झटका
सुनते हैं, अब कहीं कोई इंजन भाप का नहीं है.
सरकार राजधानी में है, कोई लापता नहीं है
कहीं कुछ भी हो, सवाल उसकी नाक का नहीं है
वो जमता है कि गलता है अपनी मर्जी से
बर्फ़ से अब कोई रिश्ता ताप का नहीं है
तुमने बनाया मैं पहन लूं, ऐसा क्या क़ानून
दुनिया का हर कुर्ता मेरी नाप का नहीं है
बुलुआ के घर में सब टेढ़े, कुछ साजिश है
ये मामला किसी औघड़ के शाप का नहीं है
ललिया पर पत्थर बरसे, तुमने फेरी पीठ
लोकतंत्र में यह निर्णय केवल खाप का नहीं है
धूप-हवा-पानी पर सबका हक़ है भाई
इतना बड़ा आसमान अकेले आप का नहीं है
जबसे रेल चलने लगी बिजली से मारती है झटका
सुनते हैं, अब कहीं कोई इंजन भाप का नहीं है.
आसमान अकेले आप का हीं है
ReplyDeleteBahut Khoo.....b