कैसे कहूं?
इष्ट देव सांकृत्यायन
ज़िंदगी से ज़िंदगी ही लापता है, कैसे कहूं?
हर ज़ख़्म ही दिया हुआ आपका है, कैसे कहूं?
हुक़ूमत क़ानून की है, ऐसा कहा जाए
ज़िंदगी से ज़िंदगी ही लापता है, कैसे कहूं?
हर ज़ख़्म ही दिया हुआ आपका है, कैसे कहूं?
हुक़ूमत क़ानून की है, ऐसा कहा जाए
और ये भी हुक़्म उनके बाप का है, कैसे कहूं?
सहाफ़त से शराफ़त के सारे रिश्ते ख़त्म
सियासत सा ये धंधा पाप का है, कैसे कहूं?
किताब-ए-तर्ज़-ए-हुक़ूमत के हर सफ़े में सुन
उसी के गर्ज़ का फैला रायता है, कैसे कहूं?
झोपड़ी के सामने ही महल है, पर दरमियां
करोड़ों मील लंबा फ़ासला है, कैसे कहूं?
करोड़ों मील लंबा फ़ासला है, कैसे कहूं?
Aakhiri She'r mein bahut dum hai.
ReplyDeleteधन्यवाद राढ़ी जी.
Delete:-)
Aakhiri She'r mein bahut dum hai.
ReplyDeleteहुए दागी भले बागी मगर युवराज बोले
ReplyDeleteये सिंहासन तो मेरे बाप का है, कैसे कहूँ?
जो मंत्री थूककर अब चाटते हैं चैनेलों पर
घड़ा भरता ही जाता पाप का है, कैसे कहूँ?
ये कैसी बेदरी है इस अभागे देश की सुन
कहो पप्पू, कहो फेंकू फसाना साँप का है, कैसे कहूँ?
आप तो सिद्धार्थ जी अब आशु कवि हो गए हैं. हर शे'र में इतना दम और ऐसा तारतम्य है कि जोड़ लेने का मन होता है. :-)
Deleteआप तो सिद्धार्थ जी अब आशु कवि हो गए हैं. हर शे'र में इतना दम और ऐसा तारतम्य है कि जोड़ लेने का मन होता है. :-)
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