ग़ज़ल
इष्ट देव सांकृत्यायन तुम्हारे इल्म की हाकिम कोई तो थाह हो कोई एक तो बताओ, यह कि वह राह हो जेब देखते हैं सब स्याह हो कि हो सफ़ेद कौन पूछता है अब चोर हो या साह हो अंगूर क्या मकोय तक हो गए खट्टे यहां सोच में है कलुआ अब किस तरह निबाह हो दर्द सिर्फ़ रिस रहा हो जिसके रोम-रोम से उस थके मजूर को क्या किसी की चाह हो दिखो कुछ, कहो कुछ, सुनो कुछ, करो और कुछ तुम्हीं बताओ तुमसे किस तरह सलाह हो की नहीं बारिशों से कभी मोहलत की गुज़ारिश निकले तो बस निकल पड़े भले पूस माह हो मत बनो सुकरात कि सिर कलम हो जाएगा अदा से फ़ालतू बातें करो, वाह-वाह हो.