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Showing posts from November, 2014

पत्रकार, गिरगिट और झाड़ू की सींक

घर से निकला ही था कि देखा, मेरी फटफटिया के सीट पर गिरगिट जी विराजमान हैं. मैंने पूछा - कौन हैं सर आप? यहां कैसे विराज रहे हैं? आप तो इसे शायद चला भी नहीं पाएंगे?  उन्होंने मेरे किसी भी सवाल का जवाब देने के बजाय उलटा सवाल ठेल दिया - जर्नलिस्ट हो क्या बे? एक साथ इत्ते सारे सवाल .... और पहचानते भी नहीं मुझे?  मैंने कहा - हूं तो, पर आपने जान कैसे लिया?  'बिना सोचे-समझे इत्ते सारे सवाल कोई जर्नलिस्ट ही कर सकता है', उनका जवाब था, 'गनीमत है कि तुम प्रिंट मीडिया वाले लगते हो.' मैं तो हैरान, 'आप तो महाज्ञानी हैं सर! ये भी आपने कैसे जान लिया...?' 'इसलिए कि तुम प्रासंगिक सवाल कर रहे हो. माइक-कैमरा वाले होते तो सवाल-जवाब दोनों के सिर-पैर से तुम्हारा कोई मतलब नहीं होता.' 'वाह! आप तो केवल अंतर्यामी ही नहीं, बुद्धिजीवी भी लगते हैं. ऐसी तार्किक सोच तो ज्ञानीजनों में भी दुर्लभ है.' मैंने स्तुति में नतमस्तक होते हुए अपनी शंका उनके समक्ष रखी, 'हे सर, अब तो अपना परिचय दें.'  ‘अरे मूर्ख, अब तक नहीं पहचाना मुझे? मैं वही हूं जिसे 49 सर ने अपने चुनाव चिन्ह के र...

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