कुछ नहीं
इष्ट देव सांकृत्यायन
एक कण भी धूल का संपूर्ण से कम कुछ नहीं
ग़ौर से देखो ज़रा तुम आंख से नम कुछ नहीं
नाभि में अमृत सहेजे हंस रहा है ठठाकर
मर गया रावण, इससे बड़ा भ्रम कुछ नहीं.
कुंभकर्णी नींद से जागो तो तुम देख पाओ
मेघ के नाद में बस रोष है, संयम कुछ नहीं
क्रिकेट ही नहीं, शतरंज में भी अहम है टीम ही
नाभि में अमृत सहेजे हंस रहा है ठठाकर
मर गया रावण, इससे बड़ा भ्रम कुछ नहीं.
कुंभकर्णी नींद से जागो तो तुम देख पाओ
मेघ के नाद में बस रोष है, संयम कुछ नहीं
क्रिकेट ही नहीं, शतरंज में भी अहम है टीम ही
एक प्यादा भी यहाँ सम्राट से कम कुछ नहीं
जो भी कूवत है धरा पर केवल प्रेम में है
दंभ, ईर्ष्या, घृणा, दंड या छल में दम कुछ नहीं
प्राण जाने हों तो निकलें जाएं, बेफ़िक्र हैं हम
मर-मर के जीना पड़े, इससे बड़ा ग़म कुछ नहीं
जो भी कूवत है धरा पर केवल प्रेम में है
दंभ, ईर्ष्या, घृणा, दंड या छल में दम कुछ नहीं
प्राण जाने हों तो निकलें जाएं, बेफ़िक्र हैं हम
मर-मर के जीना पड़े, इससे बड़ा ग़म कुछ नहीं
बहुत उम्दा
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ReplyDeleteबहुत ही उत्तम रचना प्रस्तुत की है आपने।
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