Maihar Yatra
मैहर और चित्रकूट
-हरिशंकर राढ़ी
यह जिज्ञासा मेरे मन में बहुत दिनों से थी कि न जाने उस चित्रकूट की धरती पर क्या रहा होगा कि अत्रि मुनि और उनकी लोकविख्यात पत्नी सती अनुसुइया ने सदियों तक निवास किया, वनवास के चौदह वर्षों में से बारह वर्ष श्रीराम ने यहीं बिताए; न जाने किस सत्य और शांति की तलाश में गोस्वामी तुलसी दास ने रामघाट पर बसेरा डाला और अकबर के नौरत्नों में प्रमुख कविवर रहीम ने भी शरण लेने के लिए चित्रकूट को ही चुना। तीर्थराज प्रयाग से दक्षिण पश्चिम लगभग सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर स्थित चित्रकूट राम के काल में कोई तीर्थ नहीं हुआ करता था। हाँ, यहाँ की सुंदर उपत्यकाओं में ऋषियों - मुनियों एवं साधकों ने सिद्धियाँ जरूर प्राप्त की थीं, किंतु वे किसी लौकिक लाभ में संलग्न नहीं थे। निष्चित रूप से मंदाकिनी के इर्द-गिर्द घने और आकर्षक जंगल रहे होंगे क्योंकि अंधाधुंध कटान के बावजूद उसके आस-पास के जंगल मन को आज भी मोहते हैं। मंदाकिनी अपने नाम के अनुरूप मंथर गति से बहती अलौकिक तृप्ति देती रही होगी। चित्रकूट शहर के तमाम गंदे नालों का जहर पीती हुई यदि वह आज भी सुंदर दिखती है तो राम से लेकर रहीम तक के समय वह आत्मा को तृप्त क्यों नहीं करती रही होगी ?चित्रकूट यात्रा हेतु मैंने विजयदशमी के अवकाश का समय चुना। अवकाश एवं मौसम दोनों ही यात्रा के अनुकूल थे। अपने भौगालिक ज्ञान के जरिए इतना अंदाजा मुझे जरूर था कि चित्रकूट और मैहर आस-पास ही हैं और दोनों स्थलों का भ्रमण एक ही प्रयास में किया जा सकता है। माँ शारदा के शक्तिपीठ के रूप में मैहर दूर-दूर तक विख्यात है और यहां देश के हर भाग से लोग दर्शनार्थ आते हैं। एक पारिवारिक मित्र के साथ कार्यक्रम बना और यह निश्चित किया गया कि पहला पड़ाव मैहर में डाला जाए और उसके बाद चित्रकूट की परिक्रमा की जाए। मैहर में माँ शारदा के मंदिर और कोई विशेष आकर्षण नहीं है। अतः वहां के लिए एक रात खर्च करने का निर्णय हुआ। निजामुद्दीन से जबलपुर जाने वाली महाकौषल एक्सप्रेस में मैहर तक आरक्षण करा लिया और लौटने का चित्रकूट धाम कर्वी से उत्तर प्रदेश संपर्क क्रांति में।
मंदिर के सामने हमारा परिवार |
शारदा माँ के दर्शन -
दर्शन के लिए निकलते-निकलते हमें लगभग एक बज गए थे। मैहर स्टेशन से धाम की दूरी ज्यादा नहीं है, लगभग दो किमी होगी। धाम में बहुत पहले ही गाडि़यों को रोक लिया जाता है। वहाँ से पैदल यात्रा शुरू होती है और प्रवेषद्वार से लगभग साढ़े सात सौ सीढि़याँ चढ़नी पड़ती हैं। हाँ, अब उड़नखटोले (रोपवे) की सुविधा शुरू हो गई और असमर्थ, बीमार और धनाधिक्य वाले लोग इसका उपयोग कर सकते हैं। हमें तो सीढि़यों से ही जाना था। सो, प्रसाद वगैरह लिया और चढ़ाई शुरू कर दी। हाँ, सीढि़यों पर रेलिंग और छाया की व्यवस्था उद्योग जगत की दान शीलता से कर दी गई है जो चढ़ाई को सुगम बना देती है।
मंदिर की स्थापना एवं महत्त्व -
माँ शारदा के इस मंदिर को प्रायः शक्तिपीठ माना जाता है। मंदिर बहुत विशाल नहीं है किंतु त्रिकूट पर्वत शिखर खर पर स्थित होने के कारण सुंदर और महत्त्वपूर्ण लगता है। ऐसी मान्यता है कि देवी सरस्वती का एक पुत्र था जिसका नाम दामोदर था। वह बहुत ही प्रखर बुद्धि का था । एक बार शास्त्रार्थ में उसने देवगुरू बृहस्पति को ब्रहमर्शियों के सामने हरा दिया। इससे क्रोधित होकर देवगुरू ने उसे पृथ्वीलोक पर जन्म लेने का श्राप दिया। श्राप जानकर माता सरस्वती को बहुत दुख हुआ और उन्होंने देवगुरु से बहुत अनुनय-विनय की। गुरु ने उसे तेजस्विता का वरदान दिया। अंततः यही पुत्र पृथ्वी लोक पर जन्म लेकर सोलह वर्ष की उम्र में यश प्राप्त किया और समुद्र के तट पर भगवान जगन्नाथ के दर्शन कर बैकुंठ लोक को गया। उस पुत्र की स्मृति में पृथ्वी पर माता शारदा की इस प्रतिमा की स्थापना पिता देवधर ने कराई।
इस मंदिर के पीछ प्रसिद्ध ऐतिहासिक योद्धा आल्हा-ऊदल की कथाएँ जुड़ी हैं। वैसे तो आल्हा-ऊदल का कोई बड़ा ऐतिहासिक प्रमाण नहीं मिलता किंतु उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेशके लोकगायक आल्हा-ऊदल की कथाओं को अतिरंजित करके बड़ा रोमांच पैदा करते हैं। इन दो भाइयों के अथाह बल को आज भी प्रषंसा प्राप्त है और साथ में उनके माहिल मामा शकुनि मामा की तरह कुटिल किंतु लोकप्रिय पात्र के रूप में याद किए जाते हैं।सबसे बड़ी किंवदंती यह है कि माना जाता है कि आज भी आल्हा शारदा माँ के मंदिर में प्रथम पुष्प अर्पित करते हैं। प्रातःकाल जब मंदिर के किवाड़ खुलते हैं तो माँ के चरणों में ताजे फूल चढ़े मिलते हैं। इस रहस्य के पीछे आल्हा का अमर होना माना जाता है जिन्हंे माँ शारदा ने अमर होने का वरदान दिया था।
अन्य दर्शनीय स्थल-
मैहर मुख्यतः शारदा माँ के मंदिर के लिए ही विख्यात है। सामान्य रूप से लोग दर्शन करके वापस चले जाते हैं। चूँकि अपनी दृश्टि दर्शन से अधिक वहाँ के भौगोलिक और ऐतिहासिक महत्त्व पर अधिक रहती है, इसलिए आस-पास के स्थलों को देखे बिना मेरे लिए वापस आना असंभव सा होता है। मैं जानता था कि यह भूमि आल्हा की प्रसिद्ध भूमि महोबा के आस-पास की है, सो आल्हा-ऊदल के अवशेष जरूर होंगे। बचपन में आल्हा गायकों की जुबान से सुना था-
खारा पानी है मोहबे का खारी बात सही ना जाय
ऊदल लड़ैया तेग न छोडें़, चाहे राज अमल होइ जाय।
सो, पता लगा कि पास में ही आल्हादेव मंदिर, आल्हा का तालाब एवं आल्हा का अखाड़ा है। एक बड़ा आॅटो रिक्शा तीन सौ रुपये में घुमा लाने को तैयार हो गया। हाँ, उसके साथ आ जाकर पता लगा कि वह एक अच्छा आदमी था।
आल्हादेव मंदिर:
आल्हा देव मंदिर छाया ; हरिशंकर राढ़ी |
यह मंदिर शारदा मंदिर की पहाड़ी त्रिकूट की पिछली दिशा में है। चारो तरफ हरीतिमा ही हरीतिमा फैली हुई है। मंदिर सामान्य सा है। अंदर आल्हादेव की मूर्ति स्थापित है और निकट ही दो विषाल वास्तविक खड़ाऊँ है जिसके बारे में मान्यता है कि आल्हा इन्हें पहना करते थे। मंदिर के पृश्ठभाग में एक विषाल जलपूर्ण सरोवर है। इसमें आल्हा नहाया करते थे। प्रदुषण इस युग में ऐसा स्वच्छ तालाब देखकर अच्छा लगा। कुछ दूर आकर आल्हा का अखाड़ा है जहां वे मल्लयुद्ध का अभ्यास किया करते थे। हालाँकि अखाड़ा कोई विशेष बड़ा नहीं है, पर षायद आज के अतिक्रमण का असर हो।
आल्हा तालाब छाया ; हरिशंकर राढ़ी |
इसके अतिरिक्त मैहर में बड़ी माई का मंदिर है जो शारदा देवी की बड़ी बहन हैं। कुछ अन्य मंदिरों का दर्शन कर हम शाम को होटल आए और अगली सुबह वहाँ से चित्रकूट के लिए चलना था।
सुविधाएँ-
आल्हा का अखाडा छाया ; हरिशंकर राढ़ी |
मैहर दिल्ली जबलपुर रेलमार्ग पर स्थित एक बड़ा स्टेशन है। यहाँ के लिए हजरत निजामुद्दीन से महाकौशल एक्सप्रेस सायंकाल जाती है। मैहर इलाहाबाद -मुंबई रेलमार्ग पर भी है और इलाहाबाद से आसानी से पहँुचा जा सकता है। सड़क मार्ग से भी मैहर हर बड़े शहर से जुडा है और ठहरने से लेकर भोजन की सुविधाओं की कमी नहीं है। मंदिर ट्रस्ट की भी धर्मशाला है जो एक बार में बारह घंटे के लिए बुक होती है। अक्टूबर 2014 की सूचना के अनुसार धर्मशालाओं की बुकिंग आॅनलाइन होने वाली थी।
एक और अच्छी बात कि अन्य मंदिरों की भांति यहाँ पंडे-पुजारियों का आतंक और लूटपाट नहीं है। हाँ, भिखारियों पर कोई कंट्रोल नहीं है!
बढ़िया जानकारी … किंवदंती यह भी है कि आल्हा ऊदल के अखाड़े में कभी घास या खरपतवार नही उगी दिखाई देती, वे आज भी वहां अभ्यास करते हैं ...
ReplyDeleteसुंदर वर्णन है. मैं 1995 में मैहर गया था. आल्हा के अखाड़े वगैरह की जानकारी तो मुझे थी नहीं, होती भी तो क्या कर लेता! हां, मैहर घराने उस्ताद अली अकबर खां साहब तब जीवित थे. सोचा था कि शायद भेंट हो सके, पर हो नहीं पाई. केवल दर्शन करके चित्रकूट और फिर पन्ना होते हुए खजुराहो चला गया. फिर मौका लगा तो ताल-अखाड़ा भी देख आउंगा.
ReplyDeleteHii there
ReplyDeleteNice Blog
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Maihar Devi story in Hindi
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ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteहम अभी-अभी मैहर माता के दर्शन किये, और धन्य हो गए।
ReplyDeleteNo words to describe such a great article. Each and everything is brilliantly described in the post and the images are next level.
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लेख लिखा है अपने धन्यवाद जानकारी साँझा करने के लिए
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