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Mahraj ganj: Azamgarh

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महराजगंज बाज़ार                     -हरिशंकर राढ़ी   महराजगंज की स्थिति को लेकर पिछले लेख में लिखी गई बातें तथ्यपरक साबित हो रही हैं। विशुनपुर की तुलना में महराजगंज नया है और यह गाँव विशुनपुर की भूमि पर बसा है। यह बात स्थानीय लोग तो मानते ही हैं, सरकारी अभिलेखों से भी सिद्ध होती है। वैसे भी महराजगंज बाजार की अधिकांश जमीन विशुनपुर के राढ़ियों के खेत की है और अभी भी उनकी जमीन में बहुत सी दूकाने किराए पर चल रही हैं। हाँ, समय के साथ एक बड़ा हिस्सा क्षेत्रीय लोगों ने खरीद लिया है और अब इनका वर्चस्व कम होता जा रहा है। आजमगढ़ गजेटियर के एक अंक में महराजगंज के बारे में कुछ सूचना उपलब्ध है। इस सूचना के अधिकांश भाग को तथ्यपरक माना जा सकता है। आजमगढ़ गजेटियर इस अंक के पृष्ठ 244  पर लिखता हैः The town is situated in mauza Bishanpur on the banks of the Chhoti Sarju. Close to it is a famous old Hindu shrine of Bhairo and Bishanpur has probably long been inhabitated mauza. The name of Mahrajganj however is of comparatively recent origin ...

खेत नहीं थे तो बुजुर्ग ने छत पर उगा दी फसल, वैज्ञानिक भी हैरान

मुझे श्री भागीरथी बिसई जी के बारे में अपने स्तर से कोई जानकारी नहीं है. फेसबुक पर सतनाम भाई ने एक लिंक साझा किया है, उसी से उपलब्ध जानकारी आप तक पहुँचा रहा हूँ.     -इष्ट देव नई दिल्ली ( 27 नवंबर ): एक 73 वर्षीय किसान किसान भागीरथी बिसई ने अपने घर की छत पर ही धान की खेती की है। दरअसल बिसई के पास खेत नहीं हैं। उन्होंने लीज पर खेत लेने के बजाय खुद ये नया तरीका इजाद कर लिया। खेती में छत गिर न जाए, इसके लिए उन्होंने छत पर रेत और सीमेंट की ढलाई तो कराई, लेकिन लोहे की छड़ के साथ बांस की लकड़ी लगवाई। उनका तर्क है कि बांस जल्दी नहीं सड़ता। बास के कारण सीलन की समस्या दूर हो गई। छत पर मिट्टी की छह इंच परत बिछाई गई है। वह परंपरागत किसान हैं। इस एक्सपेरिमेंट के लिए उन्होंने कोई ट्रेनिंग नहीं ली है। बिसई ने 2004 में एफसीआई से रिटायर होने के बाद 100 वर्गफीट में धान बोया और प्रयोग सफल रहा। फिर उन्होंने घर को दो मंजिला किया। तीन हजार वर्गफीट की छत पर छह इंच मिट्‌टी की परत बिछाई। अब वे तीन हजार वर्गफुट की छत पर ही खेती कर रहे हैं। साल में दो क्विंटल धान दो अलग-अलग किस्मों के साथ ...

MAHRAJGANJ, AZAMGARH

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महराजगंज बाज़ार, आजमगढ़                                        -हरिशंकर राढ़ी  महराजगंज बाज़ार  आजमगढ़ के प्रमुख कस्बों में यह बाजार शामिल है। इसकी प्राचीनता पर कोई प्रश्नचिह्न तो लगाया नहीं जा सकता, किंतु इसकी स्थापना का इतिहास बता पाना दुरूह अवश्य है। ‘आजमगढ़ गजेटियर’ में महराजगंज का जिक्र बहुत कम आता है। दोहरीघाट, मऊ निजामबाद, घोसी और दुर्बाशा आश्रम का उल्लेख कई बार मिला किंतु महराजगंज और भैरोजी का कोई अता-पता नहीं मिलता। इसका अर्थ यही हो सकता है कि महराजगंज अति पिछड़े क्षेत्र में था औरं इसे आजमगढ़ की कंेद्रीय भूमिका में कोई खास जगह नहीं थी। एक कारण और था कि महराजगंज से उत्तर लगभग 12 किमी तक कछार क्षेत्र था जो अति पिछड़ा था। इसलिए जनपद के आर्थिक एवं राजनीतिक परिदृश्य में इस इलाके का महत्त्व नहीं रहा होगा। राजकीय बालिका विद्यालय महराजगंज(भैरोजी)               छाया :  राजनाथ मिश्र यह भी हो सकता है कि वह युग भौतिकतावादी और बाजा...

Bhairo baba - Azamgarh ke. Part-3

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महराजगंज और भैरव बाबा : पार्ट -3                           ---हरिशंकर राढ़ी  यदि भैरव बाबा की कहानी शुरू होती है और उसके साथ इस स्थान के इतिहास की चर्चा होती है तो निकटवर्ती बाजार महराजगंज को उपेक्षित नहीं किया जा सकता। यह क्षेत्र आजमगढ़ जनपद में बहुत महत्त्वपूर्ण है और इसका इतिहास भारत के स्वाधीनता संग्राम से जुड़ता है। स्वाधीनता संग्राम में आजमगढ़ का बहुत बड़ा योगदान रहा है और महराजगंज क्षेत्र इसमें अग्रणी। मैंने अपने पिछले लेख में भैरव जी स्थित जूनियर हाई स्कूल और ऊँचे टीले की चर्चा की थी। यह ऊँचा टीला, जहाँ आजकल प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भवन है, ब्रिटिश शासन में एक अंगरेज शासक का निवास सह कार्यालय था। उस समय यहाँ नील की खेती होती थी और इस टीले के आसपास नील की फसल से नील निकाला जाता था, अर्थात उसका प्रसंस्करण होता था। मि0 कूपर (Mr Cooper)  इसके प्रमुख परियोजना अधिकारी और स्वामी थे। अंगरेज कोई भी हो, उसका रुतबा किसी कैप्टन या कोतवाल से कम नहीं होता था। उसे भारतीय जनता को प्रताडित करने का हक था। कूप...

खाट पड़ी है बिस्तर गोल

इष्ट देव सांकृत्यायन खाट पड़ी है बिस्तर गोल बोल जमूरा जय जय बोल आते ही नज़दीक चुनाव शुरू हो गए बचन बोल सबका दुख वे समझ रहे हैं जिनके बदल गए हैं रोल. खिसक गई ज़मीन तो काहें घिस रहे हैं झुट्ठै सोल. कसरत कोई कितनी कर ले मन है सबका डावाँडोल अपने चरित्र का कोई न ठेका खोल रहे सब सबकी पोल चाहे जिसकी देखो पंजी सबमें हुई है झोलमपोल भाँग कुएँ में कौन मिलाए बरस रहा है गगन से घोल अपने ढंग से बजा रहे हैं सभी एक दूसरे का ढोल किसी के सिर पर ताज बिठा दे जनता कितनी है बकलोल.

Azamgarh ke Bhairv Baba (Part-2)

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आजमगढ़ के भैरो बाबा   ( भाग - 2)                                             -हरिशंकर राढ़ी पिछले सप्ताह भैरो बाबा के इस स्थान पर जाने का पुनः अवसर मिला। कुछ विशेष परिवर्तन तो होना नहीं था इस बीच। हाँ, पिछले लेख में कुछ छूट अवश्य गया था जिसे पूरा करने का खयाल मन में बैठा था। दशहरे का प्रसिद्ध मेला समाप्त हो रहा था। झूले और सर्कस वाले अपना डेरा-डम्पा हटा रहे थे। खजले की दुकानें अभी भी थीं, उनकी संख्या अब कम हो चली थी। दिन मंगलवार था नहीं और सुबह का समय था, इसलिएइक्का - दुक्का दर्शनार्थी आ रहे थे। मंदिर परिसर में प्रवेश करने पर एक सुखद आश्चर्य हुआ कि गर्भगृह में इस बार पंक्तिबद्धता के लिए बैरीकेड लग गए हैं जो अपार भीड़ में थोड़ा -बहुत तो काम करते ही होंगे। मंदिर का परिक्रमा पथ कीचड़ और फिसलन से लथपथ था। रात में बारिश हुई थी और सफाई करे तो कौन ? भैरव  मंदिर का एक दृश्य            छाया : हरिशंकर राढ़ी  रोजगार की तलाश और भौतिकवाद ने ...

Bhairo Baba :Azamgarh ke

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स्थानीय आस्था के केंद्र : आजमगढ़ के भैरव बाबा                                                                          -हरिशंकर राढ़ी आस्था तो  बस आस्था ही होती है, न उसके पीछे कोई तर्क और  न सिद्धांत। भारत जैसे धर्म और आस्था प्रधान देश में आस्था के प्रतीक कदम-दर कदम बिखरे मिल जाते हैं। यह आवश्यक भी है। जब आदमी आदमी और प्रकृति के प्रकोपों से आहत होकर टूट रहा होता है, उसका विश्वास और साहस बिखर रहा होता है तो वह आस्था के इन्हीं केंद्रों से संजीवनी प्राप्त करता है और अपने बिगड़े समय को साध लेता है। भारत की विशाल जनसंख्या को यदि कहीं से संबल मिलता है तो आस्था के इन केंद्रों से ही मिलता है। तर्कशास्त्र कितना भी सही हो, इतने व्यापक स्तर पर वह किसी का सहारा नहीं बन सकता ! भैरव बाबा मंदिर का शिखर : छाया -  हरिशंकर राढ़ी  ऐसे ही आस्था का एक केंद्र उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपद में महराजगंज ...

ghazel

ग़जल फिसलती रही  & हरिशंकर राढ़ी टूटकर साँस चलती रही। सोच करवट बदलती रही। बाजुओं में सदा जीत थी उँगलियों से फिसलती रही। चाँदनी में अकेली दुल्हन भोर तकती ] पिघलती रही। दो कदम बस चले साथ तुम उम्र भर याद चलती रही। काग की चोंच में मोतियां हंसिनी हाथ मलती रही। सेंकने की तलब थी उन्हें झोंपड़ी मेरी जलती रही। यूँ कटा जिन्दगी का सफर रोज गिरती - संभलती रही।

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