ghazel
ग़जल फिसलती रही & हरिशंकर राढ़ी टूटकर साँस चलती रही। सोच करवट बदलती रही। बाजुओं में सदा जीत थी उँगलियों से फिसलती रही। चाँदनी में अकेली दुल्हन भोर तकती ] पिघलती रही। दो कदम बस चले साथ तुम उम्र भर याद चलती रही। काग की चोंच में मोतियां हंसिनी हाथ मलती रही। सेंकने की तलब थी उन्हें झोंपड़ी मेरी जलती रही। यूँ कटा जिन्दगी का सफर रोज गिरती - संभलती रही।