MAHRAJGANJ, AZAMGARH
महराजगंज बाज़ार, आजमगढ़
-हरिशंकर राढ़ी
महराजगंज बाज़ार आजमगढ़ के प्रमुख कस्बों में यह बाजार शामिल है। इसकी प्राचीनता पर कोई प्रश्नचिह्न तो लगाया नहीं जा सकता, किंतु इसकी स्थापना का इतिहास बता पाना दुरूह अवश्य है। ‘आजमगढ़ गजेटियर’ में महराजगंज का जिक्र बहुत कम आता है। दोहरीघाट, मऊ निजामबाद, घोसी और दुर्बाशा आश्रम का उल्लेख कई बार मिला किंतु महराजगंज और भैरोजी का कोई अता-पता नहीं मिलता। इसका अर्थ यही हो सकता है कि महराजगंज अति पिछड़े क्षेत्र में था औरं इसे आजमगढ़ की कंेद्रीय भूमिका में कोई खास जगह नहीं थी। एक कारण और था कि महराजगंज से उत्तर लगभग 12 किमी तक कछार क्षेत्र था जो अति पिछड़ा था। इसलिए जनपद के आर्थिक एवं राजनीतिक परिदृश्य में इस इलाके का महत्त्व नहीं रहा होगा।
राजकीय बालिका विद्यालय महराजगंज(भैरोजी) छाया : राजनाथ मिश्र |
पिछली किश्त में भैरोजी स्थित पुराने ऊँचे टीले का जिक्र करते हुए, जिसपर आजकल राजकीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र का भवन है, मैंने श्री जे के मिश्र द्वारा दी गई जानकारी के आधार पर बताया था कि यहाँ नील बनाने की भट्ठियाँ थीं और नील उत्पादन का कार्य कूपर साहब की देखरेख में चलता था। यह बात “आजमगढ़ गजेटियर” के आधार पर भी प्रमाणित होती है। हालांकि इस अंक में महराजगंज का जिक्र तो नहीं है, किंतु यह स्पष्ट रूप से उल्लिखित है कि अक्षयबट, नगवा और भीलमपुर में नील की खेती होती थी। ऐसा लगता है कि नील का प्रसंस्करण भैरोजी में ही होता रहा होगा। (Azamgarh Gazetteer, Vol XXXIII, of the District Gazetteer of the United Province of Agra and Oudh, Edited and Compiled by DRAKE –BROCKMAN – ICS. Published in 1911)
मिडिल स्कूल जहां नया विद्यालय बना है ( महराजगंज भैरोजी) छाया : राजनाथ मिश्र |
अपुष्ट इतिहास, जनश्रुतियों और श्री जेके मिश्र जी की बात को आधार मानें तो महराजगंज बाजार का नामकरण राढ़ी ब्राह्मणों के नाम पर हुआ। राढ़ी ब्राह्मण दो सौ साल से अधिक पहले बंगाल से विस्थापित होकर इस क्षेत्र में आए थे। ऐसा माना जा सकता है कि जब अंगरेजों और नवाब शिराजुद्दौला के बीच जंग हुई, बंगाल में अंगरेजों का शासन स्थापित हुआ, उस समय आंतरिक हलचलों और धर्मपरिवर्तन के भय से राढ़ी ब्राह्मण बंगाल से पलायन कर गए। इसमें संदेह नहीं कि बंगाल का राढ़ क्षेत्र किसी समय मानव सभ्यता का एक उन्नत केंद्र था। बंगाल की यह उर्वर भूमि बौद्धिक क्षेत्र में अपना शानी नहीं रखती थी। यदि ..... को सत्य माना जाए तो राढ़ क्षेत्र भारतीय सभ्यता का केेंद्रविंदु था। जो भी हो, राढ़ी ब्राह्मण बंगाल से पलायन कर उपयुक्त निवासयोग्य स्थल की तलाश करते उत्तरप्रदेश (तब अवध क्षेत्र जो अति पावन माना जाता था) तक आए। राढि़यों के कुछ पूर्वज सुगौटी नामक गाँव में आकर बस गए। यह गाँव भैरव स्थान से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर आज भी है। वर्तमान में यादव बाहुल्य यह गाँव बहुत ही समृद्ध है। तब यह गाँव सरयू और छोटी सरयू के दोआबे की बाढ़ से ग्रसित था। कुछ समय बाद विष्णु राढ़ी और महेश राढ़ी (दोनों सगे भाई) सुगौटी को छोड़कर दो अलग-अलग जगहों पर बस गए। विष्णु राढ़ी के नाम पर विशुन पुर (विष्णुपुर) और महेश राढ़ी के नाम पर महेशपुर गाँव आबाद हुआ। यहाँ यह भी उल्लेख करना जरूरी है कि इन लोगों ने कालांतर में पूर्वी उत्तर प्रदेश में पाए जाने वाले उत्तम ब्राह्मणों का जातिनाम ‘मिश्र’ अंगीकार कर लिया। ‘मिश्र’ ब्राह्मणों में राढ़ी बहुत विरले पाए जाते हैं और ये जहाँ भी हैं, इनका गोत्र कश्यप है। महेशपुर गाँव छोटी सरयू के उत्तर देवारा क्षेत्र में है और विशुनपुर बाँगर क्षेत्र में। इस अंतर को लेकर दोनों गाँवों की राढ़ी विरादरी में हँसी मजाक का दौर आज भी चलता रहता है।
अपने विस्थापन और स्थापन के समय राढ़ी ब्राह्मण अपनी बौद्धिक और तापस्विक क्षमता के लिए जाने जाते थे।( ब्राह्मणत्व के साथ-साथ इनमें क्षत्रियत्व का सम्मिश्रण भी देखने को मिल जाता है ।) सम्मान सहित इन्हें ‘महराज’ भी कहा जाता था। चूँकि महराजगंज बाजार इन्हीं राढि़यों की जमीन और दान पर बसा था, इसलिए इसका नाम महराजगंज पड़ा।
नया चौक महराजगंज छाया : राजनाथ मिश्र |
महराजगंज बाजार छोटी सरयू नदी के तट पर बसा है। छोटी सरयू सदानीरा नहीं है। मानसून को छोड़कर बाकी महीनों में इसमें पानी कम ही रहता है। कमर भर अधिकतम। किंतु छोटी सरयू कभी आज की घाघरा यानी सरयू थी, ऐसी मान्यता और प्रमाण है। नदियां रास्ता बदलती हैं, यह एक भौगोलिक तथ्य है। छोटी सरयू से घाघरा के वर्तमान प्रवाहपथ तक का क्षेत्र देवारा है, जितना ही उपजाऊ उतना ही कभी समस्याग्रस्त। छोटी सरयू में बरसात के दिनों में नाव चला करती थी और बारहवीं कक्षा की पढ़ाई तक मैं भी नाव से पार करके महराजगंज इंटर कॉलेज जाया करता था। सन् 1984 के आसपास लकड़ी का पुल तैयार हुआ था किंतु मुझे याद है कि जिस दिन नदी में आखिरी बार नाव चली थी, उस दिन मैं नाव से पार करते हुए अपनी साइकिल समेत नदी में गिर गया था और वहां गले तक पानी था। भीगकर घर वापस आया और अगले मानसून तक पुल चालू हो गया था।
शानदार विश्लेषण, बधाई आपने बहुत ही महत्वपूर्ण एवं अनछुए पहलू की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट कराया।
ReplyDeleteWhat you're saying is completely true. I know that everybody must say the same thing, but I just think that you put it in a way that everyone can understand. I'm sure you'll reach so many people with what you've got to say.
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