आपकी भूख का फुटबॉल
जिन राजनेताओं को लेकर आप बहुत गंभीर होते
हैं, अपने दोस्तों-परिजनों से लेकर अजनबियों तक से भिड़ जाते हैं; कभी ग़ौर
किया है कि वे आपको लेकर कितने गंभीर हैं?
नहीं किया है तो अबसे करें.
जब आप भूख से मरते हैं तो वे आपके मरने को
मुद्दा बनाते हैं. और मुद्दा वे उसी चीज़ को बनाते हैं, जिसे भुना
सकें. भुना सकें, यानी जिससे ख़ुद फ़ायदा उठा सकें. फ़ायदा उठा सकें यानी व्यापार कर सकें.
तो वे आपके भूख से मरने का भी व्यापार करते हैं.
और इस व्यापार में वे आपकी भूख को फुटबॉल बना
लेते हैं. यानी एक आपकी भूख को लात मार कर दूसरे के पाले में फेंकता है. और फिर
दूसरा भी उसके साथ यही सलूक करता है. सब यही कहते हैं -- नहीं नहीं, मेरे नहीं, उसके चलते हुई है
तेरी मौत. तेरी भूख की वजह मैं नहीं बे, वो है.
पूरी ईमानदारी से सभी यही करते हैं. वो भी
जो आप पर रोज़ किरपा की बारिश करते रहते हैं. इतनी बारिश कि जितनी कोई बाबा भी न कर
सके. और वो भी जो आपको दुनिया भर के पाठ पढ़ाते हैं.
कोशिश सबकी यही है कि आप कभी इस लायक होने
ही न पाएँ कि उनकी किरपा से बाहर निकल जाएँ. उनके होने का तो सारा मज़ा ही बस तभी
तक है जब तक कि आप उनकी किरपा के दायरे में बने रहें.
आपकी रोटी ही नहीं, आपका
स्वाभिमान, आपकी सभ्यता,
आपकी संस्कृति, आपका विचार... कुछ भी, उनके लिए
फुटबॉल से ज़्यादा कुछ नहीं है.
इस पूरे उपक्रम में आपके और नेता के बीच
बुद्धिजीवी आते हैं. बिलकुल वैसे ही जैसे कौड़े पर आलू भूनते वक़्त आपके और आलू के
बीच लकड़ी आती है.
ये लकड़ी किसके इशारे पर और कैसे काम करती
है, आप जानते हैं. कैंब्रिज एनलिटिका की लिस्ट आपने हाल ही में देखी है.
इसके पहले कई और लिस्टें बिना प्रकाश में आए अपना काम कर चुकी हैं.
जब तक आप नेता और लकड़ी से समझते रहेंगे, आप फुटबॉल
बने रहेंगे. इनमें से कोई भी आपको कभी भी वह नहीं समझाएगा जो आपको समझना चाहिए.
क्योंकि इसे तो आपकी भूख बेचनी है. आपकी शर्म बेचनी है. आपका स्वाभिमान, आपकी
सभ्यता, आपकी संस्कृति बेचनी है.
जब तक आप इनकी समझाइश पर समझते रहेंगे, फुटबॉल ही
बने रहेंगे.
यह आपको तय करना होगा कि आप उनके फुटबॉल
बने रहना चाहते हैं, या फिर आप बनना चाहते हैं.
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सुस्वागतम!!