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Showing posts from October, 2019

कुम्हारों पर नहीं, ख़ुद पर करें एहसान

दीवाली पर झालरों को कहें बाय. मिट्टी के दीये ख़रीद कर आप कुम्हारों पर नहीं, ख़ुद पर एहसान करेंगे. सोचिए, जब आप झालरों का उपयोग करते हैं तो क्या करते हैं? बिजली की खपत बढ़ाते हैं. दीवाली पर कई जगह ओवरलोडिंग के ही चलते शॉर्ट सर्किट हो जाती है. इससे केवल तकनीकी खामी के नाते बिजली के पारेषण की व्यवस्था ही खराब नहीं होती, बहुत सारी बिजली बर्बाद भी होती है. लाइन और ट्रांस्फार्मर में आए फॉल्ट से होने वाली लीकेज के कारण. वह किसी काम नहीं आती. प्लास्टिक का कचरा बढ़ाते हैं. जो झालरें आप लाते हैं, वे दो तीन साल से अधिक नहीं चलतीं. उसके बाद उनमें लगे प्लास्टिक के रंग-बिरंगे कवर्स समेत उन्हें फेंक देते हैं. बाकी प्लास्टिक का गुण-धर्म आप जानते ही हैं. लाखों वर्षों में भी वह नष्ट नहीं होता. मिट्टी को प्रदूषित करता है और मिट्टी का प्रदूषण अंदर ही अंदर फैलता चला जाता है. भूमि का प्रदूषण बढाते हैं. केवल प्लास्टिक ही नहीं, उनमें लगे बल्ब लेड के बने होते हैंं.लेड कितना ख़तरनाक ज़हर है, यह बताने की ज़रूरत नहीं. लेड के चलते हुआ प्रदूषण प्लास्टिक से भी ज़्यादा तेज़ी से फैलता है. जहाँ जहाँ यह पहुँचेगा, उस...

उदयपुर दर्शन

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हरिशंकर राढ़ी  फतेहसागर झील                                          छाया : हरिशंकर राढ़ी   रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन हमें उदयपुर के दर्शनीय स्थलों की सैर करनी थी। वैसे तो ऐसे पर्यटक बिंदुओं पर टैक्सीवाले तथा टुअर ऑपरेटर न जाने कितने स्थान पैदा कर लेते हैं, लेकिन हमें कुछ खास स्थल ही घूमने थे। उनमें फतेह सागर झील, सहेलियों की बाड़ी और सिटी पैलेस ही मुख्य थे। थोड़ा सा समय कुछ खरीदारी के लिए भी चाहिए था। लिहाज़ा हमने दस बजे होटल से चेक आउट कर लिया और गाड़ी में सवार हो लिए। हमारा पहला पड़ाव फतेह सागर झील थी। रास्ते में हमने आधा घंटा एक उद्यान में बिताया जो कि अच्छा तो था किंतु अद्वितीय किसी कीमत पर नहीं। फतेह सागर झीलः  फतेहसागर झील  के सामने                                        यह झील निश्चित  रूप से उदयपुर के प्रमुख आकर्षणों मे...

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