कुम्हारों पर नहीं, ख़ुद पर करें एहसान
दीवाली पर झालरों को कहें बाय.
मिट्टी के दीये ख़रीद कर आप कुम्हारों पर नहीं, ख़ुद पर एहसान करेंगे.
सोचिए,
जब आप झालरों का उपयोग करते हैं तो क्या करते हैं?
जब आप झालरों का उपयोग करते हैं तो क्या करते हैं?
बिजली की खपत बढ़ाते हैं.
दीवाली पर कई जगह ओवरलोडिंग के ही चलते शॉर्ट सर्किट हो जाती है. इससे केवल तकनीकी खामी के नाते बिजली के पारेषण की व्यवस्था ही खराब नहीं होती, बहुत सारी बिजली बर्बाद भी होती है. लाइन और ट्रांस्फार्मर में आए फॉल्ट से होने वाली लीकेज के कारण. वह किसी काम नहीं आती.
दीवाली पर कई जगह ओवरलोडिंग के ही चलते शॉर्ट सर्किट हो जाती है. इससे केवल तकनीकी खामी के नाते बिजली के पारेषण की व्यवस्था ही खराब नहीं होती, बहुत सारी बिजली बर्बाद भी होती है. लाइन और ट्रांस्फार्मर में आए फॉल्ट से होने वाली लीकेज के कारण. वह किसी काम नहीं आती.
प्लास्टिक का कचरा बढ़ाते हैं.
जो झालरें आप लाते हैं, वे दो तीन साल से अधिक नहीं चलतीं. उसके बाद उनमें लगे प्लास्टिक के रंग-बिरंगे कवर्स समेत उन्हें फेंक देते हैं. बाकी प्लास्टिक का गुण-धर्म आप जानते ही हैं. लाखों वर्षों में भी वह नष्ट नहीं होता. मिट्टी को प्रदूषित करता है और मिट्टी का प्रदूषण अंदर ही अंदर फैलता चला जाता है.
जो झालरें आप लाते हैं, वे दो तीन साल से अधिक नहीं चलतीं. उसके बाद उनमें लगे प्लास्टिक के रंग-बिरंगे कवर्स समेत उन्हें फेंक देते हैं. बाकी प्लास्टिक का गुण-धर्म आप जानते ही हैं. लाखों वर्षों में भी वह नष्ट नहीं होता. मिट्टी को प्रदूषित करता है और मिट्टी का प्रदूषण अंदर ही अंदर फैलता चला जाता है.
भूमि का प्रदूषण बढाते हैं.
केवल प्लास्टिक ही नहीं, उनमें लगे बल्ब लेड के बने होते हैंं.लेड कितना ख़तरनाक ज़हर है, यह बताने की ज़रूरत नहीं. लेड के चलते हुआ प्रदूषण प्लास्टिक से भी ज़्यादा तेज़ी से फैलता है. जहाँ जहाँ यह पहुँचेगा, उस भूमि का जल और वहाँ उपजा अन्न या सब्ज़ियां कुछ भी खाने के लायक नहीं रह जाएगा.
केवल प्लास्टिक ही नहीं, उनमें लगे बल्ब लेड के बने होते हैंं.लेड कितना ख़तरनाक ज़हर है, यह बताने की ज़रूरत नहीं. लेड के चलते हुआ प्रदूषण प्लास्टिक से भी ज़्यादा तेज़ी से फैलता है. जहाँ जहाँ यह पहुँचेगा, उस भूमि का जल और वहाँ उपजा अन्न या सब्ज़ियां कुछ भी खाने के लायक नहीं रह जाएगा.
भावी पीढ़ियों की बर्बादी.
इसका असर अभी तो सिर्फ़ दिखना शुरू हुआ है. ज़्यादा नहीं केवल पचास साल बाद की स्थिति सोचिए. हम तो शायद हों ही नहीं, लेकिन बड़े होकर हमारे बच्चे और उनके बच्चे सिर्फ़ ज़हर खा रहे होंगे.
इसका असर अभी तो सिर्फ़ दिखना शुरू हुआ है. ज़्यादा नहीं केवल पचास साल बाद की स्थिति सोचिए. हम तो शायद हों ही नहीं, लेकिन बड़े होकर हमारे बच्चे और उनके बच्चे सिर्फ़ ज़हर खा रहे होंगे.
हिरोशिमा-नागासाकी
झालरों के जरिये इस प्लास्टिक और लेड कचरे से हम अपने इर्द-गिर्द बिना किसी युद्ध के ख़ुद ही एक हिरोशिमा-नागासाकी बना रहे हैं. भोपाल गैस त्रासदी उत्पन्न कर रहे हैं. तीन पीढ़ी बाद हमारे आसपास केवल दिव्यांग पैदा हों, इसके पूरे इंतज़ाम बना रहे हैं.
झालरों के जरिये इस प्लास्टिक और लेड कचरे से हम अपने इर्द-गिर्द बिना किसी युद्ध के ख़ुद ही एक हिरोशिमा-नागासाकी बना रहे हैं. भोपाल गैस त्रासदी उत्पन्न कर रहे हैं. तीन पीढ़ी बाद हमारे आसपास केवल दिव्यांग पैदा हों, इसके पूरे इंतज़ाम बना रहे हैं.
उन पर नहीं, ख़ुद पर एहसान
अगर आप चाहते हैं कि आपकी भावी पीढ़ियां स्वस्थ और सुखी हों तो झालरों को अभी ना कह दें. सोचें ही नहीं इनके बारे में अब. मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने वाले लोक-कलाकारों पर नहीं, ख़ुद पर एहसान करिए. अपनी परंपरा को निभाइए और इन लोक कलाकारों के प्रति एहसानमंद होइए.
अगर आप चाहते हैं कि आपकी भावी पीढ़ियां स्वस्थ और सुखी हों तो झालरों को अभी ना कह दें. सोचें ही नहीं इनके बारे में अब. मिट्टी के दीये और बर्तन बनाने वाले लोक-कलाकारों पर नहीं, ख़ुद पर एहसान करिए. अपनी परंपरा को निभाइए और इन लोक कलाकारों के प्रति एहसानमंद होइए.
सुप्रभात... बहुत ही उपयोगी लेख अपने वर्तमान और भावी पीढ़ी के भविष्य को देखते हुए... जितनी जल्द हम प्लास्टिक की दुनिया से बाहर निकलेंगे हमारे लिए बचा हुआ समय उतना ही लाभकारी होगा वर्तमान खानपान की चीजों से लेकर हमारे हर दैनिक कार्यों में प्लास्टिक का उपयोग बहुत ज्यादा किया जा रहा है.. जो यकीनन आने वाले समय में हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत नुकसानदायक होगा... दिवाली रोशनी और खुशियों का त्योहार है क्यों ना इस बार हम माटी के दीप जलाएं और झालरों को अलविदा कहें ताकि हमारे साथ साथ एक कुम्हार के घर में भी भरपूर रोशनी के दिए झिलमिलाए बहुत ही अच्छा लेख लिखा आपने मुझे भी इस सारगर्भित लेख में अपने विचार प्रस्तुत करने का मौका मिला...!!
ReplyDeleteअनिता जी मैं लंबे समय से यह देख रहा हूँ कि कुछ लोग जो केवल उपदेश देने के लिए ही धरती पर अवतरित हुए हैं, खुद झालरें और फालतू की ब्रांडेड चीजें सजाते हैं, ज्यादा से ज्यादा तीन-चार दीये जलाने का दिखावा कर मिट्टी के दीयों का प्रचार इस तरह करते हैं गोया वे कुम्हारों पर एहसान कर रहे हों. यह एहसान का भाव खत्म होना चाहिए. इस तरह वे दिखाते तो दया हैं, पर वास्तव में कुम्हारों का अपमान करते हैं. हमारी लोककला का अपमान करते हैं. एक स्वाभिमानी भारतीय होने के नाते हमें इसका उत्तर देना चाहिए.
Deleteयह हम कुम्हारों पर नहीं, अपने पर एहसान कर रहे हैं. इस विषय पर आप भी लिख सकें तो अच्छा रहेगा. स्वागत है.
साधुवाद.
ReplyDeleteरोचक लेख। मुझे भी कई बार ऐसा लगता है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर चिंतन, सटीक लेखन सार्थक और प्रयोग में लाने योग्य ।
ReplyDeleteखरी खरी बात ।
श्रीमान, बहुत ही सुन्दर और प्रेरणादायी पोस्ट
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