उदयपुर दर्शन


हरिशंकर राढ़ी 

फतेहसागर झील                                          छाया : हरिशंकर राढ़ी 
 रात्रि विश्राम के बाद अगले दिन हमें उदयपुर के दर्शनीय स्थलों की सैर करनी थी। वैसे तो ऐसे पर्यटक बिंदुओं पर टैक्सीवाले तथा टुअर ऑपरेटर न जाने कितने स्थान पैदा कर लेते हैं, लेकिन हमें कुछ खास स्थल ही घूमने थे। उनमें फतेह सागर झील, सहेलियों की बाड़ी और सिटी पैलेस ही मुख्य थे। थोड़ा सा समय कुछ खरीदारी के लिए भी चाहिए था। लिहाज़ा हमने दस बजे होटल से चेक आउट कर लिया और गाड़ी में सवार हो लिए। हमारा पहला पड़ाव फतेह सागर झील थी। रास्ते में हमने आधा घंटा एक उद्यान में बिताया जो कि अच्छा तो था किंतु अद्वितीय किसी कीमत पर नहीं।

फतेह सागर झीलः 
फतेहसागर झील  के सामने                                      
 यह झील निश्चित  रूप से उदयपुर के प्रमुख आकर्षणों में एक है। यह कृत्रिम झील बहुत बड़ी है, हालाँकि अगस्त महीने में भी इसमें पानी की मात्रा संतोषजनक नहीं थी। झील की लंबाई लगभग ढाई किलोमीटर तथा चौड़ाई डेढ़ किलोमीटर है। झील के बीच में नेहरू पार्क नामक एक छोटा द्वीप भी है जो बहुत आकर्षक है। दो अन्य लघुद्वीप इतने उल्लेखनीय नहीं हैं। झील की सुंदरता में इस पार्क से चार चाँद लग जाता है। इस पार्क में कई फिल्मी गीतों की शूटिंग की गई थी। यह जानकर दर्शकों का मन और ललचाता है।

झील के एक किनारे की पहाड़ी की चोटी पर महाराणा प्रताप स्मारक बना है जिस पर राणा अपने स्वामिभक्त घोड़े चेतक पर सवार हैं। जो यात्री हल्दीघाटी नहीं जा पाते, उनके लिए यह स्मारक उपयोगी है। इसमें प्रवेश हेतु शुल्क लगता है। चूँकि हम हल्दीघाटी की पवित्रभूमि हो आए थे, इसलिए हमें इस स्मारक पर भारी शुल्क और समय देना उचित नहीं लगा। हाँ, यहाँ मौसम, दृष्य और वातावरण इतना सुहावना लग रहा था कि लगभग एक घंटे तक घूमते-टहलते रहे। पर्यटकों की एक बड़ी संख्या प्रायः मौजूद रहती है। झील के किनारे अनेक छोटे रेस्तराँ हैं जो पारंपरिक से लेकर आधुनिक खाद्य सामग्री परोसते रहते हैं। उदयपुर निवासियों को इस झील से जो भी लाभ हों, यात्रियों को तो बस नैनसुख और सुकून चाहिए जो यहाँ प्रचुर मात्रा में मिलता है।



उदयपुर का सिटी पैलेस                  छाया : हरिशंकर राढ़ी

पिछोला झील और सिटी पैलेस : 

पिछोला लेक एवं उसी से सटा सिटी पैलेस उदयपुर की विशिष्ट पहचान हैं। पहचान तो क्या, इन्हें एक तरह से उदयपुर का पर्याय मान लिया गया है। सिटी पैलेस, पिछोला लेक और उसके अंदर स्थित जगमंदिर पैलेस सौंदर्य, वैभव, विलासिता और सत्ता की अद्भुत संरचना है। पिछोला झील के बीच में चमकता उच्च सुविधा से युक्त जगमंदिर पैलेस, एक ओर से अरावली की पहाड़ियाँ तो दूसरी ओर से शा नदार सिटी पैलेस ! एक बार दर्शक इन प्राकृतिक और कृत्रिम संरचनाओं के मनमोहक जाल में                                                                                                 उलझकर रह जाता है। 


पिछोला झील का निर्माण
पिछोला झील का एक दृश्य                छाया : हरिशंकर राढ़ी
पिछोला झीलमें जगमंदिर  पैलेस           छाया : हरिशंकर राढ़ी
संभवतः 1362 ई0 में बंजारा ने महाराणा लाखा के समय बनवाया था। बंजारा एक जनजातीय वनवासी था जो अनाज का व्यापार करता था। इसके एक किनारे पर बना सिटी पैलेस स्थित है। यह कह पाना मुश्किल है कि पिछोला झील से सिटी पैलेस का सौंदर्य बढ़ता है या सिटी पैलेस से पिछोला झील का। यह संयोग कुछ वैसा ही है जैसे तालाब से कमल की शोभा होती है और कमल से तालाब की। कहा जाता है कि पिछोला झील के सौंदर्य से ही प्रभावित होकर राणा उदय सिंह द्वितीय ने अपनी राजधानी चित्तौड़ से यहाँ स्थानांतरित की तथा इसी झील के किनारे सिटी पैलेस की नींव दी थी। जब हम पहुँचे तो दोपहर होने को आ गई थी। मौसम में बादली धूप थी तथा मानसून की उमस। फिर भी झील के किनारे दर्शकों का तांता लगा हुआ था जिसमें हर वय के लोग थे। अधिकांश युवक-युवतियाँ फोटोग्राफी एवं सेल्फी में व्यस्त थे तो उम्रदराज लोग झील के सौंदर्यपान में। झील में बहुत से लोग नौकायन भी कर रहे थे। हमारी रुचि नौकायन में थी नहीं। पता नहीं कितने दिनों बाद संयोग बना है यहाँ आने का, फिर क्यों न इस झील और समूचे दृश्य को नैनों में उतार लिया जाए ?
उदयपुर का सिटी पैलेस         छाया : हरिशंकर राढ़ी
यहाँ से खिसकते हुए समय को देखकर हम सिटी पैलेस की ओर खिसक लिए। सिटी पैलेस वास्तव में बहुत भव्य है। इसका निर्माण लगभग चार सौ साल पहले सन् 1559 ई0 में राणा उदय सिंह ने शुरू करवाया तथा मेवाड़ के कई राजाओं ने इसे वर्तमान आकार और रूप प्रदान किया। लगभग आठ सौ फीट की लंबाई में निर्मित इस महल में मुख्यतः तीन प्रवेशद्वार हैं जिसे यहाँ की बोली में पोल कहते हैं। मुख्य प्रवेशद्वार बड़ी पोल के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त त्रिपोलिया पोल और हाथी पोल भी प्रयोग में हैं। महल के अंदर मोर चौक, सूरज गोखडा, दिलखुश महल, शीश महल, मोती महल, कृश्ण विलास, शंभु निवास, अमर विलास और बड़ी महल प्रमुख खंड हैं। फतेह प्रकाश  महल तथा शिव  निवास महल को विरासत होटल में परिवर्तित कर दिया गया है। उच्च सुविधाओं से युक्त इन होटलों से महल को अच्छी आय हो जाती है। महल में कई गलियारों में राजस्थानी कलाकृतियों तथा वस्त्रों की दूकानें हैं। वर्तमान में महल मेवाड़ राजघराने की संपत्ति है।

पैलेस में स्थित जनाना महल को सन् 1974 से संग्रहालय के रूप में प्रयोग किया जा रहा है, जिसका प्रवेशशुल्क तीन सौ रुपये है। दर्शकों की बड़ी संख्या को देखते हुए इस संग्रहालय, दूकानों के किराये एवं सामान्य प्रवेशशुल्क से कितनी आय हो रही होगी, इसका अंदाज लगाना बहुत सहज नहीं है। वापसी में हमारे ड्राइवर ने बताया कि महल की एक दिन की आमदनी साठ लाख रुपये है। हमने इस पर विश्वास  तो नहीं किया, लेकिन इसमें संदेह नहीं कि सिटी पैलेस देश के सबसे धनी महलों में एक है।
पिछोला लेक के सामने हम पांच    छाया : हरिशंकर राढ़ी        



  
सहेलियों की बाड़ी तथा अन्य दर्शनीय बिंदु :
सिटी पैलेस आने से पहले हमने सहेलियों की बाड़ी तथा वैक्स म्यूजियम भी देख लिया था। वैक्स म्यूजियम न तो कोई ऐतिहासिक धरोहर है और न कोई बहुत मनोरंजक स्थल। इधर जबसे लंदन में स्थित मैडम तुसाद म्यूजियम चर्चा में आया, तबसे अपने देश में भी इनकी संख्या में बढ़ोतरी होने लगी है। इसी क्रम में उदयपुर का वैक्स म्यूजियम भी आता है। हम वहाँ पहुँच तो गए किंतु कोई भी इसे देखने को उत्सुक नहीं था। क्या देखना है मोम के पुतले ? ऊपर से प्रवेश टिकट साढ़े तीन सौ रुपये प्रति व्यक्ति। हम लोग पूछताछ करके वापस जाने लगे तो वहाँ के कर्मचारियों ने घेरा डाला और मोलभाव पर उतर आए। अंततः वे हम छह जनों को एक हजार रुपये में प्रवेश देने को मनाने लगे। खैर, हमने भी उनकी बात रखी। अंदर गए। वहाँ एपीज कलाम, महात्मा गांधी, मदर टेरेसा, राणा प्रताप, बराक ओबामा, नरेंद्र मोदी सहित कुल 15 मूर्तियाँ थीं। अब गए थे तो फोटो-सोटो तो खिंचने ही थे। इसके बाद शुरू हुआ उनका हॉरर षो। भूत, चुड़ैल और अधकटी काया के पुतले ध्वनि एवं उछल-कूद से डराने का प्रयास कर रहे थे जिसमें हमें कोई रुचि नहीं थी। हाँ, उसके बाद मिरर हॉल की भूल-भुलैया में कुछ आनंद जरूर आया।

सहेलियों की बाड़ी एक सुंदर बगीचा है जिसे महाराणा संग्राम सिंह द्वितीय ने सन् 1710 से 1736 के बीच बनवाया था। यह राजपरिवार की महिलाओं के आमोद-प्रमोद का केंद्र था। अभी इसमें एक सुंदर फव्वारा चलता रहता है। बायीं ओर एक बड़ा उद्यान है जिसमें घूमना अच्छा लगता है। सहेलियों की बाड़ी मैं अपनी पिछली उदयपुर यात्रा में देख चुका था। सत्रह साल बाद उस यात्रा को दुहराना अच्छा लग रहा था। कुछ यादें भी थीं और कुछ भूलें भी।

इनके अतिरिक्त उदयपुर में घूमने के लिए अन्य बहुत से स्थल हैं, हालाँकि वे इतने महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। कुछ स्थल तो केवल गिनती के लिए होते हैं जिन्हें न देखकर भी पछतावा नहीं होता। हाँ, एक जिज्ञासा जरूर बनी रह जाती है। ऐसे स्थलों में उदयपुर में सुखाड़िया सर्कल, जगदीश मंदिर, शिल्पग्राम, करनी माता मंदिर, हाथीपोल बाजार, विंटेज कार म्यूजियम, शीशमहल आदि प्रमुख हैं। यदि पचास किलोमीटर की परिधि तक घूमने का समय हो तो जयसमंद लेक, चित्तौड़गढ़ किला और साँवलिया जी का मंदिर देखा जा सकता है।

सिटी पैलेस से निकलते-निकलते हमें लगभग तीन बज गए थे। पाँच बजे की हमारी गाड़ी थी। सो, हमने एक रेस्तराँ में खाना खाया और पास में स्थित जोधपुर स्वीट्स से घर के लिए मावे की कचौरियाँ पैक करायीं तथा रास्ते के लिए प्याज और दाल की कचौरियाँ। जोधपुर तथा उदयपुर जाकर आदमी वहाँ की कचौरियाँ न खा पाए तो उसे भाग्यहीन ही कहना चाहिए। हाँ, बीच में हम सबने राजस्थान क्राफ्ट एंपोरियम से अपनी पत्नी के लिए बड़े शौक से साड़ियाँ खरीदीं। निःसंदेह हम सबको साड़ियाँ बहुत पसंद आयी थीं। हम सभी ने एक ही डिजाइन की अलग-अलग रंग की साड़ियाँ ली थीं और यह सोचकर खुश हो रहे थे कि पत्नियाँ खुश होंगी। दिल्ली आने पर पता चला कि किसी की भी पत्नी को साड़ी पसंद नहीं आयी। आखिर मूर्ख ही साबित हुए।
उदयपुर की यात्रा यादों में कैद होकर रह गई। राणा प्रताप की हल्दीघाटी, चेतक का शौर्य, रक्त तलाई का इतिहास, राणा उदय सिंह का सिटी पैलेस और पिछोला लेक बहुत कुछ कह गए, बहुत कुछ दे गए।
(21 सितंबर, 2019)
घर वापसी :                      उदयपुर रेलवे स्टेशन पर 


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