जहर से जहरीली अपसंस्कृति
भोजपुरी
गायकी की अपनी एक समृद्ध परंपरा रही है. लोक में भी और शास्त्र में भी. नाम गिनाने
बैठें तो चुनना कठिन हो जाएगा कि किनका नाम लूँ और किन्हें छोड़ूं.
लेकिन
यह परंपरा तभी तक सुरक्षित थी जब तक भोजपुरी बजार की चीज नहीं हुई थी और बजार की
चीज बनने से यह पटना छाप कैसेट कंपनियां आने तक बची रही. जैसे ही पटना वाली कुछ
कैसेट कंपनियां आईं और उन्होंने लोक गायकी के नाम पर पॉप से भी फूहड़ और निहायत
अश्लील सोनपुर मेले वालों और वालियों को पकड़ना और उनको रेकॉर्ड करके बजार में
भाठना शुरू किया, वहीं से सारी गरिमा जाती रही.
इन्होंने
बाजार के सारे टोटके अपनाते हुए अपनी रीच बढ़ाई और बसों से लेकर ट्रकों और दिल्ली
से लेकर पंजाब, मुंबई और अहमदाबाद तक इनकी धमक सुनाई
देने लगी.
ऐसा
नहीं है कि भोजपुरी पट्टी से बाहर के बड़े शहरों में पहले कभी भोजपुरी गायकी की
मिठास नहीं सुनाई देती थी. पहले भी सुनी जाती थी. लेकिन वह मिठास विशुद्ध लोक की
थी. इसमें चैता, फगुआ, कजरी जैसे मौसमी और छठ, नहान, सतुआन, रामनवमी
जैसे पर्वों या भक्ति के गीत शामिल होते थे. अवसर के अनुसार बियाह, जनेऊ और सोहर भी. गाने वाले छोटे-बड़े मजदूर, बाबू या साहब होते थे, जो अपने-अपने घरों से अपने जवार की माटी
की महक सहेजे इन शहरों में अपना जांगर पेरने आए होते थे.
बेशक इनमें लोक की परंपरा और सहज प्रवृत्ति के अनुसार
हल्का-फुल्का हँसी-मजाक भी होता था, शृंगार और शौर्य भी होता
था. लेकिन फूहड़ता और अश्लीलता नहीं थी.
लेकिन कंपनियों ने भोजपुरी के नाम पर जो परोसा उसने भोजपुरी
की इस सहजता को वैसे ही लील लिया जैसे राहु और केतु ग्रहण के दिन सूर्य और चंद्र को
लील लेते हैं. जैसे औद्योगिक विकृति ने हमारी किसानी की संस्कृति को लील लिया. जैसे
इस औद्योगिक विकृति के चलते सुरसा के मुँह की तरह बढ़ रहे शहरों ने छोटे-छोटे गाँवों
और उनमें विहसते जीवन को लील लिया.
इन्होंने
हमें थमाया है भोजपुरी के नाम पर फूहड़, अश्लील और बेहूदे दोअर्थी गाने. इन बेतुके
और जहर से भी ज्यादा जहरीले गानों ने हमारे लोकगीतों और हमारी लोकसंस्कृति को वैसे
ही नष्ट कर डाला जैसे चाय ने दही-लस्सी और मट्ठे की संस्कृति को.
किसी सरकार
के पास इसका कोई मानक नहीं है और न कोई सरकार इसे रोक सकती है. अगर साहित्य की कहीं
कोई भूमिका और समाज के प्रति इसकी कोई जिम्मेदारी आप मानते हैं तो यह जिम्मेदारी मूलतः
भोजपुरी क्षेत्र के साहित्यकारों की है कि वे कम से कम अपने क्षेत्र में लोगों को जागरूक
करें. उन्हें बताएं कि ये गाने कैसे जहर से भी ज्यादा जहरीले और खतरे से भी ज्यादा
खतरनाक हैं.
Comments
Post a Comment
सुस्वागतम!!