बीएचयू: पद तो ओबीसी का था
सर्वेश तिवारी श्रीमुख
तथ्यों के बीच एक
तथ्य यह भी है कि काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के "संस्कृत धर्म विज्ञान
संकाय" के जिस पद पर श्रीमान खान साहब नियुक्त हुए हैं, वह ओबीसी के लिए रिजर्व पद है।
उस पद के लिए कुल सत्ताईस आवेदन पड़े थे, जिनमें छब्बीस हिन्दू लोगों के थे। यादव, पटेल, चौधरी, प्रसाद, सिंह आदि... एक व्यक्ति गैर हिन्दू थे, श्रीमान खान साहब।
सेक्युलरिज्म का ताव देखिये, सारे ओबीसी वाले हिन्दू छांट दिए गए और खान साहब सेलेक्ट हो गए। चयन समिति ने छब्बीस लोगों को दस में से दो-दो नम्बर दिया था, और खान साहब को दस में से दस... कैसे न हो! कुलाधिपति महोदय को अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में जो लिखवाना है।
और अब षड्यंत्र का स्तर देखिये, विरोध शुरू होते ही सबसे पहले वामपंथी मीडिया ने लोगों के दिमाग में यह बैठा दिया कि ब्राह्मण अपने लिए विरोध कर रहे हैं। ब्राह्मण उस पद पर स्वयं के अतिरिक्त किसी अन्य को देखना ही नहीं चाहते... यह विरोध ब्राह्मणवादी, मनुवादी कर रहे हैं। जबकि सच यह है कि उस पद पर कोई सवर्ण(कथित) उम्मीदवार ही नहीं, बल्कि वह पद सवर्णों के लिए है ही नहीं। उस पद पर कोई न कोई पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति ही चयनित होगा...
स्पष्ट है कि हक पिछड़ा वर्ग का मारा गया है। यह पहली बार नहीं हो रहा, सेक्युलरिज्म के नाम पर हर बार हक "पिछड़ा वर्ग" का ही मारा जाता है। उन्हें ब्राह्मण विरोध का नशा पिला कर दूसरी ओर मोड़ दिया जाता है, और मलाई किसी खान साहब के हिस्से में जाती है।
दुर्भाग्य यह है कि इस देश के लोग मुद्दे को समझे बिना ही भावना में बह कर पक्ष चुन लेते हैं। ओबीसी के लोग भी इसे ब्राह्मणवाद और मनुवाद बता रहे हैं, क्योंकि उन्हें अबतक सही जानकारी ही नहीं।
खान साहब के समर्थन में उतरा कोई व्यक्ति इस विषय पर नहीं बोलना चाहता कि छब्बीस हिन्दुओं को दो-दो नम्बर और खान साहब को दस कैसे मिले? कोई यह नहीं बताता कि आखिर खान साहब को हिन्दुओं के धार्मिक मामलों में घुसने की इतनी बेताबी क्यों है? किसी के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं कि परम्परा के अनुसार खान साहब दीवाली के दिन सभी छात्रों के साथ बैठ कर हवन कैसे करेंगे, क्योंकि उनकी मान्यता के अनुसार यह कुफ्र होगा...
यह लड़ाई उतनी आसान नहीं, क्योंकि वामपंथ का प्रचार तंत्र बहुत शक्तिशाली है। नेहरू विश्वविद्यालयी धारा के कुलपति महोदय ने खेल बड़ी सफाई से खेला है।
फिर भी हमें लड़ना होगा। लड़ना ही होगा... बात अधिकारों की है, बात धर्म की है, बात सभ्यता की है...
'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' एक सामान्य यूनिवर्सिटी का नहीं, सनातन की रीढ़ का नाम है। महामना के उस सपने का नाम है जिसके लिए उन्होंने भीख मांगी थी। उन्होंने इसकी स्थापना ही सनातन के लिए की थी, तभी इसका नाम हिन्दू विश्वविद्यालय रखा गया। इसे सेक्युलरिज्म की भेंट नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। याद रहे, बीएचयू यदि हाथ से निकल गया, तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा।
उस पद के लिए कुल सत्ताईस आवेदन पड़े थे, जिनमें छब्बीस हिन्दू लोगों के थे। यादव, पटेल, चौधरी, प्रसाद, सिंह आदि... एक व्यक्ति गैर हिन्दू थे, श्रीमान खान साहब।
सेक्युलरिज्म का ताव देखिये, सारे ओबीसी वाले हिन्दू छांट दिए गए और खान साहब सेलेक्ट हो गए। चयन समिति ने छब्बीस लोगों को दस में से दो-दो नम्बर दिया था, और खान साहब को दस में से दस... कैसे न हो! कुलाधिपति महोदय को अपना नाम स्वर्ण अक्षरों में जो लिखवाना है।
और अब षड्यंत्र का स्तर देखिये, विरोध शुरू होते ही सबसे पहले वामपंथी मीडिया ने लोगों के दिमाग में यह बैठा दिया कि ब्राह्मण अपने लिए विरोध कर रहे हैं। ब्राह्मण उस पद पर स्वयं के अतिरिक्त किसी अन्य को देखना ही नहीं चाहते... यह विरोध ब्राह्मणवादी, मनुवादी कर रहे हैं। जबकि सच यह है कि उस पद पर कोई सवर्ण(कथित) उम्मीदवार ही नहीं, बल्कि वह पद सवर्णों के लिए है ही नहीं। उस पद पर कोई न कोई पिछड़ा वर्ग का व्यक्ति ही चयनित होगा...
स्पष्ट है कि हक पिछड़ा वर्ग का मारा गया है। यह पहली बार नहीं हो रहा, सेक्युलरिज्म के नाम पर हर बार हक "पिछड़ा वर्ग" का ही मारा जाता है। उन्हें ब्राह्मण विरोध का नशा पिला कर दूसरी ओर मोड़ दिया जाता है, और मलाई किसी खान साहब के हिस्से में जाती है।
दुर्भाग्य यह है कि इस देश के लोग मुद्दे को समझे बिना ही भावना में बह कर पक्ष चुन लेते हैं। ओबीसी के लोग भी इसे ब्राह्मणवाद और मनुवाद बता रहे हैं, क्योंकि उन्हें अबतक सही जानकारी ही नहीं।
खान साहब के समर्थन में उतरा कोई व्यक्ति इस विषय पर नहीं बोलना चाहता कि छब्बीस हिन्दुओं को दो-दो नम्बर और खान साहब को दस कैसे मिले? कोई यह नहीं बताता कि आखिर खान साहब को हिन्दुओं के धार्मिक मामलों में घुसने की इतनी बेताबी क्यों है? किसी के पास इस प्रश्न का उत्तर नहीं कि परम्परा के अनुसार खान साहब दीवाली के दिन सभी छात्रों के साथ बैठ कर हवन कैसे करेंगे, क्योंकि उनकी मान्यता के अनुसार यह कुफ्र होगा...
यह लड़ाई उतनी आसान नहीं, क्योंकि वामपंथ का प्रचार तंत्र बहुत शक्तिशाली है। नेहरू विश्वविद्यालयी धारा के कुलपति महोदय ने खेल बड़ी सफाई से खेला है।
फिर भी हमें लड़ना होगा। लड़ना ही होगा... बात अधिकारों की है, बात धर्म की है, बात सभ्यता की है...
'बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय' एक सामान्य यूनिवर्सिटी का नहीं, सनातन की रीढ़ का नाम है। महामना के उस सपने का नाम है जिसके लिए उन्होंने भीख मांगी थी। उन्होंने इसकी स्थापना ही सनातन के लिए की थी, तभी इसका नाम हिन्दू विश्वविद्यालय रखा गया। इसे सेक्युलरिज्म की भेंट नहीं चढ़ाया जाना चाहिए। याद रहे, बीएचयू यदि हाथ से निकल गया, तो हमारे पास कुछ नहीं बचेगा।
© सर्वेश
तिवारी श्रीमुख
गोपालगंज, बिहार।
फेसबुक वॉल से साभार
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