शर्म आपको मगर नहीं आती


अगर आप सही मायने में एक सुरक्षित जीवन चाहते हैं
जिसमें न समाज का कोई भय हो, न पुलिस का, न सरकार का, न कानून का और न ही किसी और का
अगर आप चाहते हैं कि आपके मारे जाने पर देश भर में हल्ला मचे
मीडिया से लेकर तथाकथित सामाजिक कार्यकर्ता और मानवाधिक्कारवादी तक
सब एक सुर में रेंकें
और रेंक रेंक कर पूरी दुनिया का जीना हराम कर दें
तो
आपके पास कुल जमा दो ही रास्ते हैंं-
या तो आतंकवादी बन जाइए
या फिर जघन्य बलात्कारी.
देखिए, हैदराबाद में चार दरिंदों के मारे जाते ही एनएचआरसी पहुँच गई.
जरा पूछिए इनसे कभी किसी आम इंसान के, शरीफ आदमी के मारे जाने पर ये कहीं पहुंंचे हैं क्या?
पूछिए इनसे कि उस स्त्री का भी कोई मानवाधिकार था या नहीं?
पूरा देश देख रहा है कि निर्भया के दरिंदे अभी तक बिरयानी चांप रहे हैं.
पूरा देश देख रहा है कि ऐसी न मालूम कितनी जघन्य घटनाओं के जिम्मेदार बाइज्जत बरी हो चुके हैं.
पूरा देश देख रहा है कि ऐसी न मालूम कितनी जघन्य घटनाओं के जिम्मेदार सरेआम घूम रहे हैं, पर देश की पुलिस और खुफिया व्यवस्था में से किसी को भी उनका कहीं कोई अता-पता नहीं है.
लेकिन जघन्य अपराधी मारे जाएं तो इन्हें सबसे पहले चिंता होती है.
पकड़ कर क्या करें?
हवालात में बैठाए रहें?
बिरयानी खिलाते रहें?
ताकि अगले दिन जब कोर्ट में पहुँचें तो आप उन्हें जमानत दे दें?
और उसके अगले दिन वे अपने शिकार के परिजनों की भी हत्या कर दें?
खैर,
शर्म आपको मगर नहीं आती.



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