मेरी चीन यात्रा - 2


विज्ञान कथाकार और ब्लॉगर डॉ. अरविंद मिश्र की चीन यात्रा की पहली कड़ी आप पढ़ चुके हैं. यह उसकी दूसरी कड़ी. जिन्होंने पहली कड़ी नहीं पढ़ी वे यहाँ से पढ़ सकते हैं. 

डॉ. अरविंद मिश्र 

बीस नवंबर की सुबह 9 बजे बेटे के साथ सबसे पहले करीब ही देवीनगर निवासी डा. श्रीनरहरि को लेकर हम केम्पेगौड़ा अन्तरराष्ट्रीय एअरपोर्ट बंगलौर की ओर चल पड़े। निकलते वक्त डा. श्रीनरहरि की धर्मपत्नी ने मुझे अलग से नाश्ते के लिये उपमा और लंच के लिये आलू के पराठे पैक कर दिये थे और यह हिदायत भी कि आप लोग एक दूसरे का ध्यान रखियेगा। बेटा कार अच्छी ड्राइव करता है। पैतालिस मिनट में हम एअरपोर्ट पहुंच गए।

दिल्ली के लिए प्लेन साढ़े बारह बजे था। हम समय से थे। मेरे पास सामान के नाम पर एक छोटी सी स्ट्राली और बैकपैक था मगर श्रीनरहरि के पास दो बड़े सूटकेस जिनमें एक में तो अन्तरराष्ट्रीय प्रदर्शनी के लिए भारतीय विज्ञान कथा की कई भाषाओं की प्रतिनिधि चुनिंदा पुस्तकें थीं, शेष में उनके खाने पहनने के सरो सामान थे। एक बैकपैक अलग था। मैं लम्बी यात्राओं में कम से कम सामान ले जाने का हिमायती रहा हूं। यह आपकी यात्रा के बोझ और बोझिलता को तो कम करता ही है, सुरक्षा जांच आदि भी सहज रहती है।

देशी उड़ानों में 15 किलो और अन्तरराष्ट्रीय उड़ानों में 20 किलो तक वजन हवाई जहाज के लगेज में बुक हो सकता है। एअर इन्डिया में यह ज्यादा है। हमारे कुल सामान का वजन ही 11 किलो था - वही एक छोटी स्ट्राली और एक बैकपैक। तो इसे मैंने साथ ही रखा। डा. नरहरि ने बंगलौर से ही इन्डिगो विमान से सीधे चेंगडू तक सामान बुक करा दिया। मगर जब हम सामानों को लेकर एअरपोर्ट पर बढ़ रहे थे डा. नरहरि अकस्मात रुक गये। हमे भी हठात रोका। मेरी प्रश्नवाचक निगाहें उनकी ओर उठीं। वे बोल पड़े देखिये उस आदमी को ठीक सामने छींक कर चला जा रहा है। एक आदमी हमको क्रास कर हमारे पीछे जाता दिखा जिस ओर उन्होंने इशारा किया। मैं मुस्कुराया। आप भी?
उन्होंने जवाब दिया कि आखिर उसे इसी समय ही क्यों छींकना था। मैंने प्रतिवाद किया कि इन अवैज्ञानिक बातों को कम से एक विज्ञान कथा लेखक को तो नहीं मानना चाहिए। दरअसल विज्ञान कथा लेखन में दो क्षेत्रों के लोग सक्रिय हैं - एक तो साहित्य दूसरे विज्ञान। यह एक फ्यूजन विधा है। डा. नरहरि अंग्रेजी साहित्य से हैं। मैंने कहा चलिये आगे बढ़िये। उन्होंने दो मिनट का पड़ाव और रखा फिर हम चल पड़े। बंगलौर से दिल्ली की यात्रा निरापद रही। हम दिल्ली अपराह्न साढ़े तीन बजे पहुंच गये थे और हमारा चेंगडू जाने वाला विमान रात दस बजे था। काफी वक्त था।

बेटी प्रियेषा के एक बैचमेट दिल्ली एअरपोर्ट पर अधिकारी हैं जिन्हें उसने हमारा ध्यान रखने को कह रखा था। वे हमारे आते ही बड़ी आत्मीयता और सम्मान देते हुए मिले। एक जगह आराम से बैठा दिया जबकि दिल्ली एअरपोर्ट पर जहां टिकट काउंटर हैं बैठने की सुविधा न के बराबर है। उन्होंने कहा कि अब चूंकि फ्लाइट दस बजे है इसलिये सारी औपचारिकतायें 6 बजे के पहले शुरु नहीं होंगी तब तक वे अपना कुछ जरुरी काम भी निपटा लेंगे। मैंने उन्हें एवमस्तु कहा और वे 6 बजे आने का वादा कर विदा हो लिये।

यह एक लम्बा ऊबाऊ इन्तजार था। डा. नरहरि बार बार अधीर हो रहे थे जबकि मैं उन्हें बार बार आश्वस्त कर रहा था कि बेटी के दोस्त हमारे इमिग्रेशन चेकिंग में मदद कर जल्दी करा देंगे। मगर जैसे जैसे समय आगे बढ़ रहा था उनकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। आखिर साढ़े पांच बजे वे चल ही दिये। धर्मपत्नी की हिदायत भूल गये कि हमें एक दूसरे का ध्यान देना था। अब चूंकि डा. नरहरि हमसे उम्र में काफी बड़े (67 वर्ष) हैं मैं उन पर फरमान तो जारी कर नहीं सकता था। लिहाजा चुप रहा। दरअसल उन्हें शायद एअरपोर्ट के उस अधिकारी पर विश्वास नही हो रहा था कि वह लौटेगा भी और कहीं वह न लौटा तो इमिग्रेशन की प्रक्रिया में कहीं झेलना न हो जाय। और इसलिये वे जाकर इमिग्रेशन की लम्बी लाईन में लग लिये। मेरा साथ छोड़ गये।

जैसे ही 6 बजा, बेटी के दोस्त लपकते हुये आये और आते ही डा. नरहरि को नदारद देखकर पूछ बैठे, अंकल कहाँ और क्यों गये? अब मैं उन्हें क्या बताता कि वे क्यों गये। कहां गये यह तो बता दिया कि इमिग्रेशन की लाईन में हैं। उन्होंने मेरा एक सामान खुद उठाया और साथ ले इमिग्रेशन के सीधे उस काऊंटर पर पहुंचे जहां से राजदूतों और राजनयिकों को प्रवेश मिलता है। काऊंटर खाली था। मुझे शायद जीवन की पहली वीवीआईपी वाली फीलिंग शिद्दत के साथ हुई। दोस्त ने बेटी और मेरे बारे में काऊन्टर के अधिकारी को बताया। उन्होंने बड़ी शिष्टता से मेरा पासपोर्ट लिया। सर, आप भी जौनपुर से हैं, मैं भी हूं। तत्क्षण जुड़ाव की एक तीव्र अनुभूति हुई और एअरपोर्ट का सारा तनाव छूमंतर हो गया।

वार्तालाप कुछ यूं हुआ - कहां जा रहे हैं सर। - चेंगडू, चीन। क्यों जा रहे हैं - एक अन्तरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में भाग लेने! किस विषय पर - साईंस फिक्शन। यह क्या है सर - अलग ढंग की कहानियाँ हैं जो हमें भविष्य के बारे में बताती हैं। तो आप कहानियाँ लिखते हैं सर - हां। बहुत अच्छा सर। आप जौनपुर का नाम रोशन कर रहे हैं। मैंने चुप रहकर यह काम्प्लिमेंट स्वीकार किया। इस संक्षिप्त वार्तालाप के दौरान वे कम्प्यूटर का कीबोर्ड खटखटाते रहे। फिर पासपोर्ट पर ठप्पा लगाया और कहा लीजिये हो गया आपका इमिग्रेशन पूरा। मैने कहां पांच मिनट भी नहीं लगे। कितना तनाव था । उन्होंने कहा सर यह तो आपसे बात करने में जानबूझकर इतना समय लगाया, आखिर अपने जिले जवार से हैं आप। उनसे फिर कभी मिलने का वायदा करके मैं आगे बढ़ा।

बेटी के दोस्त को जाने के लिये कहा। मगर उन्होंने कहा आपको सिक्योरिटी तक सौंप कर चला जाऊंगा। फिर से वे सिक्योरिटी के एक वीवीआईपी इन्ट्री तक ले गये। फिर वही वीवीआईपी वाली फीलिंग हुई। हां केवल मैं ही वहां था। दोस्त ने वहां भी कुछ परिचय दिया। मगर सिक्योरिटी ने दोनों सामानों के एक्सरे से गुजारने और मेरी भलीभांति जांच कर दो तीन मिनटों में छुट्टी कर दी। बेटी के मित्र को बहुत सा स्नेहाशीष देकर वहीं से विदा किया। अभी भी केवल साढ़े 6 बजे थे। साढ़े तीन घंटे का एक बड़ा वक्त अभी भी था।

डा. नरहरि को फोन लगाया, लगा नहीं। कोई अता पता नहीं। जिस गेट से विमान का उड़ना था - 7 , वह तीन सौ मीटर पर था। डा. नरहरि की धर्मपत्नी की हिदायत कि आप दोनों एक दूसरे का ध्यान रखियेगा बार बार कौंध रही थी। वे जनाब थे कि गायब थे। मैंने उनकी धर्मपत्नी का दिया बहुत ही स्वादिष्ट उपमा दोपहर को खाया था। अभी भी भूख बिल्कुल नहीं थी। एक एअरपोर्ट की डेढ़ सौ रुपये वाली काफी भी उदरस्थ कर डाली थी। अब खरामा खरामा सजी धजी दुकानों का अवलोकन करते हुये, बीच बीच में समय काटने के लिये जगह जगह बैठते बिठाते मैं साढ़े नौ बजे गेट संख्या 7 ए पर पहुंचने ही वाला था कि डा नरहरि मेरी ओर आते दिखे। मैं आपको ही ढूंढने आ रहा था। मैंने उन्हें निर्निमेष निगाहों से देखा भर, कुछ कहा नहीं।

दिल्ली विश्वविद्यालय के डा. सामी अहमद खान अभी भी कहीं दिख नहीं रहे थे। उन्हें विश्वविद्यालय से अनुमति तो काफी दौड़ धूप पर मिल गयी थी। मगर कहीं विदेश मंत्रालय में एफ सी आर ए में फाईल अटक गयी थी। डा. नरहरि ने कहा चलिये हम दो ही भारत का प्रतिनिधित्व कर लेंगे। और तभी डा. सामी सारे संस्पेस को खत्म करते हुए सपत्नीक प्रगट हो गये। अब हम चार थे। इन्डिगो की चेंगडू फ्लाईट की बोर्डिंग शुरू हो गयी थी..... जारी।



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