मेरी चीन यात्रा - 5
विमान चेंगडू के बजाय करीब 300 किमी दूर आपात
स्थिति में दूसरे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे चेंगक्विंग पर उतरा था। अभी सूर्योदय
में देर थी। कई चीनी यात्री जो निद्रामग्न थे अब जल्दी-जल्दी उठ रहे थे। उन्हें
लगा कि उनका गंतव्य आ गया। किंतु तब तक उनके सहयात्रियों को यह पता हो गया था कि
विमान कहीं अन्यत्र खड़ा है। धीरे-धीरे जो शोर उठा अब हो-हल्ले में तब्दील हो रहा
था। गैर चीनी यात्री,
हम सब भी व्यग्र थे कि अब क्या होगा?
आखिर विमान के मुख्य कप्तान ने कमान संभाली। अंग्रेजी में पूरी स्थिति
बयां की। उनके अनुसार चेंगडू हवाई अड्डे के ग्राउंड नैविगेशन ने खराब मौसम में
उतरने की अनुमति नहीं दी जबकि कप्तान ने कई बार अनुमति मांगी और वहीं आधे घंटे से
अधिक मंडराता रहा। कप्तान ने यहां तक कहा कि उन्हें जीरो विजिबिलिटी में विमान
उतारने में दक्षता हासिल है मगर उतरने की अनुमति नहीं मिली। मुझे लग रहा था कि जो
बात कप्तान संकेतों में समझाना चाह रहे थे वह यह थी कि इंडिगो सेवा में या उनकी
काबिलीयत में कोई कमी नहीं थी, केवल चेंगडू एअरपोर्ट एडमिनिस्ट्रेशन ने उनका
सहयोग नहीं किया। छुपी हुई बात यह समझ में आ रही थी कि भारतीय विमानसेवा को खराब
मौसम में उतरने देने में पक्षपात हुआ, प्राथमिकता चीनी और अन्य देशों को मिली।
अब चूंकि तेल खत्म हो रहा था इसलिए लैंडिंग शीघ्रातिशीघ्र जरुरी थी।
कप्तान ने विमान नजदीकी हवाई अड्डे की ओर मोड़ा मगर वहां भी आरंभिक ना नुकर के बाद
आपातकालीन लैंडिंग की ही अनुमति दी गई। यह सब कप्तान ने सावधानीपूर्वक किंतु
विस्तार से बताया। हम अनकही बातों को भी समझ रहे थे। मगर कप्तान के अंग्रेजी का यह
एकालाप चीनियों को समझ में नहीं आया।
विमान के आगे का बायां द्वार और दायां
इमर्जेंसी द्वार खोल दिया गया था मगर वहां दो विमान परिचारिकाएं मुस्तैदी से खड़ी
रहकर किसी को भी बाहर जाने नहीं दे रहीं थीं। कप्तान ने बहरहाल यह स्पष्ट कर दिया
था कि बिना इमिग्रेशन की अनुमति के कोई चेंगडू के अतिरिक्त कहीं उतर नहीं सकता। और
वही विमान स्थितियां सामान्य होने पर चेंगडू जाएगा। थोड़ी राहत हुई कि सड़क मार्ग
की फजीहत तो बची।
चीनी यात्रियों में से कुछ वहीं उतर जाने के लिए अड़ गए थे। आखिर
कप्तान के अनुरोध पर हवाई अड्डे से एक दुभाषिया विमान में आया और एक बार फिर
कप्तान ने विस्तार से स्थिति समझाई और चीनी दुभाषिए ने विनम्रता और दृढ़ता के साथ
वही बातें मंदारिन में समझाई। अब जाकर विमान का शोरगुल थमा। बस एक ही सवाल सभी की
जुबान पर था कि आखिर विमान कब उड़ेगा।
इसका उत्तर कप्तान के पास यही था कि वे
लगातार चेंगडू हवाई अड्डे के संपर्क में हैं और जब वहां से अनुमति मिलेगी तभी
उड़ान हो पाएगी। हमें यह अनुमान हो गया था कि सूरज के काफी ऊपर तक पहुंचने यानि एक
बजे दोपहर तक ही धुंध छंटेगी और विमान उतरने लायक विजिबिलिटी हो पाएगी। अब यह वक्त
अपने धैर्य को परखने का था और शरीर को एक ऊर्जा संरक्षण मोड में डालने का था। आपात
स्थिति का सामना करना था।
एक दो घंटे की आरंभिक व्यग्रता के बाद लोग सहज होने लगे थे। विमान
परिचारक और परिचारिकाएं अपने कौशल दक्षता का परिचय बखूबी दे रही थीं। उनका
प्रशिक्षण अब काम आया था और वह दिख भी रहा था। केवल पांच परिचारकों के दल ने पूरे
विमान को संभाल लिया था। सारी शुरुआती औपचारिकता अब आत्मीयता में बदलती नज़र आ रही
थी। भले ही वह प्रोफेशनल व्यवहार ही था मगर हर यात्री उनके स्वभाव और सभी का ध्यान
रखने की कोशिश से प्रभावित हो रहा था। इंडिगो का बिक्री भंडार सबके लिए खुल गया
था। माले मुफ्त का दौर था। मैंने सुबह की चाय मांगी, मिल गई। मगर सीमित
भंडार कब तक संभालता। बहरहाल घोषणा हुई कि ब्रेकफास्ट बाहर से मंगाया गया है। एक
खुशी का कोरस गूंजा।
अब माहौल कुछ पिकनिक टाइप का हो चला। नाश्ता चाइनीज
था। एक बड़ा कैन और पैक्ड गोला सा ब्रेडनुमा कुछ। परिचारिका ने मुझे भी थमाया तो
मैंने संशय से सामग्री को देखा और पूछा, यह क्या
है। परिचारिका ने हँस के हिंदी में जवाब दिया कि उन्हें खुद नहीं पता। मैंने कहा
रहने दीजिए मुझे कुछ वेज दीजिए। जवाब संतोषजनक था सर अभी देखती हूं कि आपके लिए
हमारे पास क्या बचा है।
हमारे बगल के यात्री कैन का सील तोड़ न जाने क्या
सड़प-सड़प उड़ा रहे थे। थोड़ी देर में मुझे सैंडविच का एक बड़ा पैक थमा दिया गया
और जूस भी। मेरा भूखतंत्र चूंकि भारत के समय से ट्यून था इसलिए भूख तनिक भी नहीं
थी। मैंने खाद्य सामग्री सहेज ली, आगे काम देगी। इस दौरान मैं, डा. श्रीनरहरि और डा. सामी आपस में विचार विमर्श
कर रहे थे। डा. श्रीनरहरि ने चेंगडू आगवानी टीम को स्थिति से अवगत करा दिया था। वे
भी पल पल स्थिति पर नजर रखे हुए थे।
सब कुछ सामान्य सा होता दिख रहा था कि अचानक एक तेज नारी चीख विमान
में गूंजी। सभी हड़बड़ा उठे। अब कौन अनहोनी। दरअसल एक टीनएजर चाइनीज लड़की जिसकी
यह पहली उड़ान थी सारे घटनाक्रम से डर कर अचानक हिस्टीरिक हो गई थी। वह लगातार
चिल्लाए जा रही थी। परिचारिकाएं उसे संभालने में जुट गईं। बाहर से डाक्टरों की एक
टीम आई और उसे अपने साथ ले गई। उसकी अचानक चिल्लाहट से एक परिचारिका के हाथों पर
खौलता पानी गिर गया और वह जल गई। अजीब स्थिति थी - जैसे ही स्थिति सामान्य होती
कुछ न कुछ हो जाता।
खैर नौ घंटे विमान वहीं रुका रहा। फुएलिंग हुई।
बारह बजे टेक आफ की खुशखबरी मिल गई। अगले एक घंटे में हम चेंगडू पर उतर चुके थे।
इमिग्रेशन ठीक निपटा। कुछ सवाल मैं समझ नहीं पाया तो पूरी सहज बेचारगी से बता दिया
कि मैं उन्हें समझ नहीं पा रहा। उनके अंग्रेजी के उच्चारण भी मुझे चाइनीज की
अबूझता का अहसास देते। बहरहाल उन्होंने मुझ पर समय जाया करने के बजाय पासपोर्ट पर
मुहर मारकर मुझे दे दिया और कहा जाओ। आगे कस्टम पर डिक्लेयर करना था। आगे बढ़ गया।
हां, डा नरहरि के सूटकेस को चेक किया। सिक्योरिटी भी
सहज रही।
अब सब कुछ सहसा अच्छा हो चला था। आगमन पर आयोजकों
का पूरा रिसेप्शन डेस्क था। प्लेकार्ड लिए वालंटियर्स की टोली थी। सभी गर्मजोशी से
मिले। तुरंत एक बड़ी कार में सामान रखा। फोटो सेशन हुआ और हम अपने ठहराव के ठिकाने
राइजिंग बटरफ्लाई होटेल की ओर चले। चेंगडू शहर की प्लानिंग, कांफ्रेंस के रोड के
किनारे विशाल कटआउट भव्यता का अहसास दे रहे थे। व्यवस्थित परिवहन, सब कुछ साफ शफ्फाक।
होटेल तो बहुत ही खूबसूरत और आरामदायक। सभी तरह का एंबिएंस। मुझे और सामी को बारहवें
और डा. नरहरि को ग्यारहवें तल के अलग अलग कमरे एलाट हुए।
जारी...
Comments
Post a Comment
सुस्वागतम!!