मेरी चीन यात्रा – 6
यह यात्रा वृत्तांत शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहाँ चटका लगाएं : पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी एवं पांचवीं किस्त
राइजिंग बटरफ्लाई होटेल में हमारा ठहराव था। जहां
स्वागत डेस्क पर वालंटियर्स, जिसमें स्कूलों की
छात्र छात्राएं थीं, आगंतुकों की सहायता
में जुटे थे। आगंतुक अतिथियों को होटेल रिसेप्शन पर ले जाना, इंट्री, सामान कमरे में भिजवाना आदि काम सभी मुस्तैदी से
निपटा रहे थे। इन्हें अंग्रेजी की कामचलाऊ जानकारी थी।
जिससे वे सभी बतौर दुभाषिए काम कर रहे थे। होटेल रिसेप्शन की बालाएं तो अंग्रेजी
बिल्कुल भी नहीं समझ रही थीं। हमें पांच सौ युवान (रु. पांच हजार लगभग) सिक्योरिटी मनी के रुप में जमा करने को कहा गया। यह
अजब सा लगा क्योंकि हमारा पूरा पैकेज ही पेड था। मगर बताया गया कि वापसी में यह
राशि लौटा दी जाएगी।
होटेल राइजिंग बटरफ्लाई किसी भी भारतीय होटेल की तुलना में हर लिहाज
से आरामदायक और भव्य था। इसके लिए हम सात सितारा दे
सकते थे। तकनीकी तामझाम भी खूब था। एक रोबोट भी अढ़वा-टिकोर (Errand) में लगा था और फर्श की सफाई के साथ छोटे-मोटे सामान भी ऊपर-नीचे ले
आ जा रहा था। जिस लिफ्ट में हमें अपना रुम कार्ड
स्वैप कर आना-जाना पड़ता था, यह
रोबोट कमांड देकर सहजता से बिना किसी सहयोग के आ-जा रहा
था। उसके रास्ते में आ जाने वालों से वह चायनीज में कुछ कहता था। अगर मुझे चायनीज
आती तो शायद हम भी इससे कुछ बोल बतिया पाते। होटेल का मुख्य द्वार एक रिवाल्विंग
डोर था।
कमरे में कई गैजेट ऐसे थे जिन्हें मैने पहली बार देखा था। जिज्ञासावश
कुछ को छू छा के देखा भी तो एक चौकोर पेपरवेट से गजट से संगीत बजने लगा। मैंने फिर
दूसरे गैजेट को नहीं छुआ। पता नहीं क्या हो? बारहवाँ तल, कमरे में अकेले। अजब
सा डरावना एकाकीपन लग रहा था। एक काफी मेकर मशीन दिखी मगर कैसे आपरेट होगी, समझ नहीं पाया। मिनी बार भी था जिसमें तरह-तरह के द्रव और खाद्य सामग्री थी। मैंने डा. नरहरि को फोन कर कमरे में आकर थोड़ा गाइड करने को कहा तो साफ इन्कार कर गए। कहा कि इस होटेल में नीचे तो जाया जा सकता है, ऊपर नहीं (जो गलत था)। और वे अपने अंतरराष्ट्रीय ज्ञान का हवाला देने लगे। मैंने फोन
काट दिया। शायद मेरा ही अनुरोध करना गलत था। सभी थके-मांदे
थे और वे हमसे सीनियर भी थे। हमें उन्हें डिस्टर्ब करना नही चाहिए था। उन्होंने हमसे वादा किया था कि इंटरनेशनल चार्जर प्लग भी मोबाइल चार्ज करने को
देंगे। मगर शायद भूल गए। वह तो अच्छा हुआ
कि दिल्ली एअरपोर्ट पर क्रोमा कंपनी के शो रुम से मैने अट्ठारह सौ में एक इंटरनेशनल प्लग ले लिया था जो बड़े काम का था।
मैंने एकला चलो रे का मंसूबा मजबूत किया। रूम की मोटी सी डाइरेक्टरी में रूम असिस्टेंट का नंबर खोज कर मिलाया। अंग्रेजी में किसी को भेजने को कहा मगर उधर से
चायनीज में कुछ कहकर फोन काट दिया गया। अब क्या करें! बेटे
को फोन मिलाया जिससे थोड़ी सहजता हो जाय। वे दो बार के चीन रिटर्न हैं। कुछ
जानकारी ले ही रहे थे कि कालबेल बजी।
सामने एक सुंदर सी चायनीज होटेल
सहायक थीं। बहुत सम्मान और विनम्रता से टूटी-फूटी
अंग्रेजी में मुझसे बुलाने का कारण पूछा। मैंने उससे गैजेट की जानकारियां लीं। फोन
कैसे कब और किसलिए इस्तेमाल होगा
समझा। बाथरूम के फोन के बारे में जाना-समझा। टायलेट सीट भी यांत्रिक तामझाम की थी, कई लाल हरी बत्तियां
बटन थे उन्हे समझा। काफी मेकर से काफी कैसे बनेगी यह पूरा डेमो हुआ। उसने कहा कि
काफी बन गई। इसे पीजिए। बाप रे इतनी कड़वी काफी। पहला घूंट ही हलक के नीचे नहीं उतरा। मगर
मैंने अपने भाव को किसी तरह छुपाया। उसने अपना एक अलग नंबर देकर कहा कि कोई भी समस्या हो तो मैं कभी भी काल कर सकता हूं। उसके
जाने के बाद बची काफी सिंक में उड़ेलनी पड़ी। फिर नेस्कैफे के सामान्य पाउच से काफी बनाई। वहां मिल्क सैशे नहीं था। मगर नेस्कैफे का अलग
बड़ा सैशे था और लिपटन की डिप टी थी। इनसे ही काम चलता रहा।
सम्मेलन कल (22 नवंबर) से शुरू था। यद्यपि हम बहुत विलंब से पहुंचे थे मगर फिर भी कोई नुकसान नहीं
था। हमारा डिनर होटेल में ही था मगर डा. श्रीनरहरि स्थानीय मेयर द्वारा अलग डिनर
पर आमंत्रित थे जिसमें उन प्रतिभागियों को प्राथमिकता दी गई थी जो वर्ल्डकान 2023 के आयोजन से जुड़े थे और जिसके
लिए चेंगडू शहर की तगड़ी दावेदारी थी। जो
कार्यक्रम हैंडबुक हमें मिली थी उसमें सामी अहमद खान और मुझे तो विदेशी अतिथियों
के विज्ञान कथाकार की श्रेणी में रखा गया था मगर डा.
श्रीनरहरि को विज्ञान कथा सक्रियक की अलग श्रेणी में उद्धृत किया गया था। इसलिए उन्हें एक अलग प्राथमिकता मिल रही थी और वे उचित
ही भाव विभोर थे।
हमने रात में होटेल में ही आमंत्रित डिनर का लुत्फ उठाया। डॉ. सामी और उनकी
शिष्टाचार कुशल पत्नी ज़ारा खान भी साथ थे। कई विदेशी दिग्गज कथाकार भी। सभी में
हाय हेलो हुआ। जूल्स वर्न के देश फ्रांस से गैलेक्सी पत्रिका के संपादक पियरे
गेवर्ट ने मुझे पहले पहचाना और भावविभोर हो गले से लिपट गए। मेरी पुरानी मित्रता है। मैने गैलेक्सी के लिए भारत से पत्रों की एक लंबी
श्रृंखला लिखी थी। मगर मिले पहली बार थे। उन्होंने मुझे गूगल मेल के मेरे थम्बनेल चित्र से पहचान लिया था। बहुत ही
सज्जन और विनम्र। कोई इगो नहीं। अपनी पत्नी से मिलाया। वे दोनों ही विनम्रता के प्रतिमूर्ति लगे।
चीन की दीवार से भी बड़ी और दृढ़ और दो दीवारें चीन में हैं - एक भाषाई और दूसरा खानपान। खाने के लिए विविध व्यंजन सजे थे मगर निन्यानवे फीसदी सामिष, नानवेज और वह भी
बत्तख, खरगोश, पोर्क,
बीफ,
बकरा सब। हां फ्रूट थे। जूस भी। मगर डेजर्ट नहीं, ब्रेड नहीं। पता लगा
चीनी कार्बोहाइड्रेट नहीं के बराबर लेते हैं। चीनी चीनी नहीं खाते। मैंने सावधानी से चयन कर खाया-पीया। कमरे में लौटकर वहां से बाहर का दृश्य देखा
- अद्भुत। स्नैप किया। बिस्तर पर लेटते ही नींद आ गई।
जारी...
जारी...
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