मेरी चीन यात्रा - 7


यह यात्रावृत्तांत शुरू से पढ़ने के लिए कृपया यहाँ चटका लगाएं: पहली, दूसरी, तीसरी, चौथी, पांचवीं एवं छठी किस्त


आज विज्ञान कथा सम्मेलन के आगाज का दिन 22 नवंबर (2019) था पहले ही इत्तिला मिल चुकी थी कि ठीक आठ बजे हमें होटेल लाबी में नीचे पहुंच जाना है, जहां से बसें कार्यक्रम स्थल को प्रस्थान करेंगी। उसके पहले होटेल का काम्प्लिमेंटरी नाश्ता भी करना था। सितारा होटलों के काम्प्लिमेंटरी नाश्ते को लेकर बड़ी सुगबुगाहट रहती है। यह बहुत कुछ ब्रंच का भी काम करता है और अगर दोपहर का खाना न भी मिले तो काम चल जाता है।

भारत के समय के मुताबिक हम यहां ढाई घंटे एडवांस चल रहे थे और हमारी जैवीय घड़ियां तेजी से स्थानीय समय के अनुसार तालमेल बिठा रहीं थीं जल्दी से दैनंदिन क्रियाकर्म और स्नान ध्यान निपटा हम पांचवे तल के भव्य डाइनिंग हाल में साढ़े सात तक पहुंच ग। भारत में सुबह पांच बजा था। पत्नी को फोन किया और बताया कि यहां तो नाश्ता शुरू हो गया तो उन्हें आश्चर्य हुआ - इतनी जल्दी? नाश्ते में सामिष व्यंजनों का ढ़ेर था। भूरे सफेद अंडे। बत्तख और खरगोश के गोश्त के व्यंजन। अंडों के हाफ फ्राई। पास्ता। कई जूस भी। गरम दूध भी था। ब्रेड बटर और जैम भी। अपनी सुविधा के मुताबिक मैंने जितना सहजता से जो खाया जा सकता था लिया।

विज्ञान कथा का विश्व परिवार वहां उपस्थित था। अमेरिकी बहुत हो हल्ला करते हैं और बेसाख्ता हंसते हैं ।उनकी अट्ठहास करती टीम दिखी। डा. सामी नहीं दिखे तो उन्हें फोन किया। उनका उनींदा सा स्वर उभरा तो मैंने कहा जल्दी आये नाश्ते पर, आठ बजे लाबी में पहुंचना है। डा. नरहरि तो दिखे नहीं।

नाश्ते के बाद नीचे लाबी में जैसे ही उतरा सामने से रोबोट महोदय आ रहे थे। उन्होनें अपने रास्ते में मुझे ठीक सामने पाकर कुछ कहा - शायद कि बगल हो जाइए। महानुभाव को लिफ्ट से ऊपर जाना था। मैंने रुककर एक बार फिर उनकी गतिविधि और लिफ्ट में जाना देखा, रिकार्ड किया। नीचे डा. नरहरि उद्घाटन समारोह के लिहाज से सूटेड बूटेड तैयार दिखे। मैंने पूछा नाश्ता किया। तो बोल पड़े कहां है? लो भला। सितारा होटेल का नाश्ता ही मिस कि दे रहे थे। बहरहाल बताने पर तेजी से ऊपर भागे।

चीनी शिष्टाचार में जब भी जिस वक्त सुबह दोपहर शाम किसी से मिलि तो यह जरुर पूछा जाता है कि आपने खाना खा लिया। पहले नि हाओ मतलब कैसे हैं और फिर खाना खा लिया? यह आम संपर्क - संबोधन है। इसे वे बहुत पसंद करते हैं कि देखो कितने अच्छे हैं, हमारा कितना खयाल रखते हैं। शिष्टाचार के इस न पाठ का हम यथोचित इस्तेमाल भी कर रहे थे। कुशल वालंटियर्स की टीम सभी को बसों में बिठा रही थी। वहां लेफ्ट हैंड ड्राइव है और बस में भी आगे की सीट वाले को बेल्ट बांधनी होती है। लंबी-चौड़ी साफ-सुथरी सड़कें, व्यवस्थित यातायात। वहां दुपहिया सवारों को हेल्मेट लगा नहीं देखा। संभवतः वहां यह अनिवार्य नहीं।

अगले आधे घंटे में हम कार्यक्रम स्थल पर पहुंच ग। उतरते ही सम्मेलन की भव्यतम तैयारियों का दीदार हुआ। लेखकों के बड़े-बड़े ब्लो अप। बड़े पोस्टर और बैनर। एक महोत्सव सा माहौल। मगर किसी भारतीय प्रतिनिधि का कोई ब्लो अप नहीं। ज्यादातर वर्ल्डकान के पदाधिकारियों के बड़े चित्र थे। हां भारतीय मूल की न्यूयार्क वासी मोनिदीपा मंडल का चित्र जरूर दिखा। कार्यक्रम दस बजे शुरू होना था। अभी वक्त था।

हम इधर-उधर चहलकदमी करते रहे। पांडामय इस शहर में पांडों के स्टेच्यू के साथ फोटो खिंचवाए।तभी एक वालंटियर छात्रा मेरी ओर तेजी से आती दिखी। नाम पूछा। सूची में खोजा और जल्दी से साथ चलने को कहा। सिक्योरिटी चेक में मेरे बैकपैक की स्क्रीनिंग हुई और लगभग भागती हुई वो मुझे मेरे पूर्व निर्धारित चेयर पर बैठा ग। कार्यक्रम बस शुरू ही होने वाला था। इसकी घोषणा चल रही थी। हमें चौथी रो में बैठाया गया। मेरे सामने के तीन कतारों की विशिष्ट कुर्सियों और उनके विन्यास से लग रहा था कि वे वीवीआईपी कतारें थी। कुछ पलों में डा. सामी भी सपत्नीक तेजी से आ। वे मेरी कतार में पास ही बैठे। पत्नी पीछे की कतार में। डा. नरहरि कहां थे मालूम नहीं हो सका।

विराट सभागार। हजारों आडिएंस की क्षमता। संगीत और प्रकाश के संयोजन का एक भव्य शो। बल्कि यह शोबाजी हमें चीन के वैभव की झांकी दिखा रही थी। सब कुछ इतना विविधता भरा, भव्य, समृद्ध और व्यापक कि उसे शब्दों में समेट पाना आज भी दुरूह सा लग रहा है। आखिर चीन की तूती यूं ही नहीं बोल रही सारे जग में। विज्ञान कथा पर ऐसे भव्यतम आयोजन की हमने कल्पना तक नहीं की थी।

साम्यवादी चीन का पार्टी कैडर सबसे आगे की वीवीआईपी कुर्सियों पर विराजमान था। कार्यक्रम की जोरदार और जबर्दस्त शुरुआत संगीत और प्रकाश की सपनीली झिलमिलाहट से आरंभ हुई। चेंगडू के मेयर ने शुभारंभ भाषण दिया। पाकिस्तान का जिक्र तो उन्होने किया जहां से कोई प्रतिभागी नहीं था मगर भारत का नाम तक नहीं लिया जहां से चार प्रतिभागी उपस्थित थे। हमें कान की मशीन सा एक गैजेट - इंटरप्रेटर दिया गया जिससे हम तत्क्षण चानीज को अंग्रेजी में सुन रहे थे। उद्घाटन समारोह के ठीक बाद कई समांतर सत्रों में विज्ञान कथा पर विमर्श होना था।
जारी....



Comments

Popular posts from this blog

रामेश्वरम में

इति सिद्धम

Most Read Posts

रामेश्वरम में

Bhairo Baba :Azamgarh ke

इति सिद्धम

Maihar Yatra

Azamgarh : History, Culture and People

पेड न्यूज क्या है?

...ये भी कोई तरीका है!

विदेशी विद्वानों के संस्कृत प्रेम की गहन पड़ताल

सीन बाई सीन देखिये फिल्म राब्स ..बिना पर्दे का