हड़बड़ी से गड़बड़ी
इष्ट देव सांकृत्यायन ' पाकिस्तान ज़िंदाबाद ' के नारे लगाना सरासर ग़लत है और यह सीधे-सीधे देशद्रोह की हरकत है , इसमें तो कोई दो राय हो ही नहीं सकती. लेकिन उस पर हमला करना या उसका घर घेरना भी कोई अच्छा काम नहीं कहा जा सकता. देशद्रोहियों के ख़िलाफ़ जनरोष स्वाभाविक है. उसे समझा जा सकता है. लेकिन रोष में होश खो देना और कानून को अपने हाथों में ले लेना भी कोई ढंग का काम नहीं है. कानून अपना काम कर रहा है. वह कोई सोया हुआ नहीं है और न बेहोश है. हमने इसकी गति सत्तर वर्षों से मंथर ही बनाए रखी है. तो हमें यह भी समझना होगा कि रातो-रात कुछ नहीं होता. किसी व्यवस्था या सरकार से चमत्कार की आशा नहीं करनी चाहिए. वरना वही होगा जो ऐसे मामलों में होता है. इसके पहले कि कोई और भीड़ अमूल्या या उसके परिजनों के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाए और आप उसका हिस्सा बन जाएं , आपको वह बात सुननी और समझनी होगी जो उसने नारे लगाने के बाद कही है. उसने कहा है - " मैं जो भी आज कर रही हूं , वो मैं नहीं कर रही हूं। मैं सिर्फ इसका फेस बन गई हूं , मीडिया की बदौलत। लेकिन मेरे पीछे बहुत सारे अडवाइजरी कमिटिय...