हड़बड़ी से गड़बड़ी
इष्ट देव सांकृत्यायन
'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' के नारे लगाना सरासर ग़लत है
और यह सीधे-सीधे देशद्रोह की हरकत है, इसमें तो कोई दो राय हो ही नहीं सकती.
लेकिन
उस पर हमला करना या उसका घर
घेरना भी कोई अच्छा काम नहीं कहा जा सकता. देशद्रोहियों के ख़िलाफ़ जनरोष स्वाभाविक
है. उसे समझा जा सकता है. लेकिन रोष में होश खो देना और कानून को अपने हाथों में
ले लेना भी कोई ढंग का काम नहीं है.
कानून अपना काम कर रहा है.
वह कोई सोया हुआ नहीं है और न बेहोश है. हमने इसकी गति सत्तर वर्षों से मंथर ही
बनाए रखी है. तो हमें यह भी समझना होगा कि रातो-रात कुछ नहीं होता. किसी व्यवस्था
या सरकार से चमत्कार की आशा नहीं करनी चाहिए. वरना वही होगा जो ऐसे मामलों में
होता है.
इसके पहले कि कोई और भीड़
अमूल्या या उसके परिजनों के ख़िलाफ़ कोई क़दम उठाए और आप उसका हिस्सा बन जाएं, आपको वह बात सुननी और समझनी होगी जो उसने नारे लगाने के बाद कही है. उसने कहा
है -
"मैं जो भी आज कर रही हूं, वो मैं नहीं कर रही हूं।
मैं सिर्फ इसका फेस बन गई हूं, मीडिया की बदौलत। लेकिन मेरे पीछे बहुत सारे
अडवाइजरी कमिटियां काम करती हैं, और वो जो सलाह देते हैं कि आज स्पीच में यह बात
बोलनी है, ये पॉइंट्स हैं। कॉन्टेंट टीम काम करती है, बहुत सारे सीनियर ऐक्टिविस्ट काम करते हैं, मेरे मां-बांप बोलते हैं कि
ऐसे बोलना है, ऐसे करना है, इधर जाना है। एक बहुत बड़ा स्टूडेंट ग्रुप-
बैंगलोर स्टूडेंट अलायंस- जो ये सारे प्रोटेस्ट के पीछे काम कर रहा है। मैं सिर्फ
इसका चेहरा बनी हूं, लेकिन बैंगलोर स्टूडेंट अलायंस बहुत कड़ी मेहनत कर रहा
है।"
अगर इस बात पर ग़ौर किया जाए
और देश की सुरक्षा से जुड़ी एजेंसियां इस पर ढंग से काम करें तो आगे बहुत लोगों की
पोल पट्टी खुलेगी. ध्यान रहे, उससे बहुत ज्यादा संगीन बात उससे पहले वारिस
पठान कर चुका है. उसने अभी तक इस सिलसिले में किसी का नाम भी नहीं लिया है. यानी
वह अपनी बात का जिम्मेदार खुद है. और खुद वह दो कौड़ी का भी नहीं है. जाहिर है, उसके पीछे भी देश को तोड़ने, देश में अव्यवस्था उत्पन्न करने और गृहयुद्ध
जैसे हालात बनाने को लालायित अपनी जीभ लपलपाते कुछ गिरोह काम कर रहे हैं.
ऐसे गिरोह दोनों ही के पीछे
हैं. अमूल्या के भी और वारिस के भी. ये गिरोह ऐसे ही लोगों का इस्तेमाल करते हैं.
छोटे बच्चे को पहले यह भरोसा दिलाया गया कि कोई तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा.
बड़ा गिरोह तुम्हारे पीछे खड़ा है. निश्चित रूप से वह खड़ा भी है और खड़ा ही रहेगा.
किसी गिरोह के पीछे खड़ा हुए बिना क्या निर्भया के दोषियों के बूते की बात है कि वे
अपना मुकदमा इतना लंबा खींच सकें. सुप्रीमकोर्ट अपने ही फैसले को लागू न करवा पाए
और वह कानून पेंचों के ही चलते. सरकारी पेंच अब उसमें कुछ नहीं बचा है. इसी से
अंदाजा लगाइए कि सुप्रीमकोर्ट की क्या स्थिति है. यह एक घटना उसकी सारी हकीकत
खोलकर आम जनता के सामने रख दे रही है.
इन गिरोहों ने भारत की पूरी
व्यवस्था को हाइजैक कर रखा है और हाइजैकिंग का यह करनामा कोई आज नहीं हुआ है. ग़ौर
से देखेंगे तो पाएंगे कि स्वतंत्र भारत की व्यवस्था तो अपने जन्म से बहुत पहले ही
हाइजैक कर ली गई थी. तभी जब आजादी की लड़ाई हाइजैक की गई थी.
लेकिन वह हाइजैकरों के खूनी
पंजे से मुक्त हो रही है. धीरे-धीरे बाकी चीजें भी मुक्त होंगी. ये छिपे हुए
गद्दार, जो अपने कुत्सित इरादों के लिए कमअक्ल बच्चों और नौजवानों
का दुरुपयोग कर रहे हैं, भी उजागर होंगे. लेकिन जब तक यह सब नहीं हो जाता जोश या रोष
में होश खोने से बचें. क्योंकि इसमें जोश से बहुत ज्यादा होश की जरूरत है. यह बात
केवल होश और अक्ल से ही बनेगी. धैर्य रखना होगा. हड़बड़ी से बात बनेगी नहीं, सिर्फ बिगड़ेगी.
©इष्ट देव सांकृत्यायन
यह मुखर होने का वक्त है। हममें से ही कितने कथित बुद्धिजीवी ऐसे लोगों के प्रति बड़ी सहिष्णुता बरतते हैं।
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