मुरादाबाद की पत्थरबाजिनें
मुरादाबाद शहर की करीब नौ लाख आबादी है और इसमें
लगभग चार लाख मुसलमान हैं.
क्या ये सारे ४ लाख मुसलमान सिर्फ तब्लीगी हैं? अगर नहीं तो मुरादाबाद के किसी मुसलमान की ओर से पत्थरबाजों का विरोध
क्यों नहीं किया गया?
इक्वल का दर्जा तो भारत में सबको मिला हुआ है.
इसमें कोई दो राय नहीं है. आपको पहले ही मोर इक्वल मिला हुआ है. आज भारत के अगल
बगल जो दो टुकड़े पड़े हुए हैं, वे इसी #मोर_इक्वल के प्रमाण हैं.
इतनी आबादी के बावजूद #अल्पसंख्यक शब्द की कोई परिभाषा तय किए बिना आपको जो अल्पसंख्यक दर्जा मिला हुआ
है और उसके साथ हद से बहुत ज्यादा जो सुविधाएं मिली हुई हैं, वह इसी मोर इक्वल का साक्ष्य है.
देश के दोनों तरफ दो टुकड़े फेंके जाने के
बाद भी आप भारत में पूरे सम्मान से रखे गए और आपको आपकी धार्मिक शिक्षाओं वाले
मदरसे, तमाम
संस्थान और धर्मस्थल चलाने दिए गए, हर बहुसंख्यक ने हमेशा आपकी भावनाओं और सुविधाओं का ख्याल रखा, वह इसी मोर इक्वल का साक्ष्य है.
एक बार अपने चारो तरफ नजर दौड़ाएं. और
अपनी बदतमीजियों का भी हिसाब लगाइए. भारत ने सैकडो बार विस्फोटों, दुश्मन देश के साथ मिलकर साजिशों, निर्दोष तीर्थयात्रियों तक पर निहायत बर्बर
ढंग से जानलेवा हमलों और तमाम बेहूदगियो के बावजूद आपको इन बेहूदगियो का कभी माकूल
जवाब नहीं दिया.
देखिए कि यही बगल के #श्रीलंका में क्या हुआ. #म्यांमार में क्या हुआ. #पाकिस्तान और आज के #बांग्लादेश में अल्पसंख्यक #हिन्दुओं, #सिखों और #ईसाइयों के साथ क्या हो रहा है.
सोचिए कि आप कितने सुखी हैं. यह सुख
इसीलिए है कि आप भारत में हैं और भारत सच्चे अर्थों में एक लोकतांत्रिक और
पंथनिरपेक्ष देश है। जो बिना किसी भेदभाव के सबको समान अधिकार, सुविधाएं और अवसर देता है.
ये समान अधिकार, सुविधाएं और अवसर तभी तक सुरक्षित हैं, जब तक यहां का बहुसंख्यक समुदाय कट्टरपंथी
रुख अख्तियार नहीं करता.
आखिर किसी के भी बर्दाश्त की एक सीमा होती
है! आपको लगता है कि बहुसंख्यक डरपोक है? तो समझ लीजिए, आप बड़े
भ्रम में हैं.
जिसे आप भय समझ रहे हैं, वह केवल उसकी समझदारी और कानून का सम्मान
है. ऐसा न हो कि एक दिन आजिज आकर वह आपकी भाषा में ही आपका जवाब देने उतर आए. अभी
आप कल्पना नहीं कर सकते उसके बाद की स्थिति की. भगवान न करे कि वह स्थिति कभी आए.
एक की बार बार बदतमीजी के बाद दूसरा अपनी
तमीजदारी कितने दिन बनाए रख सकता है, यह भी आप जानते हैं.
दुनिया का कोई भी देश #लॉक_डाउन अनंत काल तक
नहीं झेल सकता. ऐसा न हो कि लोगों का सब्र टूटे, इसके लिए अपने समुदाय में बढ़ रहे कट्टरपंथ के खिलाफ आपको ही आना होगा, अगर आप खुद को पढ़ा लिखा और देश का
जिम्मेदार नागरिक मानते हैं तो. क्योंकि जब दूसरे आएंगे तो उनके सामने तो सिर्फ एक
पहचान होगी. कट्टरपंथी और उदारवादी का भेद कोई भीड़ नहीं कर पाती.
क्या यह उम्मीद की जाए कि मुरादाबाद जैसी
बेहूदगियां, जो अब तक कई
शहरों में कई बार हो चुकी हैं, आगे नहीं होने पाएंगी?
क्योंकि ताली एक हाथ से नहीं बजती और
सौहार्द का कमजोर या मजबूत होना तो अब इसी बात पर निर्भर है.
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