युद्ध में नहीं बदलेगा तनाव
इष्ट देव सांकृत्यायन
भारत चीन सीमा पर तनाव को लेकर कुछ लोग युद्ध की आशंका से अभी चिंतित होने लगे हैं। स्वाभाविक है। बात केवल युद्ध की नहीं, उसके बाद बनने वाले हालात की होती है। इसका अंदाजा दोनों देशों को है।
आशंका यह है कि अगर यह युद्ध शुरू हुआ तो केवल भारत चीन तक सीमित नहीं रहेगा। यह अंततः विश्वयुद्ध में बदल जाएगा। यह आशंका गलत नहीं है। युद्ध हुआ तो वाकई विश्वयुद्ध में बदलेगा। अमेरिका, इजरायल, आस्ट्रेलिया, फ्रांस जैसे बड़े पहलवान अभी से कमर कसने लगे हैं और सब भारत की ओर अखाड़े में कूद चुके हैं।
कांग्रेसियों और कम्युनिस्टों के भारत के अनन्य टाइप मित्र देशों में एक रूस भी शामिल है। पहलवानों में बस एक वही है जो तटस्थ रहेगा। तटस्थ रहने का मतलब हम जानते हैं।
भारत का अनन्य मित्र ६२ में भी तटस्थ रहा था। उस तटस्थता में इसने पूरी बेशर्मी के साथ युद्ध के लिए भारत को जिम्मेदार ठहराया था और साथ ही इस युद्ध को भाई और दोस्त के बीच बताया था। इसमें भाई उसके लिए चीन था और दोस्त भारत।
अब भी जो लोग रूस को लेकर भ्रम में हों, उन्हें उसकी नई तटस्थता से समझ लेना चाहिए। उधर कांग्रेस और कम्यूनिस्ट भाई लोग जोर जोर से आवाज लगाते रहेंगे कि अब युद्ध हो ही जाना चाहिए। क्यों नहीं किया जा रहा युद्ध।
वे ऐसा सिर्फ इसलिए करेंगे कि युद्ध के लिए भारत को जिम्मेदार ठहरा सकें। आप अभी की इनकी भूमिका देख लीजिए। यहां तक कि वैश्विक महामारी और २००८ में हुई संधि को भी भूलकर ये कुछ भी बके जा रहे हैं। इन बेचारों को तो सिर्फ अवसर चाहिए।
ख़ैर यह अवसर इन्हे मिलने वाला नहीं है। भारत और चीन के बीच पूरा युद्ध और उसके परिणामस्वरूप विश्वयुद्ध जैसा कुछ होने वाला नहीं है। युद्ध बराबरी पर होता है और यह आकलन कूटनीतिक सफलता से होता है। चीन कूटनीति में सफल नहीं, एक बेशर्म धोखेबाज साबित हुआ है। दुर्भाग्य से भारत की विपक्षी पार्टियों के साथ भी ऐसा हुआ है।
भारत आज मोदी की कूटनीतिक सफलता के फलस्वरूप बहुत मजबूत स्थिति में है। इसलिए पूरा युद्ध कतई नहीं होने जा रहा। हां, गलवान घाटी जैसी झड़पें और उसमें जन धन की कुछ क्षति अभी दो तीन महीने तक चलती रहेगी। साथ ही बातचीत से संधि के प्रयास भी। हालात बनेंगे, लेकिन होगा नहीं।
क्योंकि दोनों जानते हैं कि दोनों परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्र हैं। भारत में लोकतंत्र और मीडिया के बेलगाम व दलाल होने के नाते बातें तिल का ताड़ बनकर सामने आती हैं। निहायत गैर जिम्मेदार कुछ विपक्षी दल अपने ही देशहित के विरुद्ध झूठ फैलाती रहती हैं। वह अलग बात है।
लेकिन चीन खूब जानता है कि वह गृहयुद्ध के मुहाने पर ही बैठा हुआ है। ये महामारी और इससे दुनिया का ध्यान हटाने की नौटंकी सब इसी की देन है। चीन जानता है कि अगर उसने परमाणु अस्त्र चलाए तो आज का भारत जवाब देने में सेकंड की भी देर नहीं करेगा। साथ ही यह कि उसके सारे शहर हमारी मिसाइलों के निशाने पर हैं और वे मिसाइलें मेड इन चाइना नहीं, मेड इन इंडिया हैं। मेड इन चाइना और मेड इन इंडिया का फर्क पूरी दुनिया जानती है।
इसके विपरीत ट्रेड वार शुरू ही हो चुका
है। अगर ट्रेड वॉर आगे बढ गया तो चीन के भूखे मरने की नौबत आ जाएगी। गलती से यह
शुरू हो चुका है। आगे चीन पर आर्थिक प्रतिबंध लगने, अंतरराष्ट्रीय संगठनों से उसके निष्कासन और
तिब्बत को आज़ाद कराने की भूमिका भी बन चुकी है।
सारे हालात को समझते हुए और ऐतिहसिक परिप्रेक्ष्य में देखें तो बात आसानी से समझी जा सकती है। चीन, शी जिनपिंग और कम्युनिज्म का खेल थोड़े दिनों का मामला है। विश्वयुद्ध से पहले ही वहां गृहयुद्ध होने जा रहा है। तिब्बत आज़ाद होगा, चीन कई टुकड़ों में बंटेगा।
पर यह सब केवल दो तीन महीने का मामला नहीं
है। यह सब होने से पहले चीन आर्थिक रूप से लुंज पुंज होने जा रहा है। आगे करीब एक
दशक की वैश्विक कूटनीति बेहद खतरनाक होने वाली है।
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (24-06-2020) को "चर्चा मंच आपकी सृजनशीलता" (चर्चा अंक-3742) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ। सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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चिंतन परक सार्थक लेख ।
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