पत्रकारिता का रंग इतना ज़र्द!!
इष्ट देव सांकृत्यायन
योगी आदित्यनाथ पर मुक़दमा दर्ज कराने वाले परवेज़ परवाज़ को दुष्कर्म मामले में उम्र क़ैद
इस शीर्षक से आपको क्या सीख मिलती है?
यही कि मीडिया का कोई भी घराना हो, उस पर धेला भर भी यकीन करने की जरूरत नहीं है.
पहली बात.. उम्र क़ैद
की सज़ा उसे किसने दी? आदित्यनाथ ने या कोर्ट ने?
दूसरी बात.. भारत
में कोर्ट इतनी जल्दी या तेज़ गति से तो काम करता नहीं कि इधर आदित्य नाथ पर उसने
मुकदमा दर्ज कराया और उधर कोर्ट ने उसे सज़ा दे दी. जाहिर है, यह मामला पुराना रहा होगा. पहले पीड़ित ने पुलिस को सूचना दी होगी.
पुलिस ने अपनी रीति-रिवाज़ के मुताबिक हीला-हवाली की होगी. उसके बाद उस पर स्थानीय
लोगों का दबाव पड़ा होगा, तब जाकर मुकदमा दर्ज हुआ होगा. फिर जाँच हुई
होगी. रपट आई होगी. पहली जाँच रपट निश्चित रूप से अंतर्विरोधों से भरी रही होगी.
क्योंकि यूपी पुलिस के जो संस्कार उसके अनुसार ठीक-ठीक रपट वह अपनी माँ-बहन के
मामले में भी दे दे तो बड़ी बात है. हाँ एनकाउंटर अलग मसला है. फिर उसे दो-चार बार
अदालत में लताड़ पड़ी होगी. तब जाकर उसने कहीं सही रपट दी होगी.
कोर्ट की कार्यपद्धति #मजीठिया_वेजबोर्ड के मामले में रहे मुकदमों की गति से मैं प्रैक्टिकली जानता हूँ.
इसके बाद वर्षों बहस
चली होगी. न जाने कितनी बहसों के बाद फ़ैसला हुआ होगा. अब इस पूरे फ़ैसले में आदित्य
नाथ यह केस दर्ज कराने वाले थे,
या भुक्तभोगी थे या
फिर गवाह?
इस मामले में आदित्य
नाथ का नाम क्यों घसीटा गया?
केवल इसलिए कि इस
बलात्कारी ने [हमारे कुछ बुद्धिजीवियों को अभी भी यानी कोर्ट में साबित हो जाने और
कोर्ट से परवेज परवाज और महमूद उर्फ जुम्मन बाबा के सज़ायाफ्ता हो जाने के बाद भी
दोनों को बलात्कारी कहने पर एतराज होगा. भले वे मुकदमा दर्ज होने के पहले कोर्ट से
बाइज्जत बरी कर दिए जाने के बाद भी मोदी को मौत का सौदागर कहते रहें] आदित्य नाथ
के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था?
यह कौन सा आधार होता
है?
आप खुद सोचिए, क्या परवेज परवाज और महमूद उर्फ जुम्मन बाबा को कोर्ट से सज़ा मिलने के बाद इसका शीर्षक ढंग से यह नहीं होना चाहिए था -
आदित्य नाथ पर मुकदमा दर्ज कराने वाला निकला बलात्कारी!!
क्या आपको यह नहीं लगता कि यह शीर्षक केवल उत्तर प्रदेश में आम जन के बहमत से चुने गए मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ ही नहीं, विधि द्वारा स्थापित न्यायालय की भी अवमानना है?
बहरहाल आपको बता दूं कि यह शीर्षक बीबीसी का है, जिसे पिछले एक दशक से कुछ लोग साफ तौर पर जिहाद का पोषण केंद्र कहने लगे हैं. कहें भी क्यों न, उसे अपनी विश्वसनीयता की कोई फ़िक्र तो दिखती नहीं!
#BBCinFavourOfRapists
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