पंडित जसराज... उड़ गया हंस अचानक!!
संजय तिवारी
सरगम के एक युग का
अंत हो गया। भारतीय शास्त्रीय संगीत की मेवाती परंपरा के लिए बहुत बड़ी क्षति है।
पंडित जसराज नही रहे। उनकी अनंत यात्रा की खबर उनकी पुत्री दुर्गा जसराज ने ही दी।
आइये , एक दृष्टि डालते है पंडित जसराज की जीवन यात्रा
पर -
पण्डित जसराज (जन्म
- २८ जनवरी १९३० - १७ अगस्त २०२०) भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायकों में से एक
हैं। जसराज का संबंध मेवाती घराने से है। जसराज जब चार वर्ष उम्र में थे तभी उनके
पिता पण्डित मोतीराम का देहान्त हो गया था और उनका पालन पोषण बड़े भाई पण्डित
मणीराम के संरक्षण में हुआ। अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ (IAU) ने 11 नवंबर, 2006 को खोजे गए हीन ग्रह 2006 VP32 (संख्या -300128) को पण्डित जसराज के
सम्मान में 'पण्डितजसराज' नाम दिया । पंडित
जसराज का जन्म हिसार में हुआ था। पण्डितजी के परिवार में उनकी पत्नी मधु जसराज, पुत्र सारंग देव और पुत्री दुर्गा हैं। 1962 में जसराज ने फिल्म निर्देशक वी. शांताराम की
बेटी मधुरा शांताराम से विवाह किया,
जिनसे उनकी पहली
मुलाकात 1960 में मुंबई में हुई थी।
जसराज को उनके पिता
पंडित मोतीराम ने मुखर संगीत में दीक्षा दी और बाद में उनके बड़े भाई पंडित प्रताप
नारायण ने उन्हे तबला संगतकार में प्रशिक्षित किया। वह अपने सबसे बड़े भाई, पंडित मनीराम के साथ अपने एकल गायन प्रदर्शन में अक्सर शामिल होते थे।
बेगम अख्तर द्वारा प्रेरित होकर उन्होने शास्त्रीय संगीत को अपनाया। जसराज ने 14 साल की उम्र में एक गायक के रूप में प्रशिक्षण
शुरू किया, इससे पहले तक वे तबला वादक ही थे। जब उन्होने
तबला त्यागा तो उस समय संगतकारों द्वारा सही व्यवहार नहीं किया गया। उन्होंने 22 साल की उम्र में गायक के रूप में अपना पहला स्टेज
कॉन्सर्ट किया। मंच कलाकार बनने से पहले, जसराज ने कई वर्षों
तक रेडियो पर एक 'प्रदर्शन कलाकार' के रूप में काम
किया।
शास्त्रीय संगीत
हालाँकि जसराज मेवाती घराने से ताल्लुक रखते हैं, जो संगीत का एक स्कूल है और 'ख़याल' के पारंपरिक प्रदर्शनों के लिए जाना जाता है। जसराज ने ख़याल गायन में कुछ लचीलेपन के साथ ठुमरी, हल्की शैलियों के तत्वों को जोड़ा है। पंडित जसराज ने जुगलबंदी का एक उपन्यास रूप तैयार किया, जिसे 'जसरंगी' कहा जाता है, जिसे 'मूर्छना' की प्राचीन प्रणाली की शैली में किया गया है जिसमें एक पुरुष और एक महिला गायक होते हैं जो एक समय पर अलग-अलग राग गाते हैं। उन्हें कई प्रकार के दुर्लभ रागों को प्रस्तुत करने के लिए भी जाना जाता है जिनमें अबिरी टोडी और पाटदीपाकी शामिल हैं।शास्त्रीय संगीत के प्रदर्शन के अलावा, जसराज ने अर्ध-शास्त्रीय संगीत शैलियों को लोकप्रिय बनाने के लिए भी काम किया है, जैसे हवेली संगीत, जिसमें मंदिरों में अर्ध-शास्त्रीय प्रदर्शन शामिल हैं।
पुरस्कार व सम्मान
पंडित जसराज अन्य कई पुरस्कारों के अतिरिक्त प्रतिष्ठित पद्मभूषण से भी सम्मानित हो चुके हैं। मंगल और बृहस्पति के बीच एक हीन ग्रह का नाम पंडित जसराज के सम्मान में अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ द्वारा रखा गया है।मारवाड़ संगीत रत्न पुरस्कार (2014)
संगीत नाटक अकादमी फैलोशिप (2010)
स्वाति संगीता पुरस्करम् (2008)
पद्म विभूषण (2000)
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार (1987)
पद्म श्री (1975)
संगीत काला रत्न
मास्टर दीनानाथ मंगेशकर पुरस्कार
लता मंगेशकर पुरस्कार
महाराष्ट्र गौरव पुरस्कार
||ॐ शांतिः शांतिः शांतिः ॐ||
नमन व श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (19-08-2020) को "हिन्दी में भावहीन अंग्रेजी शब्द" (चर्चा अंक-3798) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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पंडित जसराज जी को नमन।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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एक शानदार शख्सियत के साथ एक युग का अंत पर वे सदा जीवित रहेंगे अपने प्रशंसकों के हृदय में ।
ReplyDeleteसादर श्रृद्धांजलि।