विद्रूप स्थिति और आंतरिक खोखलापन
भूपेंद्र सिंह बंद गली का आखिरी मकान अभी अभी पढ़ डाली। प्रिय शिव कुमार जी बहुत डूबकर उसका जिक्र करते हैं , सो खोज कर पढ़ना ही था। शानदार अंतर्संघर्ष और संबंधों के उलझे ताने-बाने , समाज की विद्रूपता भरी स्थिति और मूल्यों का आंतरिक खोखलापन। भारती जी का रचनाकार अपनी पूरी ताकत से उभरता है घटनाओं के बीच से। लगता है पलंग पर कोई और नहीं मुंशी जी के रूप में स्वयं भारती जी ही लेटे हों। मछली रेत की पढ़ी कांता भारती की कल ही। शिव ही दिल्ली से लाए खास तौर पर मेरे लिए और तमाम कीमती किताबों के साथ। उस घटनाक्रम से इस कहानी का खूबसूरत तालमेल बैठा है। वही तनाव , दोहराव वाला जीवन जीने से पैदा , वही सामाजिक दबाव , वही कूट रचनाएं , गो कि निजी जीवन में भारती और पुष्पा जी खुद रहीं तनावकारक की भूमिका में। यहां समाज , मामा और बिटानू। निम्न वर्ग की सीमितताओं से जूझता आदमी कितना टूटता है , कितना छीजता है। पल पल यह मुंशी जी का चरित्र साफ दिखाता है। राधे के लिए उमड़ती ममता और स्नेह का ज्वार उसे सब कुछ दे डालना चाहता है पर प्यार हरिया से भी कम नहीं। जो समाज नन्हे बच्चों की परवरिश न कर पाया वह नौकरी मिलते ह...