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Showing posts from October, 2020

विद्रूप स्थिति और आंतरिक खोखलापन

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भूपेंद्र सिंह   बंद गली का आखिरी मकान अभी अभी पढ़ डाली। प्रिय शिव कुमार जी बहुत डूबकर उसका जिक्र करते हैं , सो खोज कर पढ़ना ही था। शानदार अंतर्संघर्ष और संबंधों के उलझे ताने-बाने , समाज की विद्रूपता भरी स्थिति और मूल्यों का आंतरिक खोखलापन। भारती जी का रचनाकार अपनी पूरी ताकत से उभरता है घटनाओं के बीच से। लगता है पलंग पर कोई और नहीं मुंशी जी के रूप में स्वयं भारती जी ही लेटे हों।  मछली रेत की पढ़ी कांता भारती की कल ही। शिव ही दिल्ली से लाए खास तौर पर मेरे लिए और तमाम कीमती किताबों के साथ। उस घटनाक्रम से इस कहानी का खूबसूरत तालमेल बैठा है। वही तनाव , दोहराव वाला जीवन जीने से पैदा , वही सामाजिक दबाव , वही कूट रचनाएं , गो कि निजी जीवन में भारती और पुष्पा जी खुद रहीं तनावकारक की भूमिका में। यहां समाज , मामा और बिटानू। निम्न वर्ग की सीमितताओं से जूझता आदमी कितना टूटता है , कितना छीजता है। पल पल यह मुंशी जी का चरित्र साफ दिखाता है। राधे के लिए उमड़ती ममता और स्नेह का ज्वार उसे सब कुछ दे डालना चाहता है पर प्यार हरिया से भी कम नहीं। जो समाज नन्हे बच्चों की परवरिश न कर पाया वह नौकरी मिलते ह...

आईआईएमसी और उज़्बेकिस्तान के पत्रकारिता विश्वविद्यालय के बीच एमओयू

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अंकुर विजयवर्गीय नई दिल्ली। भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) ने यूनिवर्सिटी ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशंस ऑफ उज़्बेकिस्तान के साथ एक समझौता पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए हैं। इसका उद्देश्य पत्रकारिता और जनसंचार शिक्षा को प्रोत्साहन देना एवं मौलिक , शैक्षणिक एवं व्यावहारिक अनुसंधान के क्षेत्रों को परिभाषित करना है। आईआईएमसी के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने एमओयू के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस समझौते के माध्यम से दोनों संस्थान टीवी , प्रिंट मीडिया , डिजिटल मीडिया , जनसंपर्क , मीडिया भाषा विज्ञान और विदेशी भाषाओं जैसे विषय पर शोध को बढ़ावा देंगे। उन्होंने कहा कि इस समझौते से हमें एक दूसरे की कार्यप्रणालियों एवं अनुभवों को जानने एवं समझने का मौका मिलेगा। इसके अलावा यह समझौता अनुसंधान और शैक्षिक डेटा के आदान-प्रदान को भी प्रोत्साहित करेगा और संयुक्त कार्यक्रमों को आयोजित करने के अवसरों का भी जरिया बनेगा। प्रो. द्विवेदी के मुताबिक आईआईएमसी का उद्देश्य आज की जरुरतों के अनुसार ऐसा मीडिया पाठ्यक्रम तैयार करना है , जो छात्रों के लिए रोजगापरक हो। इस दिशा में हम यूनिवर्सिटी ऑ...

समर्पित कार्यशैली की गवाह है निकट

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दीप्ति गुप्ता कुछ दिन पहले निकट पत्रिका   का अप्रैल-सितंंबर , 2020 का संयुक्तांक मिला। कोरोना से उपजी पंगु स्थितियों और तमाम छोटी-बड़ी अकल्पनीय बाधाओं एवं समस्याओं के बाद भी पत्रिका का छपकर पाठकों तक पहुँचना , जंग जीतने से कम नहीं।  लेखकों की रचनाओं को पढ़ना ,   फिर उत्तम साहित्यिक रचनाओं का चयन करना ,   उन्हें तरतीब देना , प्रूफ़ रीडिंग और   संपादन के तहत , सामग्री मैं थोड़ी-बहुत कतर-ब्योंत के बाद , अंतिम रूप देकर , पत्रिका का कलेवर तैयार करना , कोई   सरल कार्य नहीं है। दिल , दिमाग और   देह की   खासी मशक्कत होती है। जब ये तीन "दकार" जुगलबंदी में ढल जाते हैं , तब पत्रिका सज-सॅवरकर पाठकों और लेखकों तक पहुँचने के लिए तैयार हो पाती है। यह पत्रिका संपादक की इस समर्पित कार्यशैली की गवाह है। इस अंक   की शुरूआत भरत प्रसाद   के उपन्यास अंश   से होती है।   उसे   पढ़कर मुझे आगे पढ़ने की जिज्ञासा   हुई ,   तो नन्दकिशोर महावीर का अमृतलाल वेगड़   की स्मृति में लिखा भावभीना आलेख   मेरे मन को अंत तक   बाँध...

अक्क महादेवी की भक्ति और स्त्री स्वातंत्र्य

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सोनाली मिश्रा   यह कहानी शिव और उनकी एक भक्त के प्रेम की कहानी के साथ ही स्त्री की स्वतंत्रता की कहानी है, जिसकी आज कल्पना ही नहीं की जा सकती है.  भारतीय पुरुष स्त्री की विराटता के सम्मुख आदर से नतमस्तक हुए हैं, यदि स्त्री ने अपने अस्तित्व को विराट स्वरुप में दिखाया है, जैसे इन दिनों नौ दिनों में नौ रूपों का आदर करते हैं. यह कथा आज के खोखले स्त्री विमर्श पर प्रश्न उठाती है. आइये महादेव और अक्क महादेवी की भक्ति कथा और स्त्री स्वतंत्रता की कथा को पढ़ें: “यदि मैं तुम्हारा पति नहीं, और तुम मुझे छोड़कर अपने चेन्नमल्लिकार्जुन के पास जाना चाहती हो तो जाओ! आज से यह महल तुम्हारा घर नहीं! जब से विवाह हुआ है, तब से तुम उस चेन्नमल्लिकार्जुन के कारण पति के निकट नहीं आ रही हो! जाओ, इस महल इसे इसी क्षण निकल जाओ!” और महल में सन्नाटा छा गया! कर्नाटक के शिवमोग्गा जिले के शिकारीपुर तालुक में जन्मी अट्ठारह वर्ष की महादेवी आज अपने पति की सभा के मध्य खड़ी थीं. अपने इस लोक के पति राजा कौशिक के संग हुए अन्याय पर उसे दुःख था, परन्तु वह क्या करती! वह तो अपना ह्रदय शिव को दे चुकी थी!  और यह आज की बात ...

संबंध क्या है और दुःख से कैसे जुड़ा है?

कमलेश कमल " संबंध भी छोटे बच्चे की ही भाँति होते हैं- हरदम ध्यान रखना पड़ता है , सँवारना पड़ता है।" वस्तुतः , मानव जीवन व्यक्ति एवं वस्तु (सजीव अथवा निर्जीव) से संबंधों का समुच्चय होता है। ये संबंध भावनात्मक , मानसिक , शारीरिक , सामाजिक आदि हो सकते हैं। जी हाँ , ग़ौर से देखें , तो रिश्ते हमारे जीवन की धुरी होते हैं। जो रिश्तों में नहीं बँधा है , वह संन्यासी है अथवा पशु। कोई जिस हद तक मानवीय मूल्यों , सरोकारों को निभाता है , उस हद तक रिश्तों की डोर से उद्दित या अनुबद्ध भी रहता है। रिश्ते या संबंध सदा प्रीतिकर ही हों , यह अननिवार्य है , आवश्यक नहीं है। व्यावहारिक तौर पर देखा गया है कि व्यक्ति जानते हुए भी कि उसकी किसी पर निर्भरता है , किसी से अति-प्रीति है , वह उससे मनमुटाव भी करता है , तर्क भी करता है और लड़ता भी है। यह उसके संबंध निबाहने का संस्कार होता है। दो दिन के लिए उसे उससे अलग करके देखिए , किसी बीमारी की झूठी सूचना देकर देखिए , प्रेम सभी वैमनस्य को दबाकर ऊपर आ जाएगा। संबंधों की चर्चा करते समय कुछ आम धारणाएँ मिलती हैं , जैसे- ' संबंध दुःख देते हैं ' या ...

भारतीय भाषाओं को बचाने का समय : प्रो. द्विवेदी

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अंकुर विजयवर्गीय  नई दिल्ली । '' पूरे विश्व में लगभग 6000 भाषाओं के होने का अनुमान है। भाषाशास्त्रियों की भविष्यवाणी है कि 21 वीं सदी के अंत तक इनमें से केवल 200 भाषाएं जीवित बचेंगी और खत्म हो जाने वाली भाषाओं में भारत की सैकड़ों भाषाएं होंगी। '' यह विचार भारतीय जन संचार संस्थान (आईआईएमसी) के महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने मंगलवार को हिंदी पखवाड़े के दौरान आयोजित की गई प्रतियोगिताओं के पुरस्कार वितरण समारोह में व्यक्त किए। कार्यक्रम में संस्थान के अपर महानिदेशक श्री सतीश नम्बूदिरीपाद , प्रोफेसर आनंद प्रधान एवं भारतीय सूचना सेवा की पाठ्यक्रम निदेशक श्रीमती नवनीत कौर भी मौजूद थीं। समारोह में प्रो. द्विवेदी ने सभी विजेताओं को प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। कोविड- 19 महामारी के संबंध में सरकार की ओर से जारी दिशानिर्देशों का अनुपालन करते हुए इस कार्यक्रम में केवल पुरस्कार विजेताओं को ही आमंत्रित किया गया। इस अवसर पर प्रो. द्विवेदी ने कहा कि अगर आप भाषा विज्ञान के नजरिए से देखें , तो हिंदी एक पूर्ण भाषा है। हिंदी की देवनागरी लिपि पूर्णत: वैज्ञानिक है। हिंदी भाषा में ज...

सवाल

  मुमताज़ अज़ीज़ नाज़ाँ एक बेटी ने ये रो कर कोख से दी है सदा मैं भी इक इंसान हूँ ,  मेरा भी हामी है ख़ुदा कब तलक निस्वानियत का कोख में होगा क़िताल बिन्त ए हव्वा पूछती है आज तुम से इक सवाल   जब भी माँ की कोख में होता है दूजी माँ का क़त्ल आदमीयत काँप उठती है ,  लरज़ जाता है अद्ल देखती हूँ रोज़ क़ुदरत के ये घर उजड़े हुए ये अजन्मे जिस्म ,  ख़ाक ओ ख़ून में लिथड़े हुए   देख कर ये सिलसिला बेचैन हूँ ,  रंजूर हूँ और फिर ये सोचने के वास्ते मजबूर हूँ काँप उठता है जिगर इंसान के अंजाम पर आदमीयत की हैं लाशें बेटियों के नाम पर   कौन वो बदबख़्त हैं ,  इन्साँ हैं या हैवान हैं मारते हैं माओं को ,  बदकार हैं ,  शैतान हैं कोख में ही क़त्ल का ये हुक्म किसने दे दिया जो अभी जन्मी नहीं थी ,  जुर्म क्या उसने किया   मर्द की ख़ातिर सदा क़ुर्बानियाँ देती रही माँ है आदमज़ाद की ,  क्या जुर्म है उसका यही ? वो अज़ल से प्यार की ममता की इक तस्वीर है पासदार ए आदमीयत ,  ख़ल्क़ की तौक़ीर है   ये व...

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