डिजिटल इंडिया पर लालित्य ललित की पैनी नज़र: प्रो.राजेश कुमार

नई दिल्ली। नई दिल्ली स्थित प्रेस क्लब में डॉ लालित्य ललित के ताज़ा व्यंग्य संग्रह डिजिटल इंडिया का लोकार्पण बुधवार को किया गया। यह व्यंग्य संग्रह गीतिका प्रकाशन की सुश्री गीता पंडित ने किया।

इस अवसर पर व्यंग्य समालोचक व केंद्रीय हिंदी संस्थान के न्यासी सदस्य प्रो राजेश कुमार ने कहा- आज हमारी सारी दुनिया डिजिटल हो चुकी है. आज हम चाहे किसी से बात करने की सोचें, चाहे हम किसी खरीदारी करने की सोच है या हम किसी से कोई व्यवहार करने की बात सोचें या हम कोई व्यापार करने की बात सोचें या हम कोई आंदोलन करने की बात सोचें, हर जगह है डिजिटल दुनिया हावी है. डिजिटल दुनिया के माध्यम से हम गरीबों के लिए आंदोलन करते हैं, नेताओं के लिए समर्थन जताते हैं और और इसके साथ ही हम अपने दैनिक जीवन की रोजमर्रा की चीजें भी डिजिटल दुनिया के माध्यम से ही करते हैं. ऐसे में लेखक कैसे इस दुनिया से अलग हो सकता है. लालित्य ललित ने इस महत्वपूर्ण विषय पर अनेक कोणों से विचार किया है. चाहे वह मीडिया की दुनिया हो, चाहे वह सामाजिक मीडिया की दुनिया को, चाहे वह सामान्य रूप से हमें प्रभावित करने वाले डिजिटल दुनिया हो, उनकी कलम उनकी पारखी नजर हर तरफ देखती रहती है और लोगों को डिजिटल दुनिया के लाभ और नुकसान दोनों से अवगत करवाती रहती है. इस संकलन के प्रकाशन के अवसर मैं लेखक को हार्दिक बधाई देना चाहता हूं और कामना करता हूं कि उनकी पैनी नजर हर तरफ हर समय सजग रहे और पाठकों को सचेत करती रहे। 

इस अवसर पर लेखक डॉ लालित्य ललित ने कहा कि मेरे लिए व्यंग्य समाज के प्रति एक समर्पण भाव है जो विसंगतियों के माध्यम से प्रकट होती है वही भावना व्यंग्य के माध्यम से रख पाता हूँ। ललित जी ने बताया कि व्यंग्य मेरे लिए किसी पारदर्शिता प्रहार से कम नहीं।जो करो उसे डंके की चोट से करो,अन्यथा न करो।

इस अवसर पर मनोरमा ईयर बुक के सम्पादक प्रदीप कुमार ने कहा- डिजिटल इंडिया के व्यंग्य पाठक को पांडेय जी की ऐसी दुनिया की सैर कराते हैं जो कोई काल्पनिक नहीं बल्कि हम सबकी वास्तविक दुनिया है। इस संग्रह में इश्क़, चाय, ड्राइविंग, सपनों और हकीक़त की दुनिया के रोजमर्रा के आम और खास पहलू पर चुटीले व्यंग्य हैं जो पाठक को गुदगुदाने के साथ कचोटते भी हैं।

इस मौके पर लोक सभा सचिवालय के संपादक रणविजय राव ने कहा कि कविता से अचानक व्यंग्य के क्षेत्र में लालित्य ललित ने अपनी एक अलग पहचान बनाई है। पिछले तीन साल के अल्प समय में ही ललित जी के दर्जन से भी अधिक व्यंग्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं और "डिजिटल इंडिया के व्यंग्य" भी उनमें से एक है। इनके व्यंग्य में रोजमर्रा की विसंगतियों को रेखांकित किया गया है।

वहीं आफ्टर ब्रेक के संपादक मनीष के. सिन्हा ने कहा कि यह व्यंग्य संग्रह निश्चय ही व्यंग्य के क्षेत्र में एक नया इतिहास रचेगा।ललित जी जब सामान्य लेखन करते हैं तब भी व्यंग्य झलकता है। अब जब इस क्षेत्र में लेखन कर रहे हैं तो उनके पाठकों को इनके व्यंग्य का बेसब्री से इंतज़ार रहता है।


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