देवनागरी लिपि में लिखी जा सकती हैं सभी भाषाएँ
डॉ. प्रभु चौधरी
नागरी लिपि परिषद, नई दिल्ली और राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना द्वारा वैश्विक संदर्भ में देवनागरी लिपि और महात्मा गांधी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय वेब गोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार और अनुवादक श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक, ओस्लो, नॉर्वे थे। मुख्य वक्ता विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के हिंदी विभाग के अध्यक्ष एवं कुलानुशासक प्रो. शैलेंद्र कुमार शर्मा थे। विशिष्ट अतिथि नागरी लिपि परिषद नई दिल्ली के महामंत्री डॉ हरिसिंह पाल, नई दिल्ली, डॉ किरण हजारिका, डिब्रूगढ़, असम, डॉक्टर जोराम आनिया ताना, ईटानगर एवं संस्था के महासचिव डॉ प्रभु चौधरी ने विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता डॉ शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने की। यह कार्यक्रम महात्मा गांधी के 151 वें जयंती वर्ष की शुरुआत के अवसर पर आयोजित किया गया।
मुख्य
अतिथि श्री शरद चंद्र शुक्ल शरद आलोक के कहा कि देवनागरी लिपि में विश्व लिपि के
रूप में प्रगति की अपार संभावनाएं हैं।
नॉर्वे से प्रकाशित द्विभाषी पत्रिकाओं में देवनागरी अंकों का प्रयोग किया जाता
है। स्कैंडिनेवियन देशों में हिंदी शिक्षण और जनसंचार माध्यमों में देवनागरी लिपि
का प्रयोग निरंतर जारी है।
मुख्य
वक्ता प्रोफेसर शैलेंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि देवनागरी लिपि के माध्यम से देश
विदेश की सभी भाषाओं को कतिपय परिवर्द्धन के साथ अंकित किया जा सकता है। उन्नीसवीं
शताब्दी के अंत में भारत का प्रथम शिक्षा आयोग गठित किया गया था, जिसमें
जनजातीय भाषाओं के लिए रोमन के स्थान पर नागरी लिपि को अंगीकार करने का निर्णय
लिया गया था। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी राष्ट्रीय एकता की दृष्टि से सामान्य लिपि
के रूप में देवनागरी को अपनाने के प्रबल पक्षधर थे। उनकी दृष्टि में भिन्न-भिन्न
लिपियों का होना कई तरह से बाधक है। वह ज्ञान की प्राप्ति में बड़ी बाधा है। उनका
दृढ़ विश्वास था कि भारत की तमाम भाषाओं के लिए एक लिपि का होना फ़ायदेमंद है और
वह लिपि देवनागरी ही हो सकती है। उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए आचार्य विनोबा
भावे ने नागरी लिपि के महत्व को स्वीकार किया। उन्होंने यह तक कहा कि हिंदुस्तान
की एकता के लिए हिंदी भाषा जितना काम देगी, उससे बहुत अधिक
काम देवनागरी देगी। इसलिए मैं चाहता हूँ कि सभी भाषाएं देवनागरी में भी लिखी जाएं।
- वैश्विक संदर्भ में देवनागरी लिपि एवं महात्मा गांधी पर केंद्रित अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी
कार्यक्रम
की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर शहाबुउद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने
कहा कि विश्व पटल पर देवनागरी लिपि तेजी
से आगे बढ़ रही है। महात्मा गांधी जैसे तेजस्वी व्यक्तित्व देवनागरी लिपि के साथ
हैं। आचार्य विनोबा भावे ने क्षेत्रीय भाषाओं की लिपि के साथ देवनागरी लिपि के भी
प्रयोग पर बल दिया। वे बहुभाषी देश में सभी भाषाओं को जोड़ने के लिए देवनागरी लिपि
को योग्य मानते थे। बच्चों को कोई भी भाषा सिखाएँ, परंतु
देवनागरी लिपि के साथ उनका संबंध रहे। यह आवश्यक है। देवनागरी लिपि सर्वगुण संपन्न
है और राष्ट्रीय एकता में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है।
इस
अवसर पर डॉ किरण हजारिका,
डिब्रूगढ़ और जोराम आनिया ताना, ईटानगर ने
पूर्वोत्तर भारत में देवनागरी लिपि की संभावनाओं पर प्रकाश डाला।
प्रारंभ
में आयोजन की रूपरेखा एवं अतिथि परिचय राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉक्टर
प्रभु चौधरी ने दिया।
सरस्वती
वंदना डॉक्टर लता जोशी ने की। स्वागत भाषण श्री हरेराम वाजपेयी, इंदौर ने
दिया।
कार्यक्रम
में श्रीमती सुवर्णा जाधव,
मुंबई, डॉ वीरेंद्र मिश्रा, इंदौर, श्री गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी, डॉ अशोक सिंह, डॉ आशीष नायक, डॉक्टर
राजलक्ष्मी कृष्णन, डॉ अशोक गायकवाड, डॉ
पूर्णिमा जेंडे, डॉ शैल चंद्रा, सुनीता
चौहान, राम शर्मा, वंदना तिवारी,
निरूपा उपाध्याय, डॉ उमा गगरानी, अनिल काले, बालासाहेब बचकर, डॉ
दीपाश्री गडक, ललिता गोडके, मनीषा सिंह,
डॉ रश्मि चौबे, डॉ भरत शेणकर, डॉक्टर मुक्ता कौशिक, डॉक्टर रोहिणी डाबरे, डॉक्टर लता जोशी, डॉक्टर तूलिका सेठ, डॉक्टर शिवा लोहारिया, डॉक्टर समीर सैयद आदि सहित
अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
संचालन
डॉ मोनिका शर्मा ने किया। अंत में आभार डॉ आशीष नायक, रायपुर ने
प्रकट किया।
उपयोगी आलेख।
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