बाज़ार
यहाँ हर चीज़ बिकती है
कहो क्या क्या ख़रीदोगे
यहाँ पर मंसब-ओ-मेराज की बिकती हैं ज़ंजीरें
अना को काट देती हैं ग़ुरूर-ओ-ज़र की
शमशीरें
यहाँ बिकता है तख़्त-ओ-ताज बिकता है मुक़द्दर भी
ये वो बाज़ार है बिक जाते हैं इस में सिकंदर भी
यहाँ बिकती है ख़ामोशी भी, लफ़्फ़ाज़ी भी बिकती है
ज़मीर-ए-बेनवा की हाँ अना साज़ी भी बिकती
है
दुकानें हैं सजी देखो यहाँ पर हिर्स-ओ-हसरत की
हर इक शै मिलती है हर क़िस्म की, हर एक क़ीमत की
यहाँ ऐज़ाज़ बिकता है, यहाँ हर राज़ बिकता
है
यहाँ पर हुस्न बिकता है, अदा-ओ-नाज़ बिकता है
सुख़न बिकता है, बिक जाती है शायर की ज़रुरत भी
यहाँ बिकती है फ़नकारी, यहाँ बिकती है शोहरत
भी
यहाँ पर ख़ून-ए-नाहक़ बिकता है, बिकती हैं लाशें भी
यहाँ बिकती हैं तन मन पर पड़ी ताज़ा खराशें भी
यहाँ नीलाम हो जाती है बेवाओं की मजबूरी
यहाँ बीनाई बिकती है, यहाँ बिकती है
माज़ूरी
लहू बिकता है, बिकते हैं यहाँ अ’अज़ा-ए-इंसानी
यहाँ बिकते हैं दो दो पैसों में जज़्बात-ए-निस्वानी
मोहब्बत, जज्बा-ओ-हसरत, सभी नीलाम होते हैं
इनायत, उन्स, और रग़बत, सभी नीलाम होते हैं
अगर बिकता नहीं कुछ, तो यहाँ इन्सां नहीं
बिकता
यहाँ एहसाँ नहीं बिकता, यहाँ ईमां नहीं
बिकता
दिल-ओ-अर्वाह के टुकड़ों की क़ीमत कुछ नहीं होती
वफ़ा की, आह की, अश्कों की क़ीमत कुछ नहीं होती
यहाँ मासूम ख़्वाबों को नहीं मिलती हैं ताबीरें
यहाँ पर सर पटकती फिरती हैं मुफ़्लिस की तदबीरें
है ये बाज़ार इक ज़िन्दाँ, दुकानें क़त्लख़ाने
हैं
यहाँ हर फ़िक्र क़ैदी है, यहाँ मुर्दा ज़बानें हैं
हैं इस बाज़ार के क़ैदी, ख़रीदार और ताजिर सब
यहाँ क़ैदी हैं दीदावर, यहाँ क़ैदी मुशाहिर
सब
यहाँ हर एक सौदे में हैं कितने राज़ पोशीदा
यहाँ मसहूर हो जाते हैं ज़हन-ओ-दिल, लब-ओ-दीदा
है ये बाज़ार इक जादू की नगरी
इक छलावा है
यहाँ कुछ भी नहीं बिकता
यहाँ बस वहम बिकता है
कहो जी,
क्या ख़रीदोगे?
[नज़्म]
शब्दार्थ
मंसब-ओ-मेराज – पद और बुलंदी, अना – अहं, ग़ुरूर-ओ-ज़र – घमंड और धन, शमशीरें – तलवारें, बेनवा – जो बात न कर सके, हिर्स-ओ-हसरत – लालच और इच्छा, ऐज़ाज़ – सम्मान, सुख़न – बातें, बीनाई – दृष्टि, माज़ूरी – अपाहिज पन, अ’अज़ा-ए-इंसानी – इंसानी अंग, जज़्बात-ए-निस्वानी – औरत के जज़्बात, इनायत – मेहरबानी, उन्स – प्यार, रग़बत – लगाव, अर्वाह – रूहें, ज़िन्दाँ – कारागार, ताजिर – व्यापारी, दीदावर – देखने वाले, मुशाहिर – दिखाने वाले, पोशीदा – छुपे हुए, मसहूर – जिस पर जादू किया
गया हो, लब-ओ-दीदा – होंट और आँखें
बहुत सार्थक रचना।
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