प्रेम नाम होता बंधु!
नहीं सभी की क़िस्मत में
है प्रेम लिखा होता बंधु
हर एक आदमी तो अपना
यूँ चैन नहीं खोता बंधु।
जो चले दर्प को आग लगा
पार वही पा जाता है
प्रेम-द्वार सबके हेतु
नहीं खुला होता बंधु।
रहे एक आसक्ति इसमें
कहीं विरक्ति भी लेकिन
यही तो इसकी रंगत है
जो 'प्रेम' नाम होता बंधु!
कभी तो मिलना, कहीं बिछड़ना
इसके धंधे हैं अजीब
इसी मिलन-बिछड़न में जीवन
शहर-गाम होता बंधु।
प्रेम-लगन का हासिल क्या ?
कुछ रातों के जगराते
लेकिन इक उपलब्धि जैसे
चार धाम होता बंधु।
हर कण इसका है अनमोल
कोई ख़रीद नहीं सकता
फिर भी दुनिया के बाज़ार
एक दाम होता बंधु।
इसे चाहिए पूर समर्पण
हर पल इसको दे दो बस
इसका एक तगादा अपना
आठ याम होता बंधु।
सब गतियों की एक गति
सब रस्तों का एक धाम
एक संचरण इसका हर पल
दखन-वाम होता बंधु।
हो कोई 'सागर' या 'कमल'
डुबना-खिलना सब इसमें ही
तरना-मुरझाना एक तमाशा
सुबह-शाम होता बंधु!
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