
आलेख गोस्वामी बिंदु जी की संगीतमय भक्ति - हरिशंकर राढ़ी Hari Shanker Rarhi इसे हिंदी साहित्य एवं संगीत का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है कि भक्तिकाल के बाद आए भक्तिकाव्य को साहित्य में स्थान नहीं दिया गया। कुछ तो सामयिक आवश्यकताओं के अनुसार वैचारिक बदलाव , कुछ नई विचारधारा का आगमन तो कुछ भक्ति साहित्य को पिछड़ा एवं अंधविश्वास मानने वाली पाश्चात्य सोच। माना कि उन्नीसवीं एवं बीसवीं सदी की परिस्थितियाँ कुछ और थीं , विदेशी सत्ता , भूख , अत्याचार और अंधविश्वासों से छुटकारा पाने की जिद थी और उसी के अनुसार भक्ति से इतर साहित्य की आवश्यकता थी , फिर भी यदि कुछ अलग और स्तरीय लिखा जा रहा था तो उसे उपेक्षित भी नहीं किया जाना चाहिए था। हम कितने भी आगे बढ़ जाएँ , कितने भी वैज्ञानिक सोच के हो जाएँ , लेकिन हम कबीर , रैदास , सूरदास , तुलसीदास , मीराबाई और रसखान को तो उपेक्षित नहीं कर सकते। बीच में इस परंपरा में अच्छे-बुरे सब आए होंगे , किंतु एक बार हम गोस्वामी बिंदु जी का भक्ति साहित्य , उसका भाव एवं संगीत देख लेते तो उन्हें इसी प...