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संसद पर हमला और शहरी नक्सली

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  इष्ट देव सांकृत्यायन
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  एक समृद्ध शाम - हरिशंकर राढ़ी (यह आलेख/ संस्मरण दिनांक 04 अक्टूबर, 2023 को लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'जनसंदेश टाइम्स' में प्रकाशित है) साहित्य मनीषी प्रो. रामदरश मिश्र जी से मिलना हमेशा ही सुखकर , प्रीतिकर एवं ऊर्जस्विता से भरपूर होता है। यह अपना सौभाग्य ही है कि जब मन होता है , मिश्र जी से मिल लिया करता हूँ। हाँ , इतना ध्यान अवश्य रखता हूँ कि उनका स्वास्थ्य ठीक चल रहा हो ; मेरे कारण उन्हें कोई असुविधा न हो। वैसे , उनका स्वभाव ही ऐसा है कि उन्हें किसी से असुविधा नहीं होती , बशर्ते वह भी उनकी उम्र एवं निष्कलुष मानसिकता को समझता हो। डॉ रामदरश मिश्र जी, प्रो स्मिता मिश्र जी, श्री ओम निश्चल जी और बद्री प्रसाद जी  मिश्र जी से मिलने का कोई विशेष कारण नहीं होता। बस जब भी उनके सान्निध्य की व्याकुलता होती है , बात की और चल दिए। बात तो होती ही रहती है। पिछले 15 अगस्त को जब उनका जन्म शताब्दी समारोह प्रारंभ हुआ था , तब से ऊर्जा एवं गर्व का स्तर अपने आप उठ गया है। समारोहों का साक्षी बनने का अपना आनंद है तो अलग से मिलने का अलग। मिश्र जी के कालखंड में होने व मिलते रहने का तात्पर्य ह...
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  समकालीन अभिव्यक्ति : रामदरश मिश्र एकाग्र का लोकार्पण Hari Shanker Rarhi साहित्य मनीषी प्रो. रामदरश मिश्र को पढ़ना, उनसे मिलना और उन पर कुछ लिखना तीनों ही आनंद के स्रोत हैं। ‘समकालीन अभिव्यक्ति’ के तत्त्वावधान में उन पर निकले एकाग्र अंक के पुस्तकाकार रूप का लोकार्पण दिनांक 4 जून, 2023 को मिश्र जी के निवास वाणी विहार पर उन्हीं के हाथों हुआ। अपनी जन्म शताब्दी पूरी करने की देहरी पर खड़े वरिष्ठतम साहित्कार प्रो. रामदरश मिश्र जी के हाथों उन्हीं पर संपादित पुस्तक का लोकार्पण हमारे लिए बड़े सौभाग्य की बात है। श्री उपेंद्र कुमार मिश्र एवं मेरे द्वारा संपादित पुस्तक को हंस प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। इसी के साथ प्रो. रामदरश मिश्र पर डॉ. पांडेय शशिभूषण ‘शीतांशु’ द्वारा लिखित आलोचनात्मक पुस्तक ‘रामदरश मिश्र: एक वसंत दिग दिगंत’ का भी लोकार्पण हुआ। अत्यंत आत्मीय-से लोकार्पण समारोह में वरिष्ठ कवि-आलोचक डॉ. ओम निश्चल जी, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंगरेजी के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. वेदमित्र शुक्ल जी, प्रो. मिश्र जी की सुपुत्री और दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ. स्मिता मिश्र जी एवं हंस प्रकाशन के...
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  यात्रा संस्मरण एक दिन अलवर तक -हरिशं कर राढ़ी हरिशंकर राढ़ी :  सिलसेढ़ लेक पर  ऐसा नहीं है कि यात्रा हुए कोई लंबा अरसा बीत गया था, लेकिन मुझे लग रहा था। अभी पिछले महीने ही वैष्णो देवी की यात्रा से आया था। इधर अप्रैल में छुट्टियाँ दिख रही थीं और उसका उपयोग कर आने का मन था। बेटी के पास समय बिल्कुल नहीं होता, इसलिए पूरे परिवार का एक साथ निकलना मुश्किल था। छुट्टी दिखी तो योजना बनी कि ऋषिकेश हो आते हैं। बेटी का हिसाब नहीं बना। तो चलिए एक दिन के लिए कहीं चलते हैं। कहाँ चलें? कुरुक्षेत्र हो आते हैं। लेकिन कुरुक्षेत्र मैं दो बार घूम चुका हूँ। मथुरा-वृंदावन जाने का न तो मन होता है और न कुछ देखने के लिए खास है। अंततः बेटी ने कहा कि अलवर चलते हैं। अपने को तो बस कहीं निकल जाने से भी संतोष हो जाता है, इसलिए ठीक है। हमारी यात्राएँ प्रायः रेलगाड़ी से होती हैं। कभी-कभी चौपहिया से भी हुई हैं। इधर पिछले साल से अपने पास भी एक गाड़ी हो गई, लेकिन उस गाड़ी से हम दिल्ली से बाहर यात्रा पर एक ही बार मथुरा तक के लिए निकल पाए थे। वह यात्रा बहुत संतोषप्रद नहीं थी। अलवर की बात आते ही सरिस्का अभयारण्य दिम...

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