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तीसरे विश्वयुद्ध की आहट

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इष्ट देव सांकृत्यायन  श्री गुरु चरण कमलेभ्यो नमः    इसी साल अगस्त में जब मोदी यूक्रेन गए थे , बहुत लोग उम्मीद कर रहे थे कि अब रूस-यूक्रेन के बीच का झगड़ा निपट जाएगा। मैंने तब भी कहा था , निपटेगा नहीं और बढ़ जाएगा। हुआ भी यही। जैसे ही मोदी यूक्रेन से भारत वापस चले , यूक्रेन ने ही रूस पर हमला कर दिया। मोदी दिल्ली बाद में पहुँचे , हमला वह पहले ही कर चुका था। वही यूक्रेन जो सौ बार मोदी से रूस के साथ मध्यस्थता कर शांति बहाली की चिरौरी कर चुका था। यही बात तब फिर हुई जब अमेरिका में ट्रंप जीत गए। हालाँकि ट्रंप के लिए रास्ता आसान नहीं है , यह संकेत मैं पहले ही दे चुका हूँ। इस पर फिर कभी विस्तार से लिखूंगा। अभी बात यूक्रेन पर केंद्रित करते हैं। ट्रंप ने जीत की सूचना मिलते ही तुरंत यह कहा भी था कि मैं सारे युद्ध खत्म करवा दूंगा। खबरें आईं कि रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म कराने के लिए क्या-क्या करेंगे ट्रंप। ऐसा लगने लगा जैसे सचमुच खत्म ही हो जाएगा युद्ध। मैं भी यही चाहता हूँ कि न हो युद्ध। बातचीत से कोई हल निकल आए। इसलिए मैंने दो-तीन बार गणनाएँ कीं , विश्लेषण किया। लेकिन निष्कर्ष नहीं बदले। कुछ दिन पहले
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  यात्रा संस्मरण केदारनाथ यात्रा का कष्टप्रद आनंद -हरिशंकर राढ़ी Hari Shanker Rarhi  at Kedarnath Temple बहुप्रतीक्षित, प्रतिष्ठित और रोमांचित करने वाली केदारनाथ धाम की यात्रा करके कल लौट आया। पहले केदारनाथ की, फिर बद्रीनाथ की। धार्मिक दृष्टि से देखूँ तो इस यात्रा के साथ मेरी चार धाम (द्वारका पुरी, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम् और बद्रीनाथ धाम) तथा द्वादश ज्योतिर्लिंगों की यात्रा संपन्न हो गई। हालाँकि, ये यात्राएँ मेरे लिए धार्मिक-आध्यात्मिक कम, भारत भ्रमण या पर्यटन अधिक थीं। केवल धार्मिक आस्था की बात होती तो संभवतः मैं नहीं जाता। हाँ, इसमें संदेह नहीं कि इस व्यवस्था के पीछे व्यवस्थाकारों ने बहुत सोचा होगा, तब जाकर ये स्थल तीर्थयात्रा के लिए निर्धारित किए गए होंगे। जहाँ चारो धाम देश के चार कोनों का, वहीं द्वादश ज्योतिर्लिंग देश के बाहरी से लेकर आंतरिक हिस्सों तक का पूरा भ्रमण करा देते हैं। आज पर्यटन की दृष्टि से यात्राएँ विस्तार पा रही हैं, किंतु इसमें संदेह नहीं कि धर्म के बहाने यात्रा करने वालों की संख्या आज भी बहुत बड़ी है। केदारनाथ और बद्रीनाथ की मेरी यात्रा बहुप्रतीक्षित थी, जो किसी-न-कि

पश्चिम पर भारी पड़ेंगे ग्रहण

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श्री गुरुचरण कमलेभ्यो नमः अश्विन कृष्णपक्ष की शुरुआत 18 सितंबर से होने वाली है। इससे पूर्व महालया श्राद्ध यानी पूर्णिमा की श्राद्ध लोग भाद्रपद मास की पूर्णिमा को करते हैं। इसलिए इसे भी श्राद्ध के दिनों में गिन लिया जाता है। इस तरह श्राद्ध वाले पक्ष की शुरुआत 17 सितंबर से हो जाने वाली है और इसी दिन चंद्र ग्रहण है। हालाँकि यह ग्रहण भारत में दृष्ट नहीं होगा। क्योंकि भारत में जब तक यह ग्रहण होगा , अगले दिन की सुबह हो जाएगी। इसलिए भारत पर इसका बहुत अधिक और सीधा असर भी नहीं होगा। लेकिन , दुनिया में जो होगा उसका भारत पर असर न हो , ऐसा भी नहीं हो सकता। इज्रायल और फिलस्तीन या रूस और यूक्रेन में युद्ध होता है तो यहाँ शेयर बाजार प्रभावित हो जाता है। शेयर बाजार प्रभावित होता है तो हम आप प्रभावित होते हैं और हमारे-आपके नाते हमसे-आपसे जुड़े हुए बाकी तत्त्व भी प्रभावित होते ही हैं। इस तरह इससे हम सब भी प्रभावित होंगे , यह अलग बात है कि मामूली तौर पर। इस पक्ष का अंत भी ग्रहण से ही होगा। आरंभ यानी 18 सितंबर को चंद्र ग्रहण है तो अंत यानी में 2 अक्टूबर को सूर्य ग्रहण। यद्यपि ये दोनों ही ग्रहण भारत में द

अफवाहों से रहें सचेत

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इष्ट देव सांकृत्यायन  पिछले दिनों जब मैंने मंगल ग्रह के राशि परिवर्तन संबंधी पोस्ट की थी और उसके साथ ही मिडिल ईस्ट के संबंध में खास तौर से चेताया था , तब कुछ मित्रों ने मजाक किया था। लेकिन जब बीते रविवार यानी 25 अगस्त को इजरायल पर हिजबुल्ला ने 100 से ज्यादा रॉकेट दाग दिए तो पूरा परिदृश्य बदल गया। आगे और बहुत कुछ बदल गया जब इजरायल ने लेबनॉन पर सौ से ज्यादा जेट विमानों से हमला कर दिया। फिर बची-खुची कसर पाकिस्तान , रूस और यूक्रेन की घटनाओं ने निकाल दी। भारत के भीतर बंगाल और महाराष्ट्र में जो हो रहा है , वह आप देख ही रहे हैं। इजरायल-लेबनॉन का मसला तो अमेरिकी हस्तक्षेप ने थोड़े दिनों के लिए शांत कर दिया , लेकिन आज वेस्ट बैंक में जो कुछ ताजा-ताजा इजरायल ने किया , उसने फिर से एक बार सबका भ्रम दूर कर दिया। अभी शांति के किसी भी प्रयास की क्षणिक सफलता को स्थायी समझ लेना बहुत बड़ी भूल होगी। मंगल 26 अगस्त को मृगशिरा में प्रविष्ट ही हुए ही थे। अपने ही इस नक्षत्र में अब वे आधा रास्ता तय कर चुके हैं। आगे 6 सितंबर को राहु के नक्षत्र आर्द्रा में जाएंगे। आने वाले दिनों में वह सब होगा जो कि पहले कभी नहीं

शहीद की वसीयत बनाम ज्ञान की बाढ़

वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों के मरणोपरांत दी जाने वाली राशि का क्या किया जाए, इस पर अपना अत्यंत बहुमूल्य ज्ञान देने से पहले जरूरी है कि उस सैनिक की मनःस्थिति के बारे में भी एक बार जान लिया जाए। यह बात भी ध्यान रखी जाए कि वह सैनिक की अपनी कमाई हुई राशि होती है, वरासत में मिली हुई नहीं। वह कमाई हुई राशि भी कोई मामूली नहीं होती है। उस राशि के बदले में उसने अपना केवल श्रम और कौशल या अपनी विशेषज्ञता नहीं दी होती, यथार्थतः अपनी जान दी होती है। कई बार तो ऐसी जगह जहाँ शरीर के चीथड़े उड़ गए होते हैं और वो चीथड़े भी बटोर कर लाए नहीं जा पाते। मुद्दे पर अपना ज्ञान देने और निरर्थक बहस का मुद्दा बनाने से पहले एक बार सोच लिया करें कि जिनके मन के कोने-कोने में एक रिश्ते के रूप में उस अस्तित्व की स्मृतियाँ समाई होती हैं, जिनके लिए वह एक राजनैतिक या सामाजिक या विधिक मुद्दा भर नहीं होता, उन पर आपके इस महान योगदान से क्या प्रभाव पड़ेगा। जिस तरह किसी सिविलियन का अपनी कमाई हुई राशि पर पूरा अधिकार होता है, वैसे ही सैनिक का भी अपनी कमाई हुई राशि पर पूरा अधिकार होता है। यह ऐसे ही नहीं होता, सेना की दो दशकों से
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  लाल हथेलियाँ (नारी-केंद्रित कहानियाँ) : रामदरश मिश्र संपादन : हरिशंकर राढ़ी शताब्दी साहित्यकार प्रो0 रामदरश मिश्र की नारी-केंद्रित कहानियों का संग्रह ‘लाल हथेलियाँ’ दो दिन पहले प्रकाशित होकर आया है। मिश्र जी के साहित्य पर संपादित यह मेरी तीसरी पुस्तक है। मिश्र जी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है; इस अवसर पर उनकी चुनी हुई नारी-केंद्रित कहानियो का संग्रह लाना मेरे लिए गौरव एवं बड़े आत्मसंतोष की बात है। रामदरश मिश्र जैसे उच्चकोटि के इतने सहज साहित्यकार विरले ही होते हैं, इसलिए उनसे एक आत्मीय जुड़ाव चला आ रहा है। आज इस संग्रह का लोकार्पण मिश्र जी के द्वारका आवास पर अत्यंत सादगी से हुआ। वस्तुतः मिश्र जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं चल रहा है, आजकल हलका बुखार है। संग्रह के प्रकाशन में भी अपेक्षा से कुछ अधिक समय लग गया था। इसलिए संग्रह के लोकार्पण को बड़ा रूप देने के बजाय आत्मीय ढंग से लोकार्पित कर दिया। इस अवसर पर दिल्ली वि0वि0 में अंगरेजी के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ वेदमित्र शुक्ल एवं साहित्य सहयात्री, समकालीन अभिव्यक्ति के संपादक उपेंद्र कुमार मिश्र जी उपस्थित थे। इस अंक में समाहित मिश्र जी की नारी क

चुनाव: एक ज्योतिषीय विश्लेषण

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मैंने पहले ही कहा था कि चुनाव पर अपना ज्योतिषीय आकलन मैं मतदान पूरा होने के बाद लिखूंगा। हालांकि यह आकलन कर मैं पहले ही चुका था , लेकिन पत्रकारिता की दुनिया में रहते हुए मैंने यह सीखा है कि जब तक मतदान चल रहे हों , उनके बारे में कोई भविष्यवाणी नहीं करनी चाहिए। उन बुद्धिजीवियों और निष्पक्ष पत्रकारों की बात छोड़ दीजिए जिन्हें लोकतंत्र केवल तभी तक सुरक्षित दिखता है जब तक कि वह एक कुल विशेष की भारी तशरीफ के नीचे पिसता रहे। एक मित्र के पूछने पर मैंने एक हल्का सा संकेत दिया था तो वह भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की एक एजेंसी में कभी मैनेजर रहे और अब अपने को पत्रकार बताने वाले एक सज्जन को बहुत नागवार गुजर गई। उन्होंने मोदी का दलाल घोषित कर दिया। जब मैंने उनकी बात का तार्किक जवाब दिया तो बेचारे मुझे ब्लॉक करके खिसक लिए।   खैर , आइए अब चुनाव और इसके संभावित परिणाम पर बात करते हैं। चुनाव भारत के हो रहे  हैं , मोदी , या राहुल , या किसी और के नहीं। मोदी या राहुल संभावित प्रधानमंत्री हो सकते हैं , लेकिन इस चुनाव में प्रधानमंत्री पद के लिए नहीं , एक एमपी की हैसियत के लिए लड़ रहे हैं। इसी हैसियत के लि

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