लाल हथेलियाँ (नारी-केंद्रित कहानियाँ) : रामदरश मिश्र

संपादन : हरिशंकर राढ़ी
शताब्दी साहित्यकार प्रो0 रामदरश मिश्र की नारी-केंद्रित कहानियों का संग्रह ‘लाल हथेलियाँ’ दो दिन पहले प्रकाशित होकर आया है। मिश्र जी के साहित्य पर संपादित यह मेरी तीसरी पुस्तक है। मिश्र जी शताब्दी वर्ष मनाया जा रहा है; इस अवसर पर उनकी चुनी हुई नारी-केंद्रित कहानियो का संग्रह लाना मेरे लिए गौरव एवं बड़े आत्मसंतोष की बात है। रामदरश मिश्र जैसे उच्चकोटि के इतने सहज साहित्यकार विरले ही होते हैं, इसलिए उनसे एक आत्मीय जुड़ाव चला आ रहा है।
आज इस संग्रह का लोकार्पण मिश्र जी के द्वारका आवास पर अत्यंत सादगी से हुआ। वस्तुतः मिश्र जी का स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं चल रहा है, आजकल हलका बुखार है। संग्रह के प्रकाशन में भी अपेक्षा से कुछ अधिक समय लग गया था। इसलिए संग्रह के लोकार्पण को बड़ा रूप देने के बजाय आत्मीय ढंग से लोकार्पित कर दिया। इस अवसर पर दिल्ली वि0वि0 में अंगरेजी के एसोशिएट प्रोफेसर डॉ वेदमित्र शुक्ल एवं साहित्य सहयात्री, समकालीन अभिव्यक्ति के संपादक उपेंद्र कुमार मिश्र जी उपस्थित थे।

इस अंक में समाहित मिश्र जी की नारी केंद्रित कहानियाँ व्यापक वितान एवं महत्त्व की हैं। आज जब हम आधी आबादी की आवाज उठाने की कोशिश कर रहे हैं, ऐसे में मिश्र जी की कहानियों में आए नारी जगत के विभिन्न सकारात्मक एवं शक्तिशाली पक्ष का अद्भुत समर्थन मिलता है। ये कहानियाँ निश्चित रूप से पठनीय हैं। मिश्रपात्र जी के कहानियों की नारी पात्र अधिकतर जमीन से जुड़ी, संघर्षशील, बनावट से परे होती हैं। पुरुष समाज की प्रताडनाओं को झेलती उनमें से कुछ सहानुभूति तो कुछ अपने स्तर की वीरांगनाएँ होती हैं।

इस अवसर पर डॉ. शुक्ल को मैंने अपना दूसरा व्यंग्य संग्रह ‘गिद्धों का स्वर्णकाल’ तथा उपेंद्र कुमार मिश्र ने अपना दूसरा काव्य संग्रह ‘लड़ रहा हूँ मैं भी’ भेंट किया। प्रो0 रामदरश मिश्र जी बुखार की दवा खाकर बैठे थे, किंतु बड़े उत्साहित एवं प्रसन्न दिख रहे थे। उन्होंने अपनी कुछ कविताएँ तथा ग़ज़लें भी सुनाई।

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