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शहीद की वसीयत बनाम ज्ञान की बाढ़

वीरगति प्राप्त करने वाले सैनिकों के मरणोपरांत दी जाने वाली राशि का क्या किया जाए, इस पर अपना अत्यंत बहुमूल्य ज्ञान देने से पहले जरूरी है कि उस सैनिक की मनःस्थिति के बारे में भी एक बार जान लिया जाए। यह बात भी ध्यान रखी जाए कि वह सैनिक की अपनी कमाई हुई राशि होती है, वरासत में मिली हुई नहीं। वह कमाई हुई राशि भी कोई मामूली नहीं होती है। उस राशि के बदले में उसने अपना केवल श्रम और कौशल या अपनी विशेषज्ञता नहीं दी होती, यथार्थतः अपनी जान दी होती है। कई बार तो ऐसी जगह जहाँ शरीर के चीथड़े उड़ गए होते हैं और वो चीथड़े भी बटोर कर लाए नहीं जा पाते। मुद्दे पर अपना ज्ञान देने और निरर्थक बहस का मुद्दा बनाने से पहले एक बार सोच लिया करें कि जिनके मन के कोने-कोने में एक रिश्ते के रूप में उस अस्तित्व की स्मृतियाँ समाई होती हैं, जिनके लिए वह एक राजनैतिक या सामाजिक या विधिक मुद्दा भर नहीं होता, उन पर आपके इस महान योगदान से क्या प्रभाव पड़ेगा। जिस तरह किसी सिविलियन का अपनी कमाई हुई राशि पर पूरा अधिकार होता है, वैसे ही सैनिक का भी अपनी कमाई हुई राशि पर पूरा अधिकार होता है। यह ऐसे ही नहीं होता, सेना की दो दशकों से

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